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महावीर-वाणी भाग : 2
हैं, रूढ़ियां रोज बदल जाती हैं, व्यवस्थाएं रोज बदल जाती हैं। दस मील पर नीति में फर्क पड़ जाता है, लेकिन धर्म में कभी भी कोई फर्क नहीं पड़ता। __इसलिए अति कठिन है पहचान लेना कि कौन है सदगुरु । फिर हम सबकी अपने मन में बैठी व्याख्याएं हैं। जैसे अगर आप जैन घर में पैदा हुए हैं तो आप कृष्ण को सदगुरु कभी भी न मान सकेंगे। इसका यह कारण नहीं है कि कृष्ण सदगुरु नहीं हैं। इसका कारण यह है कि आप जिन मान्यताओं में पैदा हुए हैं, उन मान्यताओं से कृष्ण का कोई ताल-मेल नहीं बैठेगा। अगर आप जैन घर में पैदा हुए हैं तो राम को सदगुरु मानने में कठिनाई होगी। अगर आप कृष्ण की मान्यता में पैदा हुए हैं तो महावीर को सदगुरु मानने में कठिनाई होगी। और जिसने महावीर को सदगुरु माना है, वह महम्मद को सदगुरु कभी भी नहीं मान सकता।
धारणाएं हमारी हैं, और कोई सदगुरु धारणाओं में बंधता नहीं। बंध नहीं सकता। फिर हम एक सदगुरु के आधार पर निर्णय कर लेते हैं कि सदगुरु कैसा होगा। सभी सदगुरु बेजोड़ होते हैं, अद्वितीय होते हैं, कोई दूसरे से कुछ लेना-देना नहीं होता । मुहम्मद के हाथ में तलवार है, महावीर के हाथ में तलवार हम सोच भी नहीं सकते। महावीर नग्न खड़े हैं, कृष्ण आभूषणों से लदे बांसुरी बजा रहे हैं। इनमें कहीं कोई मेल नहीं हो सकता । राम सीता के साथ पूजे जाते हैं । एक दम्पति का रूप है। कोई जैन तीर्थंकर पत्नी के साथ नहीं पूजा जा सकता। क्योंकि जब तक पत्नी है, तब तक वह तीर्थंकर कैसे हो सकेगा तब तक वह गही है, तब तक तो वह संन्यासी भी नहीं है। हम तो राम का नाम भी लेते हैं तो सीता-राम लेते हैं, पहले सीता को रख लेते हैं। सीता के बिना राम बिलकुल अधूरे हैं। लेकिन महावीर या ऋषभ या पार्श्वनाथ, उनकी पत्नियों का कोई लेना-देना नहीं है। उनकी पूर्णता पत्नियों से पूरी नहीं होती। ___ तो जिसने एक को सदगुरु माना, वह भी मुश्किल में पड़ेगा, क्योंकि उसकी धारणाएं तय हो गयी हैं। अब वह उन्हीं धारणाओं से तौलने चलेगा। न दुबारा राम होते हैं, न दुबारा महावीर होते हैं, न दुबारा क्राइस्ट होते हैं। इसलिए जब भी कोई सदगुरु होगा, आपकी धारणाएं आपको उसको न पहचानने देंगी। आपकी धारणाएं होंगी किसी पुराने सदगुरु के आधार पर, और दुबारा कोई सदगुरु दोहरता नहीं है जगत में । हर बार जब भी कोई सदगुरु होता है, फिर नया होता है। आपकी धारणाओं की वजह से आप उसे नहीं देख पाते। यहूदियों को जीसस दिखायी नहीं पड़े। किसी यहूदी ग्रंथ में जीसस का उल्लेख तक नहीं है कि जीसस जैसा व्यक्ति पैदा हुआ हो-यहूदी घर में पैदा हुआ। आज सारी दुनिया में जीसस को माननेवाले सर्वाधिक लोग हैं। आधी दुनिया जीसस को मानती है, लेकिन यहूदी किताबों में नाम का भी उल्लेख नहीं है। __ आप जानकर हैरान होंगे, महावीर का हिन्दू ग्रंथों में कोई उल्लेख नहीं है। चकित करनेवाली बात है। कारण साफ है, जिन्होंने राम को, कृष्ण को गुरु माना, वे महावीर को नहीं मान सकते। जिन्होंने मूसा को गुरु माना वे जीसस को गुरु नहीं मान सकते । कारण यह नहीं है कि जीसस और मूसा में कोई विरोध है । कारण सिर्फ इतना है कि धारणा जब बंध जाती है तो उसी धारणा से हम तौलने जाते हैं । वह धारणा ही बाधा बन जाती है। तो हम कैसे तौलें?
कोई कभी सदगुरु की खोज नहीं कर सकता है। तब तो बड़ी अड़चन हो जायेगी। घटना दूसरी ही घटती है। सदगुरु आपकी खोज करता है।
लेकिन तब मामला और जटिल हो जायेगा । फिर आपसे खोज करने के लिए कहने का क्या अर्थ है कि सदगुरु की खोज करें। कहने का सिर्फ इतना ही अर्थ है कि सदगुरु की जब आप खोज कर रहे होंगे, अगर आपने धारणाएं न बनायीं, अगर आप निर्मल, शांत, मौन चित्त से खोज करते रहे, इस खोज में ही कोई सदगुरु आपको चुन लेगा । और कोई उपाय नहीं है। आप नहीं खोज पायेंगे, लेकिन आपकी यह खोज आपको सदगुरुओं के निकट ले जायेगी और कोई आपको चुन लेगा।
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