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ये चार शत्रु
हर छोटी चीज से कंपने लगते हैं ।
क्या इसका यह अर्थ हुआ कि छोटे-छोटे हार्मोन इतने प्रभावी हैं और आपकी चेतना इतनी दीन है कि एक इंजेक्शन आपको स्त्री और पुरुष बना सकता है! और एक इंजेक्शन आपको बहादुर और कायर बना सकता है ! तो फिर जिसको आप कहते हैं कि भयभीत है, कार है, जिसको आप कहते हैं, बहादुर है, हिम्मतवर है, जिसको आप कहते हैं साहसी है, दुस्साहसी है, इनके बीच जो फर्क है, वह छोटे-से हार्मोन का है।
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आमतौर से यही है बात । आपकी कुछ ग्रंथियां निकाल ली जायें, आप क्रोध नहीं कर पायेंगे। कुछ ग्रंथियां निकाल ली जायें, आपकी कामवासना तिरोहित हो जायेगी। तो क्या यह शरीर आप पर इतना हावी है और आपकी आत्मा की कोई स्वतंत्रता नहीं है?
इसीलिए महावीर इनको चार शत्रु कहते हैं, क्योंकि जब तक कोई इन चार के ऊपर न उठ जाये, तब तक उसको आत्मा का कोई अनुभव नहीं होता। जब तक क्रोध के हार्मोन आपके भीतर मौजूद हैं और फिर भी आप क्रोध नहीं करते, और कामवासना के हार्मोन आपके भीतर मौजूद हैं और फिर भी आप ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो जाते हैं, लोभ की सारी की सारी रासायनिक प्रक्रिया भीतर है और फिर भी आप अलोभ को उपलब्ध हो जाते हैं, तभी आपको आत्मा का अनुभव होगा ।
आत्मा का अर्थ है - शरीर के पार सत्ता का अनुभव ।
लेकिन हम तो शरीर के पार होते ही नहीं, शरीर ही हमें चलाता है। कई बार ऐसा भी होता है कि आप सोचते हैं कि आप पार हो गये। सुबह उठते हैं, पत्नी कुछ बोल रही है कि बच्चे कुछ गड़बड़ कर रहे हैं कि नौकर कुछ उपद्रव कर रहा है और आप हंसते रहते हैं । तो आप सोचते हैं कि मैंने तो क्रोध पर विजय पा ली। यही घटना सांझ को घटती है तो आप विक्षिप्त हो जाते हैं। सुबह हार्मोन ताजे हैं, शरीर थका हुआ नहीं है । आप ज्यादा आश्वस्त हैं। सांझ थक गये हैं, हार्मोन टूट गये हैं, शक्ति क्षीण हो गयी है। सांझ आप वल्नरेबल हैं, ज्यादा खुले हैं। जरा-सी बात आपको पीड़ा और चोट पहुंचा जायेगी। तो सुबह जिसको आपने सह लिया, सांझ को नहीं सह पाते हैं। लेकिन सुबह भी आप आत्मा को नहीं पा गये थे, सुबह भी शरीर ही कारण था । सांझ भी शरीर ही कारण है।
आत्मा को पाने का अर्थ तो यह है कि शरीर कारण न रह जाये। आपके जीवन में ऐसे अनुभव शुरू हो जायें, जिनमें शरीर की रासायनिक प्रक्रियाओं का हाथ नहीं है, उनके पार । इसीलिए इन चार को शत्रु कहा है। और महावीर ने कहा है, इन चारों से ही हम पुनर्जन्म रूपी संसार के वृक्ष की जड़ों को सींचते रहते हैं। इन चारों से ही हम फिर से अपने जन्म को निर्मित करने का उपाय करते रहते हैं। जो इन चार में फंसा है, उसका अगला जन्म उसने बना ही लिया ।
लोग मेरे पास आते हैं और कहते हैं, कैसे आवागमन से छुटकारा हो? छुटकारा भी मांगते हैं और जड़ों को अच्छी तरह पानी भी सींचते चले जाते हैं। इस वृक्ष से कैसे छुटकारा हो ? सांझ को कहते हैं और सुबह वहीं पानी सींचते पाये जाते हैं । उनको पता ही नहीं कि वृक्ष की जड़ों में पानी सींचना और वृक्ष के पत्तों का आना एक ही क्रिया के अंग हैं। यह एक ही बात है । कभी मत पूछें कि आवागमन से कैसे छुटकारा हो, पूछें ही मत, यही पूछें कि क्रोध, माया, मोह और लोभ से कैसे छुटकारा हो । आवागमन से छुटकारा पूछने की बात गलत है। यही पूछें कि कैसे मैं अपने को वृक्ष को पानी देने से रोकूं । वृक्ष कैसे न हो, यह मत पूछें। क्योंकि अगर ध्यान आपने वृक्ष के पत्तों पर रखा और हाथ पानी देते रहे वृक्ष को - वृक्ष के साथ हम ऐसा नहीं करते, क्योंकि हमें पता है कि यह पानी देना और वृक्ष में पत्तों और फूलों का आना, एक ही क्रिया का अंग है।
आपको अपने जीवन वृक्ष का कोई पता नहीं है कि उसके साथ आप क्या कर रहे हैं। इधर कहे चले जाते हैं, दुख मुझे न हो, और सब तरह से दुख को सींचते हैं। हर उपाय करते हैं कि दुख कैसे हो और हर वक्त चिल्लाते रहते हैं कि दुख मुझे न हो। शायद आपको...
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