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मुमुक्षा के चार बीज
इतने उत्तप्त हो जाते हैं, तभी एक नये व्यक्ति का जन्म आपसे हो पाता है। __ अभी तो पश्चिम के एक विचारक ने बड़ी महत्वपूर्ण प्रस्तावना की है। और उसने कहा कि शायद स्वीकृत हो जाये, क्योंकि बात कीमती और वैज्ञानिक और प्रयोगसिद्ध मालूम होती है। बहुत पुराने शास्त्र दुनिया के कहते, कि गर्भ के समय में स्त्री के साथ संभोग न किया जाये। लेकिन अब तक उसके लिये कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था । लेकिन अभी पश्चिम के वैज्ञानिक ने आधार दिया है। और उसका कहना है कि संभोग के क्षण में इतना उत्ताप पैदा होता है, वह उत्ताप बच्चे के कोमल मस्तिष्क तंतुओं को नष्ट कर देता है। इसलिए संभोग अगर गर्भ की अवस्था में किया जाये तो बच्चे विकलांग पैदा होते हैं, और मस्तिष्क उनका क्षीण होता है। ___ दो कारणों से : एक तो उत्ताप बढ़ जाता है स्त्री के शरीर में और बच्चे के अभी जन्म तो हुये स्मरण तंतु इतने कोमल हैं कि जरा सी गर्मी और वे जल जाते हैं। और स्त्री के शरीर में आक्सीजन की कमी हो जाती है। इसलिये संभोग के क्षण में आप जोर से श्वास लेते हैं, जैसे दौड़ रहे हों। क्योंकि भीतर गर्मी मिले तो आक्सीजन जलने लगती है। आक्सीजन जलती है तो आपको जोर से श्वास लेनी पड़ती
लेती है। उसका पूरा खन उत्तप्त हो जाता है। उस उत्तप्त खन के क्षण में बच्चे के स्नाय भी जलते हैं और आक्सीजन की कमी की स्थिति में उसका आई.क्यू., उसका बुद्धिमाप नीचे गिर जाता है।
इस वैज्ञानिक के हिसाब से दुनिया में जो बढ़ती जाती मानसिक बीमारी का कारण है, उनमें एक बुनियादी कारण है कि सारी दुनिया में अब सारे धर्मों के हिसाब को छोड़कर, लोग गर्भ के समय भी संभोग कर रहे हैं।
यह बडे मजे की बात है कि कोई पश गर्भ के समय संभोग नहीं करता, सिर्फ आदमी को छोडकर । कोई पश परी पथ्वी पर गर्भ के समय संभोग नहीं करता, सिर्फ मनुष्य करता है। तो मनुष्य से ज्यादा विकृत कोई पशु पैदा भी नहीं होता । यह बात ध्यान में रख लेनी जरूरी है कि कोई भी रूपांतरण ऊर्जा का, गर्मी का, फायर का, अग्नि का रूपांतरण है। ___ तप अंतिम रूपांतरण है, जहां व्यक्ति शरीर से अपने सारे संबंध छोड़ देता है, जहां आत्मा सब तरह के कर्म-मल से अलग हो जाती है। एक महागर्मी की जरूरत है। उस गर्मी के पहले चरित्र की घटना घट जानी चाहिये। क्योंकि दुश्चरित्र का मतलब है, लीकेज । उसके जीवन से ऊर्जा इधर-उधर भटक रही है, जैसे नाव में छेद हो, या बाल्टी में छेद हो और आप पानी भर रहे हैं जब पानी में होती है बाल्टी, बिलकुल भरी मालूम पड़ती है। जैसे ऊपर उठाने लगते हैं, पानी बहने लगता है। जब तक ऊपर उठकर आती है, पानी बूंद भी नहीं बचता। सब पानी छेदों से बह जाता है।
मरने के समय में आपकी बाल्टी बिलकल खाली होती है। दख मत्य का नहीं है, दख खाली जीवन का है, जो मरने के क्षण में हाथ आता है। होना उलटा चाहिए। अगर जीवन में चरित्र की आधारशिला निर्मित की होती, तो मृत्यु के समय में आप सबसे ज्यादा भरे हए होते। और जो व्यक्ति भरा हआ मर सकता है, उसका फिर कोई जन्म नहीं है। जो खाली मरता है, वह फिर भरने की आकांक्षा से मरता है, फिर नया जन्म शुरू हो जाता है।
जब आपकी खाली बाल्टी आ जायेगी कुएं के पाट पर, स्वभावतः आप फिर से बाल्टी को पानी में डालेंगे। क्योंकि भरने के लिए तो सारी चेष्टा थी। लेकिन उसी बाल्टी को पानी में डाल रहे हैं, जिसके छिद्रों ने पानी को बहा दिया। फिर, फिर वही होगा। बाल्टी के छेद 'दुश्चरित्रता' है। बाल्टी के छेदों का भर जाना, रुक जाना, बंद हो जाना 'चरित्र' है। ___ यह बहुत मजे की बात है कि जितना भी चरित्रवान व्यक्ति हो, वह ऊर्जा नहीं खोता। चरित्र से ऊर्जा बढ़ती है, और दुश्चरित्रता से ऊर्जा खोती है। तो जिस काम को भी करके आपको लगता हो कि आप और भी शक्तिशाली हो गये, उस काम को आप चरित्र समझना; जिस काम को लगता हो करके कि आप थक गये और टूट गये, आप अपने को दुश्चरित्र समझना।
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