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महावीर-वाणी भाग : 2 अगर मेंसेस में हो तो नुकसान में रहेगी पंद्रह प्रतिशत कम । और दोनों मिलकर तीस प्रतिशत का फर्क हो जाता है। जो कि बड़ा फर्क है। ___ इस पर जितना काम चलता है उससे धीरे-धीरे यह भी खयाल में आना शुरू हुआ। लेकिन इतने हजार साल लग गये और खयाल में नहीं आया कि स्त्री और पुरुष दोनों एक ही जाति के पशु हैं। तो स्त्रियों में ही मासिक-धर्म हो, यह आवश्यक नहीं है, कहीं न कहीं पुरुष में भी मासिक धर्म जैसी कोई समान घटना होनी चाहिए। लेकिन पुरुषों को अब तक खयाल नहीं आया। होनी चाहिए ही, क्योंकि दोनों की शरीर रचना एक ही ढांचे में होती है। दोनों की सारी व्यवस्था एक जैसी है। जो भेद है वह थोड़ा-सा ही भेद है, और वह भेद इतना है कि स्त्री ग्राहक है और पुरुष दाता है, जीवाणुओं के संबंध में। बाकी तो सारी बात एक है। तो स्त्री में अगर मासिक-धर्म जैसी कोई घटना घटती है तो पुरुष में भी घटनी चाहिए।
सौ वर्ष पहले एक आदमी ने इस संबंध में थोड़ी खोज-बीन की है, एक जर्मन सर्जन ने। और उसे शक हुआ कि पुरुष में भी मासिक-धर्म होता है। लेकिन चूंकि कोई बाह्य घटना नहीं घटती रक्तस्राव की, इसलिए आदमी भूल गया है। तो उसने आदमी के क्रोध
और चिडचिडेपन के रिकार्ड बनाये और पाया कि हर अदाइसवें दिन परुष भी चार-पांच दिन के लिए उसी तरह अस्त-व्यस्त होता है, जैसे स्त्री अस्त-व्यस्त होती है। और अभी, एक दूसरे विचारक ने एक नये विज्ञान को जन्म दे दिया है-पैट्रिक विनियम्स उसका नाम है, बायो डायनेमिक्स । और उसने समस्त रूप से वैज्ञानिक अर्थों में सिद्ध कर दिया है कि पुरुष का भी मेंसेस होता है। कोई बाहर घटना नहीं घटती, लेकिन भीतर वैसी ही घटना घटती है, जैसी स्त्री को घटती है। और उन चार-पांच दिनों में आप क्रोधी, चिड़चिड़े, परेशान, नीचे गिर जाते हैं चेतना में।। ___ यह हर महीने हो रहा है। जिस दिन आदमी पैदा होता है, उसको पहला दिन समझ लें, तो उसके हिसाब से हर अट्ठाइसवें दिन का पूरा कलेंडर बना सकते हैं जीवन का । वह पहला दिन है, फिर हर अट्ठाइसवें दिन पुरुष का कलेंडर बन सकता है। और जब आपके कलेंडर में आपका मेंसेस आ जाये तो दूसरे को भी बता दें और खुद भी सावधान रहें। और आज नहीं कल, हमें स्त्री-पुरुष का विवाह करते वक्त ध्यान रखना चाहिए कि दोनों का मेंसेस साथ न पड़े। ऐसा लगता है स्त्री-पुरुषों को, पति-पत्नियों को देखकर कि बहुत मात्रा में साथ पड़ता होगा। क्योंकि दोनों का मेंसेस साथ पड़ जाये तो भारी उपद्रव और कलह होने वाली है। ___ यह इसलिए संभव हो सका कि आज तक खयाल नहीं आया कि पुरुष का भी मासिक-धर्म होता है, क्योंकि हम क्रोध से परिचित ही नहीं हैं, नहीं तो यह खयाल आ जाता । इसलिए मैं कह र हा हूं। अगर हम क्रोध की धारा का निरीक्षण करते तो हमको भी पता चल जायेगा कि हर महीने आपका बंधा हुआ दिन है, बंधा हुआ समय है जब आप ज्यादा क्रोधी होते हैं। और हर महीने आपके बंधे हुए दिन हैं, जब आप कम क्रोधी होते हैं। लेकिन यह तो बड़ी यांत्रिक बात हुई, यह तो आप मशीन की तरह घूम रहे हैं । आपकी मालकियत नहीं मालूम पड़ती। ___ जैसा क्रोध है, वैसा ही लोभ भी है, वैसी ही माया भी है, वैसा ही मोह भी है । उन सबमें आप बंधे हुए हैं। और यह जो बंधन हैं, यह बड़ा अदभुत है। आपको खयाल, सिर्फ भ्रम रहता है कि आप मालिक हैं। ___ अभी चूहों पर बहुत वैज्ञानिकों ने प्रयोग किये । छोटा-सा हार्मोन जो पुरुष में होता है, पुरुष चूहे में जरा-सी मात्रा उसकी अगर मादा चूहे को इन्जेक्ट कर दी जाये, तो बड़ी हैरानी की बात है, मादा चुहिया जो है, वह पुरुष चूहे की तरह व्यवहार करना शुरू कर देती है। वही अकड़, वही चाल, जो पुरुष चूहे की होती है वही झगड़ालू वृत्ति, हमले का भाव, वह सब आ जाता है। इतना ही नहीं, पुरुष हार्मोन के इंजेक्शन के बाद मादा चुहिया जो है, पुरुष चुहिया पर चढ़कर संभोग करने की कोशिश करती है, जो कि वह कर नहीं सकती। पुरुष चूहों को स्त्री हार्मोन के इंजेक्शन देकर देखा गया, वे बिलकुल स्त्रैण हो जाते हैं, दब्ब हो जाते हैं, भागने लगते हैं, भयभीत हो जाते हैं और
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