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पहले कुछ प्रश्न।
एक मित्र ने पूछा है-कल आपने समझाया कि मनुष्य की जीवेषणा ही उसके पुनर्जन्म को, संसार के दुख-चक्र को चलाये रखने का कारण है। लेकिन आप हमेशा कहते हैं कि 'जीवन ही है परमात्मा' और आपकी पूरी देशना जीवन स्वीकार पर केन्द्रित है। जीवेषणा का दुख मूल कारण है, ऐसा कहना जीवन-निषेधक लगता है।
जीवेषणा है कल, भविष्य में, और जीवन है अभी और यहीं । जो जीवेषणा से घिरा है वह जीवन से वंचित रह जाता है। और जिसे जीवन को जानना हो उसे जीवेषणा छोड देनी पड़ती है। इसे थोडा ठीक से समझ लें। __ वासना कभी भी वर्तमान में नहीं होती, हमेशा भविष्य में होती है । और अस्तित्व सदा वर्तमान में होता है। आपका होना तो सदा होता
अभी और यहीं। लेकिन आपकी वासना सदा होती है कहीं और, कहीं दूर । आप हैं अभी और यहीं, और आपका मन है कहीं और । आपकी आकांक्षा, अभीप्सा, वासना सदा भविष्य में है। भविष्य का कोई अस्तित्व नहीं है, सिवाय आपकी वासना को छोड़कर । भविष्य है ही आपकी वासना का विस्तार । अतीत है, आपकी स्मृतियों का संग्रह, भविष्य है आपकी वासनाओं का विस्तार । समय तो सदा वर्तमान
हम आमतौर से समय का विभाजन करते हैं—वर्तमान, अतीत, भविष्य-तीन टुकड़ों में तोड़ देते हैं समय को, वह भ्रांत है । अतीत और भविष्य समय के खण्ड नहीं हैं। अतीत है हमारी स्मृति और भविष्य है हमारी वासना । समय तो सदा वर्तमान है। समय तो सदा अभी है। समय के तीन टुकड़े नहीं हैं, समय तो एक अखण्ड धारा है, जो अभी है।
साधारणतः हम कहते हैं, समय बीत जाता है। ज्यादा अच्छा हो कहना कि हम बीत जाते हैं। समय को आपने कभी बीतते देखा है? कभी अतीत से आपका मिलना हुआ है? कभी भविष्य से आपकी मुलाकात हुई है? जब भी मिलन होता है, वर्तमान से ही होता है। लेकिन कभी आप बच्चे थे, अब आप जवान हैं-आप बीत गये। अभी आप जवान हैं, कल आप बूढ़े हो जायेंगे, और भी बीत जायेंगे। कभी पैदा हुए थे, कभी मर जायेंगे। कभी भरे थे, कभी चुक जायेंगे।
आदमी बीतता है। समय नहीं बीतता । हम खर्च होते हैं, समय खर्च नहीं होता । घड़ी चलकर यह नहीं बताती कि समय चल रहा है। घड़ी चलकर यह बताती है कि आप चूक रहे हैं, आप समाप्त हो रहे हैं । घड़ी आपके संबंध में कुछ बताती है, समय के संबंध में कुछ भी नहीं।
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