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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 है कि हमारा कोई असली चेहरा था। आइने में सदा यही चेहरे देखे हैं, इन्हीं से हमारी पहचान हो गई है। आप जानकर हैरान होंगे कि अगर किसी व्यक्ति को तीन महीने गहन ध्यान कराया जाये और आइना न देखने दिया जाये, तो तीन महीने बाद आइने में देखकर वह खद को पहचानने में कठिनाई अनुभव करेगा कि यह चेहरा मेरा है। क्योंकि सब पर्ते उतर जायेंगी और एक नये ही चेहरे का आविर्भाव होगा। जापान में तो वे कहते ही हैं साधक को-जो भी साधक गुरु के पास आता है, वे उससे कहते हैं कि 'फाइंड आऊट योअर ओरिजिनल फेस-अपना मूल चेहरा खोजो।' बस, यही ध्यान है। महावीर कहते हैं कि जब ज्ञान श्रद्धा बन जाता है, अनुभव श्रद्धा बन जाता है तो चरित्र अपने आप पीछे आता है। अगर आपके ज्ञान के पीछे आपका चरित्र न आ रहा हो, तो आप चरित्र को दोष देना बंद करो, आप ज्ञान को दोष देना शुरू करो। के साध-संन्यासी आपको समझा रहे हैं कि चरित्र आपका खराब है, ज्ञान तो बिलकल ठीक है। यहीं बनियादी भल हो रही है। मनुष्य के मन को समझने में इससे बड़ी भूल नहीं हो सकती। साधु-संन्यासी समझा रहे हैं कि चरित्र ठीक करो, ज्ञान तो तुम्हारा ठीक है। क्योंकि तुम्हें कंठस्थ हैं शास्त्र । चरित्र ठीक करो। साधु-संन्यासी भी अपना चरित्र ठीक करने में लगे हैं। ज्ञान उनका भी ठीक है। ___ चरित्र को ठीक करना ही नहीं पड़ता, सिर्फ ज्ञान को ठीक करना पड़ता है। जब ज्ञान ठीक हो जाता है, चरित्र एकदम से ठीक होने लगता है। चरित्र का ठीक होना सिर्फ लक्षण है, ज्ञान के ठीक हो जाने का। जीवन की क्रांति ज्ञान पर निर्भर है, चरित्र पर निर्भर नहीं है। इसीलिए दुनिया इतनी चरित्रहीन है, क्योंकि सभी लोग चरित्र को ठीक करने में लगे हैं। जिस दिन दुनिया ज्ञान को ठीक करने में लगेगी, चरित्र अपने आप आ जायेगा। महावीर ज्ञानी हैं, नैतिक चरित्र के उपदेशक नहीं। लेकिन बड़ी भ्रांति है। पश्चिम में, पूरब में, सब तरफ भ्रांति है । एक तो महावीर को लोग बहत कम जानते हैं, क्योंकि उनके आस-पास जो लोग उन्हें घेरे हैं. उन्होंने महावीर की प्रतिष्ठा ऐसी कर दी है कि वह जानने योग्य मालुम ही नहीं पड़ते। जैन साधुओं को देखकर कौन महावीर को जानना चाहेगा? इनको देखकर ऐसा लगता है कि परमात्मा न करे कि ऐसा कभी अपने जीवन में हो जाये-ऐसी रुग्णता, ऐसी उदासी, ऐसी कठोरता, ऐसा सब जड़-भाव, और जिंदगी से ऐसी लड़ाई । अहोभाव का खो जाना, उत्सव का बिलकुल विनष्ट हो जाना, मुर्दे की तरह जीना, लाश की तरह तैरना-कोई देखकर जैन घओं को, जैनियों को छोड़कर, क्योंकि उनको तो कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा है, उनके पास एक चश्मा है, दुनिया में किसी को भी जैन साधु को दिखाओ-उसको लगेगा कि पैथालाजिकल है, कुछ रुग्ण है। कहीं न कहीं कोई गड़बड़ हो गई है। शरीर भी खराब है, मन भी ठीक नहीं है। और दुष्ट है, जिसका हमें खयाल भी नहीं आ सकता। जिसका हमें खयाल भी नहीं आ सकता-जैन को खयाल नहीं आ सकता कि जैन साध दष्ट है। हिंसा का एक रस है-वह चाहे दूसरे को सताने में लो, चाहे खुद को सताने में, उसमें कोई फर्क नहीं पड़ता। सताने का मजा है-कुछ लोग दूसरे को सताते हैं, कुछ लोग अपने को सताते हैं। ___ ध्यान रहे, अकसर ताकतवर दूसरों को सताते हैं, कमजोर अपने को सताने लगते हैं । क्योंकि दूसरे को सताने में खतरा है। दूसरे को सताने जाइयेगा तो झंझट है, क्योंकि दूसरा भी बैठा नहीं रहेगा। इसलिए जो कमजोर हैं, कायर हैं, नपुसंक हैं, वे दूसरों को सताने का मजा तो ले नहीं सकते, उनके लिए सिर्फ एक ही रास्ता है कि अपने को सताओ, भूखा रखो, नंगा रखो, बीमार रखो, सब तरह से अपने को सताओ और मजा लो। कठोरता, क्रूरता, हिंसा छिपी हुई दिखाई पड़ेगी। लेकिन उसमें जैन को अहिंसा दिखाई पड़ रही है। उसका कारण कुल चश्मा है। MTOTT 238 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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