________________
महावीर-वाणी भाग 2
तुम सोहम् की अनुभूति सतत, हे सहजवीर भगवान बुद्ध के नयनों की तुम मुखर पीर। तुम जीसस के सारल्य, मुहम्मद की समता, तुम योगिराज भगवान कृष्ण की सक्षमता। तुम लाओत्से के पुनर्जन्म, मौलिक कबीर, तुम मंदिर में नर्तित मीरा के नयन-नीर। तुम पातंजलि के योग, योग के परम शिखर, सूफी संतों की वाणी के अमृत-निर्झर। तुम झेन फ़कीरों के चिंतन के समयसार, तुम लुप्त-गुप्त तांत्रिक प्रतीति के नव प्रसार। तुम विश्व-चेतना के प्रतीक, अविकारी मन, जिसमें प्रतिबिंबित शुद्धज्ञान, ऐसे दर्पण।
अस्तित्व और तुम मानो, एकाकार हुए, मिट्टी का तन, लेकिन मिट्टी से पार हुए। तुम युग के अष्टावक्र, पूर्व के गुरजिएफ, शंकराचार्य के श्लोकों के तुम नये लेख। तुम 'नमोकार' साकार, श्रेष्ठतम मंत्र-पूत; जो संत हए, होंगे, उन सबके शब्द-दूत।
'तन्मय' बुखारिया
ललितपुर
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org