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________________ महावीर वाणी भाग 2 पुदगल का अर्थ है, प्रवाह । पदार्थ एक प्रवाह है। न तो कभी पूरी तरह होता है कि आप कह सकें, 'है' और न पूरी तरह कभी मिटता है कि कह सकें, 'नहीं है', दोनों के बीच में सधा है - है भी, नहीं भी है। बड़ी गहरी दृष्टि है, क्योंकि विज्ञान राजी है अब महावीर से। क्योंकि विज्ञान कहता है, पदार्थ भी जहां हमें ठहरा हुआ दिखाई पड़ता है, वहां भी ठहरा नहीं है। आप जिस कुर्सी पर बैठे हैं, वह भी गतिमान है, उसके भी इलेक्ट्रान्स घूम रहे हैं। बड़ी तेजी से घूम रहे हैं। इतनी तेजी से घूम रहे हैं कि आप गिर नहीं पाते हैं, संभले हुए हैं। जैसे बिजली का पंखा अगर बहुत तेजी से घूमे, तो आपको उसकी तीन पंखुड़ियां दिखाई नहीं पड़तीं। पंखा इतनी तेजी से घूम रहा है कि बीच की खाली जगह दिखाई नहीं पड़ती। इसके पहले कि खाली जगह दिखाई पड़े, पंखुड़ी आ जाती है और आपको पूरा एक गोला, घूमता हुआ वर्तुल दिखाई पड़ता है। अगर बिजली का पंखा उतनी गति से घुमाया जा सके, जितनी गति से आपकी कुर्सी के इलेक्ट्रान्स घूम रहे हैं, आप बिजली के पंखे पर बड़े मजे से बैठ सकते हैं- जैसे कुर्सी पर बैठे हैं। आपको पता भी नहीं चलेगा कि नीचे कोई चीज घूम रही है। क्योंकि गति इतनी तेज होगी कि आपको पता चलने के पहले दूसरी पंखुड़ी आपके नीचे आ जायेगी। बीच के खड्डे में आप गिर न पायेंगे। क्योंकि गिरने में जितना समय लगता है, उससे कम समय पंखुड़ी के आने में लगेगा। आप संभले रहेंगे। अब विज्ञान कहता है कि हर चीज घूम रही है, हर चीज गतिमान है। वह जो पत्थर का टुकड़ा है, वह भी ठहरा हुआ नहीं है, वह भी बह रहा है। अपने भीतर ही बह रहा है। महावीर का पुदगल शब्द बड़ा सोचने जैसा है। आज से पच्चीस सौ साल पहले महावीर का पुदगल कहना, कि पदार्थ गतिमान है, गत्यात्मक है; जगत में कोई चीज ठहरी हुई नहीं है। बहुत बाद में एडिंग्टन ने कहा, अभी तीस साल पहले कहा कि मनुष्य की भाषा में एक शब्द गलत है, और वह है – रेस्ट : कोई चीज ठहरी हुई नहीं है; सब चीजें चल रही हैं। महावीर ने पच्चीस सौ साल पहले, पदार्थ के लिए जो शब्द दिया, वह है- पुदगल और पुदगल का अर्थ है — रेस्टलेसनेस । इसलिए एक और बात समझ लेनी जरूरी है : जब तक आप शरीर से जुड़े हैं, रेस्ट इज नाट पासिबल । जब तक आप शरीर से जुड़े हैं, तब तक रेस्टलेसनेस है। तब तक बेचैनी रहेगी ही। इसलिए महावीर कहते हैं, शरीर से मुक्त होकर ही कोई शान्त हो सकता है। क्योंकि शरीर का स्वभाव परिवर्तन है। इसके पहले कि आप ठहरें, शरीर बदल जाता है। अभी स्वस्थ है, अभी बीमार है। अभी ठीक है, अभी गलत है। शरीर बदल रहा है। अगर ठीक से कहें तो शरीर स्वस्थ कभी भी नहीं होता । जिसको आप स्वास्थ्य कहते हैं वह भी स्वास्थ्य नहीं होता । शरीर स्वस्थ हो ही नहीं सकता, ठीक अर्थों में, सिर्फ आत्मा ही स्वस्थ हो सकती है। इसलिए हमने जो शब्द दिया है स्वास्थ्य के लिए वह बड़ा समझने जैसा है। उसका अर्थ है, स्वयं में स्थित हो जाना – स्वस्थ शरीर कभी स्वयं में स्थित नहीं हो सकता वह हमेशा बह रहा है। और उसे हमेशा पर की जरूरत है - भोजन चाहिये, श्वास चाहिये, वह हमेशा 'पर' पर निर्भर है, वह कभी स्वस्थ नहीं हो सकता, सिर्फ आत्मा ही स्वस्थ हो सकती है। यह जो महावीर का शब्द है पुदगल, यह पूरे जगत में चेतना को छोड़कर सभी पर लागू है। सिर्फ चेतना पुदगल नहीं है। बुद्ध ने चेतना के लिए भी पुदगल शब्द का प्रयोग किया है। क्योंकि बुद्ध कहते हैं कि वह भी बदल रही है। यहां बुद्ध और महावीर का बुनियादी भेद है। महावीर ने पदार्थ को पुदगल कहा है, बुद्ध ने आत्मा को भी पुदगल कहा है। क्योंकि बुद्ध कहते हैं कि पदार्थ ही नहीं बदल रहा है, आत्मा भी बदल रही है। आत्मा के लिए अपवाद करने की क्या जरूरत है? सब चीजें बदल रही हैं। जैसे सांझ को हम दीया जलाते हैं और सुबह दीये को बुझाते हैं, तो हम सुबह कहते हैं उसी दीये को बुझा रहे हैं, पर बुद्ध कहते हैं कि नहीं, क्योंकि वह दीया तो रातभर बदलता रहा — ज्योति बदलती रही, धुआं बनती रही, नई ज्योति आती रही; दीये की ज्योति तो प्रवाह थी। तो तुमने जो दीया जलाया Jain Education International 210 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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