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________________ आप ही हैं अपने परम मित्र बुद्ध, महावीर, एक ही काम कर रहे हैं कि जो भीतर छिपा है, उसकी तरफ इशारा कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि तुम हो सत्य । __रिन्झाई से किसी ने आकर पूछा,बुद्ध क्या हैं? रिन्झाई ने कहा, तुम कौन हो? कोई संगति नहीं मालूम पड़ती । बेचारा पूछ रहा है कि बुद्ध कौन हैं? बुद्ध क्या हैं? बुद्धत्व का क्या अर्थ है? और रिन्झाई जो उत्तर दे रहा है, हमें भी लगेगा, क्या उत्तर दे रहा है। वह उत्तर नहीं दे रहा है, वह एक दूसरा सवाल पूछ रहा है। वह कह रहा है कि तुम कौन हो? लेकिन जवाब उसने दे दिया। वह यह कह रहा है कि बद्ध कौन हैं. इसे तम तब तक न जान पाओगे, जब तक तम यह न जान लो कि तम कौन हो। वह यह कह रहा है. तम ही हो बद्ध, और तुम्हीं पूछ रहे हो! तो रिन्झाई ने कह रखा था कि अगर कोई पूछेगा बुद्ध के बाबत तो ठीक नहीं होगा। क्योंकि बुद्ध ही बुद्ध के बाबत पूछे, यह उचित नहीं है। __रिन्झाई ने तो बड़ी हिम्मत की बात कही। सारी दुनिया में उसके वचन का कोई मुकाबला नहीं है । और कई धर्मशास्त्री और पण्डित तो उसका वचन सुनकर बिलकुल घबरा जाते हैं। ऐसा लगता है कि इससे ज्यादा अपवित्र बात और क्या होगी। खुद बुद्ध को मानने वाले लाखों लोग रिन्झाई का वचन सुनने में समर्थ नहीं हैं। लेकिन अगर बुद्ध ने सुना होता तो बुद्ध नाच उठे होते। रिन्झाई अपने शिष्यों से कहता था, इफ ऐनी व्हेयर यू मीट द बुद्धा, किल हिम इमीजिएटली-अगर कहीं बुद्ध मिल भी जायें तो फौरन सफाया कर देना, खात्मा कर देना, एक मिनट बचने मत देना। किसी ने रिन्झाई से कहा कि क्या कह रहे हैं आप, खात्मा कर देना! तो रिन्झाई ने कहा, जब तक तुम बाहर के बुद्ध का खात्मा न करोगे, तुम्हें अपने बुद्ध का पता नहीं चलेगा। और जब तक तुम्हें बाहर बुद्ध दिखायी पड़ रहा है, तब तक तुम भ्रांति में हो । जिस दिन तुम्हें भीतर दिखायी पडेगा उसी दिन...। तो मिल जायें अगर बद्ध, तो तम खात्मा कर देना, और मैं तुमसे कहता हैं। रिन्झाई ने कहा, मेरे वचन को याद रखना और खत्म करते वक्त बुद्ध से भी कह देना कि रिन्झाई ने ऐसा कहा है, और बुद्ध भी इसको पसंद करेंगे। रिन्झाई बड़े अधिकार से कह रहा है क्योंकि रिन्झाई ठीक वहीं खड़ा है, जहां गौतम बुद्ध खड़े हैं। कोई फर्क नहीं है। __ रिन्झाई अपने शिष्यों से कहता था कि तुम्हारे मुंह में बुद्ध का नाम आ जाये तो कुल्ला कर लेना, साफ कर लेना, मुंह गंदा हो गया। शिष्य घबरा जाते थे, वे कहते थे, आपसे ऐसी बातें सुनकर मन बड़ा बेचैन है, यह आप क्या कहते हैं! वह कहता, जब तक तुम्हें लगता है कि बुद्ध के नाम-स्मरण से कुछ हो जायेगा, तब तक भीतर के बुद्ध की तुम खोज कैसे करोगे? और जब बुद्ध ही बुद्ध का नाम ले रहा है, तो इससे ज्यादा बुद्धूपन और क्या है? । नहीं, बुद्ध हों, कृष्ण हों, महावीर हों, उनके इशारे-पर हम हैं पागल । हम इशारे पकड़ लेते हैं। और जिस तरफ इशारा है, वह जो भीतर छिपा है, उसकी कोई फिक्र नहीं करते। __ कोई भय नहीं है, और जब पता ही चल गया कि तिनके को पकड़े हुए हैं, तो छोड़ने में डर क्या है? तिनके को पकड़े रहो, तो भी डूबोगे। शायद अकेले बच भी जाओ, क्योंकि आदमी को अगर कोई भी सहारा न हो तो तैर भी सके । और सोच रहा है कि तिनका सहारा है, तब पक्का डूबेगा । कोई तिनका तो बचा नहीं सकता। लेकिन तिनके की वजह से तैरेगा भी नहीं। छोड़ो, जब पता चल गया कि तिनका है, तो अब पकड़ने में कोई सार नहीं है । जब तक नाव मालूम होती थी, तभी तक पकड़ने में कोई सार था। छोड़ो, तैरो। बेसहारा होना एक लिहाज से अच्छा है। झूठे सहारे किसी काम के नहीं हैं। लेकिन एक बहुत मजे की बात है, जो आदमी परमरूप से बेसहारा हो जाता है उसे परम सहारा मिल जाता है । वह तो भीतर ही छिपा है आपके, जिसके सहारे की जरूरत है। तिनके की कोई जरूरत नहीं है, वह जो भीतर छिपा है वही सहारा है। शब्द को छोड़ो, शास्त्र को छोड़ो। इसलिए नहीं कि शास्त्र कुछ बुरी बात है, बल्कि इसीलिए कि उसको पकड़कर कहीं ऐसा न हो कि सब्स्टीट्यूट जो है, परिपूरक 149 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001821
Book TitleMahavira Vani Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages596
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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