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________________ महावीर-वाणी भाग : 2 'वीर्य और उपयोग–ये सब जीव के लक्षण हैं।' वीर्य का अर्थ है-पुरुषार्थ, और वीर्य का अर्थ 'काम-ऊर्जा भी है। काम-ऊर्जा के संबंध में एक बात खयाल में ले लें कि काम-ऊर्जा के दो हिस्से हैं। एक तो शारीरिक हिस्सा है, जिसे हम वीर्य कहते हैं। महावीर उसे वीर्य नहीं कह रहे । एक उस शारीरिक हिस्से वीर्य के साथ, सीमेन के साथ जुड़ा हुआ आंतरिक हिस्सा है, जैसे शरीर और आत्मा है, वैसे ही प्रत्येक वीर्यकण भी शरीर और आत्मा बायकण जाकर नये बच्चे का जन्म हो जाता है। प्रत्येक वीर्यकण दो हिस्से लिए हुए हैं । एक तो उसकी खोल है. जो शरीर का हिस्सा है। और दूसरा उसके भीतर छिपा हुआ जीव है, वह उसकी आत्मा है। इस भीतर छिपे हए जीव के दो उपयोग हो सकते हैं : एक उपयोग है नये शरीर को जन्म देना. और एक उपयोग है कि यह वीर्य की खोल तो पड़ी रह जाये और भीतर की जीवन-धारा है, वह ऊर्ध्वमुखी हो जाए स्वयं के भीतर। तो स्वयं का नया जन्म हो जाता है. स्वयं का नया जीवन हो जाता है। ___ मनुष्य दो तरह के जन्म दे सकता है : एक तो बच्चों को जन्म दे सकता है, जो उसके शरीर की ही यात्रा है; और एक अपने को जन्म दे सकता है, जो उसकी आत्मा की यात्रा है। अपने को जन्म देना हो तो वीर्य में छिपी हुई ऊर्जा जो उसको मुक्त करना है, देह से और ऊर्ध्वमुखी करना है। ___ महावीर ने, उसके बड़े अदभुत सूत्र खोजे हैं, कैसे वह वीर्य-ऊर्जा मुक्त हो सकती है; खोल पड़ी रह जायेगी शरीर में, उसके भीतर छिपी हुई शक्ति अन्तर्मुखी हो जायेगी। इसलिए जोर इस बात पर नहीं है कि कोई वीर्य का संग्रह करे, जोर इस बात पर है कि वीर्य से शक्ति को मुक्त करे। महावीर उसमें सफल हो पाये, इसलिए हमने उन्हें 'महावीर' कहा। उनका नाम इसी कारण 'महावीर' पड़ा । नाम तो वर्धमान था उनका, लेकिन जब वे वीर्य की ऊर्जा को मुक्त करने में सफल हो गये, तो यह इतने बड़े संघर्ष और इतनी बड़ी विजय की बात थी कि हमने उन्हें 'महावीर' कहा । वर्धमान नाम को तो लोग धीरे-धीरे भूल ही गये, महावीर ही नाम रह गया। महावीर ने कहा है कि मनुष्य के जीवन में सबसे बड़ा विजय का क्षण उस समय होता है, जब वह अपने जीवन को ही अपने नये जन्म का आधार बना लेता है; अपने को ही पुनर्जीवित करने के लिए अपने जीवन की प्रक्रिया को मोड दे देता है और अपनी जीवन शक्ति का मालिक हो जाता है। उसे महावीर 'पुरुषार्थ' कहते हैं। और अनुभव यह जीव के लक्षण हैं। ' 'शब्द, अंधकार, प्रकाश, प्रभा, छाया, आतप, वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श-ये पुदगल के लक्षण हैं।' महावीर अति वैज्ञानिक हैं अपने दृष्टिकोण में । उनका दृष्टिकोण दार्शनिक का नहीं, वैज्ञानिक का है। इसलिए शंकर से वे राजी नहीं होंगे कि जगत माया है, कि जगत असत्य है । इसलिए वे उन लोगों से भी राजी नहीं होंगे जो कहते हैं एक ही ब्रह्म है और सब स्वप्न है। क्योंकि महावीर कहते हैं कि तुम्हारा सिद्धांत सवाल नहीं है; जीवन को परखो, सिद्धांत को जीवन पर थोपो मत । जीवन ही निर्णायक है, तुम्हारा सिद्धांत निणर्णायक नहीं है। तो महावीर कहते हैं कि जीवन को देखकर तो साफ पता चलता है कि जीवन दो हिस्सों में बंटा है एक चैतन्य और एक अचैतन्य. एक आत्मा और एक पदार्थ । तम्हारे सिद्धांतों का सवाल नहीं है। महावीर सिद्धांतवादी नहीं हैं, ठीक प्रयोगवादी हैं। वे कहते हैं, जीवन को देखो, तर्क का सवाल नहीं है। और तर्क से भी आदमी पहुंचता कहां है? शंकर बड़ी कोशिश करते हैं कि जगत असत्य है, लेकिन कुछ असत्य हो नहीं पाता । शंकर से भी पूछा जा सकता है कि अगर जगत 208 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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