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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 करनेवाले लोग पूज्य हो जाते हैं, महात्मा हो जाते हैं। आप भी उनके पागलपन में सहभागी हैं। एक पार्टनरशिप चल रही है, साझेदारी चल रही है। महावीर का चरित्र तो श्रद्धा का अपरिहार्य परिणाम है। और श्रद्धा, अनुभव की अनुसंगी है। अनुभव ज्ञान से उत्पन्न होता है। ज्ञान मुमुक्षा के बीज से जन्मता है। 'चारित्र्य से भोग-वासनाओं का निग्रह हो जाता है, और तप से कर्ममलरहित होकर पूर्णतया शुद्ध हो जाता है।' बड़े मजे की बात है। महावीर तप को चरित्र के बाद रखते हैं। सब से पहले मुमुक्षा, ज्ञान, अनुभव, श्रद्धा, फिर चरित्र, और फिर तप। जब व्यक्ति के जीवन से वासनायें क्षीण हो जाती हैं, चरित्र का जन्म होता है। जब गलत की ओर जाने की बात रुक जाती है, जब गलत तरफ जाती हुई ऊर्जा ठहर जाती है, तभी तप का जन्म हो सकता है। क्योंकि तप महा-ऊर्जा में पैदा होता है। वह अग्नि जो आपको जलाकर निखार दे, उस अग्नि के इकट्ठे होने के पहले चरित्र का पैदा हो जाना जरूरी है। क्योंकि जिनके पास ऊर्जा ही नहीं है, जिनके पास ईंधन नहीं है, वे भीतर की अग्नि को जला नहीं पायेंगे। ___ असल में चरित्रहीन पापी नहीं है, सिर्फ मूढ़ है; चरित्रहीन सिर्फ नासमझ है। वह उस ऊर्जा को नष्ट कर रहा है, जिस ऊर्जा से महातप पैदा हो सकता है, और जिससे वह निखरकर नये जन्म को पा सकता है। अमृत जिससे झर सकता है, उसको वह व्यर्थ खो रहा है। वह सिर्फ मूढ़ है। इसलिए महावीर कहते हैं, कि वह सिर्फ अज्ञानी है । पापी पर दया करो, वह सिर्फ अज्ञानी है । उसको दंड देने की व्यवस्था मत करो, क्योंकि वह सिर्फ भूल कर रहा है। दोष है उसकी समझ में, वह लुटा रहा है चीजें, जिनसे वह बहुमूल्य को खरीद सकता था। अमूल्य को खरीद सकता था, उनको वह क्षुद्र चीजों में लुटा रहा है। लेकिन हमें दिखाई नहीं पड़ता। चरित्र कोई नैतिक लक्ष्य नहीं है महावीर के लिये, आध्यात्मिक रूपांतरण का अनिवार्य अंग है। और चरित्र, इसलिए मल्यवान है कि वह आपकी शक्तियों को संवरित कर देगा। आपकी शक्तियां बच रहेंगी, संग्रहीत हो जायेंगी। और एक सीमा पर जब संग्रह आता है तो जैसा विज्ञान का नियम है कि क्वांटिटी, क्वालिटेटिव परिवर्तन बन जाती है। जब एक जगह मात्रा आती है तो गण का रूपांतरण होता है।। __ यह थोड़ा समझ लेना चाहिये, यह जैसा विज्ञान का सिद्धांत है, वैसा ही अध्यात्म का भी-आप पानी को गरम करते हैं, निन्यानबे डिग्री तक गर्म किया पानी भाप नहीं बनता, सौ डिग्री सीमा आई, इवापोरेटिंग प्वाइंट आया। सौ डिग्री पर फर्क क्या पड़ रहा है ? सिर्फ एक डिग्री गर्मी बढ़ रही है, और कुछ नहीं हो रहा है। लेकिन सौ डिग्री पर गर्मी आते ही पानी अचानक भाप बनना शुरू हो जाता है, क्रांति शुरू हो गई। पानी ने अपना रूप छोड़ दिया पुराना, और नया रूप लेने लगा। गर्मी की एक खास मात्रा पर पानी भाप बनता है। गर्मी की एक खास मात्रा पर हर चीज बदलती है। हर चीज गर्मी को नीचे गिराते जायें, एक सीमा पर पानी बर्फ बन जायेगा। लोहा भी भाप बनकर उड़ता है, गर्मी की एक सीमा पर । गर्मी की एक सीमा पर हर चीज बदलती है। इसका मतलब यह हुआ कि सारी बदलाहट के पीछे गर्मी है, अग्नि है। ऐसी कोई भी बदलाहट नहीं है, जो बिना गर्मी के हो जाये। आपको खयाल है. ऐसी कोई भी बदलाह जाये-चाहे पदार्थ की, चाहे जीव की । जब आप प्रेम से भरते हैं, तो आपको पता है खास तरह की गर्मी से भर जाते हैं ? इसलिए हम प्रेम को उष्ण कहते हैं, वार्म कहते हैं। और जब कोई आदमी ठंडा होता है, जिसमें प्रेम बिलकुल नहीं, तब हम उसको कोल्ड कहते हैं, ठंडा कहते हैं। एक तरह की गर्मी है जो प्रेम में आपको परिव्याप्त कर लेती है। संभोग के क्षण में आप उत्तप्त हो जाते हैं परी तरह से। आप 240 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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