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महावीर-वाणी भाग : 2
ध्रुवीय विपरीतता है, अभी तो विज्ञान भी इस नतीजे पर पहुंचा है। अभी विज्ञान साफ नहीं हो पा रहा है, लेकिन विज्ञान में एक नई धारणा पैदा हुई है। वह है, एन्टी-मैटर-वह कहते हैं कि पदार्थ है, तो विपरीत-पदार्थ भी चाहिये । और बहुत अनूठी बात अभी पैदा हुई है, और इस आदमी को नोबल प्राइज भी मिला जिसने यह अनूठी बात कही है कि एन्टी-मैटर होना चाहिये । और उसने एक और अजीब बात कही कि समय बह रहा है, अतीत से भविष्य की तरफ, तो समय की एक विपरीत धारा भी चाहिये, जो भविष्य से अतीत की तरफ बह रही हो। नहीं तो समय बह नहीं सकता।
यह बहुत अजीब धारणा है, और इसकी कल्पना करना बहुत घबड़ानेवाली है। इसका मतलब यह है-होजेनबर्ग का कहना है कि कहीं न कहीं कोई जगत होगा, इसी जगत के किनारे, जहां समय उल्टा बह रहा होगा। जहां बूढ़ा आदमी पैदा होगा, फिर जवान होगा, फिर बच्चा होगा, और फिर गर्भ में चला जायेगा। और होजेनबर्ग को नोबल प्राइज भी मिली है, क्योंकि उसकी बात तात्विक है।
जगत में विपरीतता होगी ही, यह एक शाश्वत नियम है। इसलिए बुद्ध की बात किसी और अर्थ में अर्थपूर्ण हो, पर वैज्ञानिक अर्थों में महत्वपूर्ण नहीं है। महावीर ठीक कह रहे हैं कि विपरीतता है; वहां पुदगल है और यहां भीतर अपुदगल, एन्टी-मैटर है। वहां सब चीजें बाहर बह रही हैं—पदार्थ में, यहां कुछ भी नहीं बह रहा है, सब खड़ा है, सब ठहरा हुआ है।
इस ठहरी हुई स्थिति का अनुभव 'मुक्ति' है। और इस बहते हुए के साथ जुड़े रहना ‘संसार' है। संसार का अर्थ है, बहाव । पदार्थ के लक्षण महावीर ने कहे, 'शब्द, अन्धकार, प्रकाश, प्रभा, छाया, आतप, वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श-ये सब पदार्थ के लक्षण हैं।'
'जीव, अजीव, बन्ध, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष-ये नौ सत्य-तत्व हैं।' __ पहले छह महातत्व कहे हैं महावीर ने । वे महातत्व मैटाफिजिकल हैं । जगत, जागतिक रूप से इन छह तत्वों में समा गया है। अब जिन नौ तत्वों की बात वे कर रहे हैं, वे नौ तत्व-साधक, साधक के आयाम, और साधक के मार्ग के संबंध में हैं। जगत की बात छह तत्वों में पूरी हो गयी, फिर एक-एक साधक एक-एक जगत है अपने भीतर । विराट है जगत, फिर वह विराट एक-एक मनुष्य में छिपा है। उस मनुष्य को साधना की दृष्टि से जिन तत्वों में विभक्त करना चाहिये, वे नौ तत्व हैं।
'जीव', 'अजीव'-यह पहला विभाजन है। अजीव पुदगल है, जीव चैतन्य जिसे अनुभव की क्षमता है। यह जो अनुभव की क्षमता है, यह सात स्थितियों से गुजर सकती है। उन सात स्थितियों का इतना मूल्य है, इसलिए महावीर ने उनको भी 'तत्व' कहा है-वे तत्व हैं नहीं । वे सात स्थितियां हैं—बन्ध, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष । इनको एक-एक को बारीकी से समझना जरूरी है, क्योंकि महावीर का पूरा का पूरा साधना-पथ इन सात की समझ पर निर्भर होगा। ' 'जीव' और 'अजीव' दो विभाजन हुए जीवन के : पदार्थ और परमात्मा । पदार्थ से परमात्मा तक जाने का, पदार्थ से परमात्मा तक मुक्त होने की सात सीढ़ियां हैं, या परमात्मा से पदार्थ तक उतरने की भी सात सीढ़ियां हैं। ये सात सीढ़ियां-महावीर के हिसाब से बड़ी अनूठी इनकी व्याख्या है। ___'बन्ध' : महावीर कहते हैं, बन्ध भी एक तत्व है-बान्डेज, परतंत्रता । किसी ने भी परतंत्रता को तत्व नहीं कहा है। महावीर कहते हैं, परतंत्रता भी एक तत्व है। इसे समझें, क्या अर्थ है? आप वस्तुतः स्वतंत्र होना चाहते हैं? सभी कहेंगे, 'हां', लेकिन थोड़ा गौर से सोचेंगे तो कहना पड़ेगा, 'नहीं।
एरिफ फ्रोम ने अभी एक किताब लिखी है, किताब का नाम है—फियर आफ फ्रीडमः स्वतंत्रता का भय । लोग कहते जरूर हैं कि हम स्वतंत्र होना चाहते हैं, लेकिन कोई भी स्वतंत्र होना नहीं चाहता । थोड़ा सोचें, सच में आप स्वतंत्र होना चाहते हैं? खोजते तो रोज परतंत्रता हैं और जब तक परतंत्रता न मिल जाये तब तक आश्वस्त नहीं होते। रोज खोजते हैं-कोई सहारा, कोई आसरा, कोई शरण,
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