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________________ साधना का सूत्र : संयम सदगुरु आपको पहचान सकता है कि आप हो सकते हैं शिष्य, साधक या नहीं । लेकिन, जटिलताएं बढ़ जाती हैं इसलिए कि सदगुरु जब आपको चुनता है, तब भी वह आपको यही भ्रम देता है कि आपने उसे चुना । यह देना जरूरी है। कल ही मैं कह रहा था कि कृष्णमूर्ति को अड़चन यही हो गयी है कि उन्हें लगा कि सदगुरुओं ने उन्हें चुन लिया। जल्दी थी, कारण था, कृष्णमूर्ति की उम्र थी कम, नौ साल और एनीबीसेंट, लीडबीटर बूढ़े हो रहे थे। और कोई उपाय नहीं था कि वे प्रतीक्षा करें कि कृष्णमूर्ति उनको चुन सकें। कोई दूसरा व्यक्ति पल नहीं रहा था जिसको वे संभाल सकें सौंप सकें. जो उन्होंने जाना था। और जल्दबाजी थी. और उस जल्दी में उन्होंने कष्णमर्ति पर...यह मौका नहीं दिया कृष्णमूर्ति को कि उनके मन में यह लगता कि उन्होंने चुना है। वह भूल हो गयी । और दुनिया में गुरुओं के खिलाफ सर्वाधिक प्रबलतम रूप से खड़ा होनेवाला व्यक्ति पैदा हो गया। __ लेकिन हर गुरु सुविधा देता है आपको इस भ्रम में पड़ने की कि आपने उसे चुना है । यह सुविधा देना जरूरी है। क्योंकि अभी आपका अहंकार मौजूद है। और अगर आपको ऐसा लगे कि आपने नहीं चुना है, तो आपके अहंकार में अभी से बाधा पड़ जायेगी। जो आगे जाकर कष्ट देगी। इसलिए सदगुरुओं ने हजारों साल इस बात का प्रयोग किया है कि वे ही आपको चुनते हैं, लेकिन कभी आपको यह भ्रम नहीं होने देते प्रारम्भ में कि उन्होंने आपको चुना है या बुलाया है। आप ही उनके पास जाते हैं, आप ही उन्हें चुनते हैं। यह तो आपको आखिर में ही पता चलता है। जब अहंकार बिलकुल टूट जाता है, तब आपको पता चलता है कि आप चुने गये, बुलाये गये। यह आपने नहीं चुना था। यह खोज आपसे, सिर्फ आपसे नहीं हो गयी, लेकिन यह बहुत बाद में पता चलता है। जुनून ने कहा है, एक सूफी फकीर ने कि तीस वर्ष गुरु के पास रहने के बाद मुझे पता चला कि यह मैं नहीं था, जिसने गुरु को चुना है। यह गुरु ही था, जिसने मुझे चुना है। लेकिन तीस साल रहने के बाद पता चला।। बुद्ध एक गांव में आये। सारा गांव इकट्ठा हो गया है । बुद्ध बोलने को बैठ गये हैं, लेकिन बोलते नहीं हैं ! आखिर गांव की पंचायत के प्रमुख ने कहा कि अब आप बोलें भी, सारा गांव आ गया । बुद्ध ने कहा, थोड़ा ठहरें, जिसके लिए बोलने को मैं आया हूं, वह मौजूद नहीं है। सब तरफ गांव के लोगों ने देखा । गांव के जो जो प्रमुख लोग थे, सभी मौजूद थे। जो भी समझ सकते थे, मौजूद थे। जिनमें थोड़ी धर्म की रुचि थी, वे सभी मौजूद थे। कोई आदमी ऐसा दिखायी नहीं पड़ा, छोटा-सा गांव था। बुद्ध किसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं? और गांव के लोग बड़े हैरान हुए, बुद्ध किसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं ! और तब एक स्त्री आयी, और बुद्ध ने बोलना शुरू कर दिया। गांव के लोगों ने बाद में बुद्ध से पूछा कि हम कुछ समझे नहीं, इस स्त्री को तो कभी हमने धार्मिक जाना भी नहीं। इसके लिए आप रुके थे? बुद्ध ने कहा, इसी के लिए मैं गांव में आया । और जब मैं गांव में आ रहा था, तभी यह मुझे रास्ते में मिली और इसने कहा कि रुकना, मैं पति को भोजन देने जा रही हूं। कोशिश करूंगी जल्दी ही पहुंच जाने की। ___ गांव के लोगों को खयाल में भी नहीं आ सकता कि बुद्ध किसी का चुनाव कर रहे हैं, कोई चुना जा रहा है, किसी को कोई बात कही जा रही है। वह किसी खास के लिए आये होंगे गांव में, यह तो खयाल में भी नहीं आता। यह बताना उचित भी नहीं है। इससे कोई बहुत हित भी नहीं होता। गुरु ही चुनता है आपको। फिर आप क्या करें? क्या आप बिलकुल असहाय हैं? नहीं, आप कुछ कर सकते हैं। गुरु चुने तो आप बाधा डाल सकते हैं। बिलकुल असहाय नहीं हैं। गुरु लाख उपाय करे, आप बाधा डाल सकते हैं। गुरु कुछ भी आपके बिना सहारे के नहीं कर सकेगा। आपका सहारा तो चाहिए ही होगा। अगर आप ही पीठ फेरकर खड़े हो गये हों तो कोई उपाय नहीं हैं। तो शिष्य की तरफ से इतना ही होना चाहिए कि वह खुला हो । कोई उसे चुनने आये तो बाधा 161 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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