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महावीर-वाणी भाग : 2
श्वाइत्जर और फ्रायड दोनों के खयालों को ध्यान में ले लें तो ऐसा लगेगा कि महावीर और बुद्ध की बातें एक बूढ़ी सभ्यता की बातें है जो अब मरने के लिए उत्सुक हो गयी हैं। जो कहती हैं, कुछ सार नहीं है जीवन में, कुछ अर्थ नहीं जीवन में । जीवन असार है। छोड़ो आशा, छोड़ो सपने, मरने के लिए तैयार हो जाओ। __ और निर्वाण शब्द ने और भी सहारा दे दिया । बुद्ध का निर्वाण शब्द मृत्युसूचक है। निर्वाण का अर्थ होता है, बुझ जाना, मिट जाना, समाप्त हो जाना । निर्वाण का अर्थ होता है, दीये का बुझना । जब दीया बुझता है, तब हम कहते हैं, दीया निर्वाण को उपलब्ध हो गया। ऐसे ही जब आदमी के भीतर जीवेषणा की ललक. जीवेषणा की आकांक्षा, जीवेषणा की ज्योति बझ जाती है. खो जाती है उसको बद्ध ने कहा है निर्वाण।
तो स्वभावतः श्वाइत्जर और फ्रायड को लगे कि यह कौम बूढ़ी हो गयी है। और केवल बूढ़ी नहीं हो गयी है, इतनी बूढ़ी हो गयी है कि जीने की कोई आकांक्षा नहीं रह गयी। फिर महावीर की, संथारा की धारणा ने और भी खयाल दे दिया । अकेले महावीर ही ऐसे व्यक्ति हैं पूरी पृथ्वी पर, जिन्होंने संन्यासी को मरने की सुविधा दी है और जिन्होंने कहा है कि अगर कोई संन्यासी मरना चाहे, तो हकदार है मरने का। इतनी हिम्मत की बात किसी और ने नहीं कही।
महावीर कहते हैं कि अगर कोई मरना चाहे, तो यह उसका हक है, अधिकार है। हम न मानना चाहेंगे, हम कहेंगे, पुलिस पकड़ेगी, अदालत में मुकदमा चलेगा। अगर पकड़ लिए गये, अगर असफल हो गये, और हम असफल करने का सारा उपाय करेंगे। इसका तो मतलब हुआ, महावीर ने स्युसाइड की, आत्महत्या की आज्ञा दी, कि कोई संन्यासी मरना चाहे तो मर सकता है। किसी को हक नहीं है उसे जबर्दस्ती रोकने का। ___ इससे और भी खयाल साफ हो गया कि यह धारणा मृत्युवादी है, डेथ ओरिएंटेड है। जीवन से इसका संबंध कम और मृत्यु से संबंध ज्यादा है। तो यह लिबिडो के खिलाफ है। इसलिए ब्रह्मचर्य के पक्ष में है, काम के खिलाफ है । सिकोड़ने के पक्ष में है, फैलने के खिलाफ है। प्रेम के खिलाफ है, विरक्ति के पक्ष में है और अन्ततः मृत्यु के पक्ष में है, और जीवन के खिलाफ है। और महावीर से तो सहारा पूरा मिल गया, क्योंकि महावीर कहते हैं, आदमी को हक है मरने का।
लेकिन भूल हो गयी है। महावीर और बुद्ध जैसे व्यक्तियों को समझना सिर्फ ऊपर से, आसान नहीं है, भीतर उतरना बहुत जरूरी है। महावीर ने आत्महत्या की आज्ञा नहीं दी है, क्योंकि महावीर की शर्ते हैं। महावीर कहते हैं, वह आदमी मरने का हकदार है जिसको जीवन की कोई भी आकांक्षा शेष नहीं रह गयी, कोई भी। - इसलिए महावीर ने नहीं कहा कि जहर लेकर मर जाना। क्योंकि धोखा हो सकता है। एक क्षण में कभी ऐसा लग सकता है कि सब आकांक्षा खत्म हो गयी और आदमी मर सकता है। इसलिए महावीर ने कहा है कि जहर लेकर मत मर जाना । क्योंकि क्षण में धोखा हो सकता है। महावीर ने कहा, उपवास कर लेना । उपवास करके कोई मरेगा तो कम से कम नब्बे दिन लग जाते हैं। नब्बे दिन सोच विचार के लिए लम्बा अवसर है। ___ दुनिया में कोई आदमी नब्बे दिन तक आत्महत्या के विचार पर थिर नहीं रह सकता, और अगर रह जाये तो अपूर्व ध्यान को उपलब्ध हो गया। नब्बे दिन की बात अलग, वैज्ञानिक कहते हैं कि एक सैकेंड भी आत्महत्या में चूके कि चूक गये। उसी वक्त कर लो तो कर लो। क्योंकि वह भावावेश में होती हैं, तीव्र भावावेश में । कोई दुख लगा और एक आदमी छलांग लगाकर छत से कूद गया। फिर अब बीच में समझ में भी पड़े तो कोई उपाय नहीं है। अब कूद ही गये, अब मरना ही पड़ेगा।
जितने लोग आत्महत्या करके मरते हैं, अगर हम उनको जिला सकें तो वे सभी कहेंगे कि हमसे गलती हो गयी। क्षण के आवेश
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