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________________ मुमुक्षा के चार बीज कोरें ढंक जायें। वह चेहरा उसके चेहरे पर बिलकुल आ गया। फिर वह राक्षस की तरह चलना उसने शुरू किया कमरे में, एक तलवार उठा ली नकली, और छोटे बच्चे-उनकी कल्पना प्रगाढ़ होती है और वह बिलकुल भूल गया, जोश में आ गया। जोश इतना आ गया कि उसने तलवार चला दी। तलवार चलाने से पास की टेबल पर रखी हुई शीशियां गिर गई, उनका रंग नीचे बिखर गया, कोई सामान टूट गया तो वह घबड़ा गया सामान इकट्ठा करने में कि कोई आ न जाये । शीशियां जमाने में वह बिलकुल भूल ही गया कि 'मैं कौन हूं?' और जब सब जमाकर, सब ठीक हो गया तो वहां से भागा कि इसके पहले कि मैं पकड़ जाऊं; लेकिन अपना चेहरा उतारना भूल गया। जब अपने कमरे में जाकर पहुंचा और आईने में उसे खुद का चेहरा दिखाई पड़ा, तो उसने चीख मार दी। वह घबड़ा गया कि यह क्या हो गया? बेहोश होकर गिर पड़ा। लोग दौड़े हुए आये । परिवार के लोग इकट्ठे हो गये। परिवार के लोग हंसने लगे, देखकर सब उसका नाटक। लेकिन रिलके ने लिखा है, मेरी पीड़ा को कोई भी नहीं समझा । उनकी हंसी देखकर मैं और घबड़ाने लगा। उनकी हंसी देखकर मुझे और भरोसा आने लगा कि कुछ गड़बड़ हो ही गई है; अब इस चेहरे से कोई छुटकारा नहीं दिखाई पड़ता। यह स्मरण ही न रहा कि मैं अलग हूं और यह चेहरा अलग है। और सभी की जिंदगी में उपद्रव बचपन से ही शुरू होता है, क्योंकि बचपन से ही बच्चों को चेहरे ओढ़ने पड़ते हैं। बाप कहता है, कब हंसो, इसकी भी आज्ञा बाप देता है। इसकी भी आज्ञा मां देती है कि कब हंसो, कब मत हंसो। तो जब बच्चे को हंसी आती है, तब वह उसको रोक लेता है । तब उसको दूसरा चेहरा ओढ़ना पड़ता है, जो हंसी का नहीं है। और बच्चे की हंसी के वक्त अलग होंगे आपकी हंसी से, क्योंकि आपके सोचने के ढंग और उसके सोचने के ढंग बिलकुल अलग हैं। वह बूढ़ा नहीं है। वह किन्हीं और चीजों पर हंसता है, जिन पर आप हंस ही नहीं सकते। और आप जिन चीजों पर हंसते हैं. उसकी समझ में भी नहीं आ सकता है कि उसमें हंसी की क्या बात है? एक छोटे बच्चे को उसकी मां ने कहा कि एक मेहमान घर में आ रहा है, ध्यान रखना, उनकी नाक की बात मत उठाना क्योंकि नाक उन मेहमान की थी नहीं, आपरेशन हो गया था। मां परेशान थी कि यह बच्चा एकदम पूछ न ले कि नाक का क्या हआ? तो मेहमान कहीं अड़चन में न पड़े। तो मां ने समझा दिया कि नाक की बिलकुल बात ही मत उठाना । ध्यान रखना, सब कुछ कहना, नाक की भर बात मत उठाना । ब बच्चा और भी उत्सक होकर बैठ गया कि मामला क्या है? अब तक ऐसा कभी नहीं हआ है। और जब वह आदमी आया तो उस बच्चे ने कहा कि मां, नाक तो है ही नहीं, चर्चा किस बात की करनी, नाक होती तो चर्चा भी हो सकती थी! नाक तो है ही नहीं! बच्चे का जगत अलग है, उसके सोचने का गणित अलग है। हम उसको बता रहे हैं, कब हंसो, कब रोओ, कब उठो, कैसे बैठो; क्या करो, क्या न करो। हम उसको झूठ सिखा रहे हैं। उसको चेहरे दे रहे हैं। मजबूरी है, वह कमजोर है, उसे हमारी बात माननी ही पड़ेगी। वह हम पर निर्भर है। चेहरे जितने ओढ़ने लगेगा, हम कहेंगे बच्चा सुंसस्कृत है, मैनरली है। उतना बच्चा शिष्ट होने लगा, जितना चेहरे ओढ़ने लगा। वर्षों के बाद उसे याद भी नहीं रहेगा कि उसका असली चेहरा कहां है ? यही चेहरे उसकी जिंदगी हो जायेंगे। वह हंसेगा, वह हंसी झूठी ऊपर से, चिपकाई हुई होगी। वह रोएगा, उस रोने में कहीं कोई रुदन नहीं होगा। वह कहेगा, आप को देखकर बड़ी प्रसन्नता हो रही है, और उसे कोई प्रसन्नता नहीं हो रही होगी। सब झूठा हो जायेगा। हम सब इसी झूठ में खड़े हैं, समाज एक महा-असत्य है । लेकिन इतने बचपन में इतने चेहरे ओढ़ाये जाते हैं कि हमें भूल ही जाता 237 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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