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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 तब। महावीर मृत्यु को स्वीकार करते हैं। मृत्यु को स्वीकार करना अहिंसा है। मृत्यु को अस्वीकार करना हिंसा है। और जब मैं अपनी मृत्यु को अस्वीकार करता हूं तो मैं दूसरे की मृत्यु को स्वीकार करता हूं। और जब मैं अपनी मृत्यु को स्वीकार करता हूं तो मैं सबके जीवन को स्वीकार करता हूं। यह एक सीधा गणित है। जब मैं अपने जीवन को स्वीकार करता हूं तो मैं दूसरे के जीवन को इनकार करने के लिए तैयार हूं। और जब मैं अपनी मृत्यु को परिपूर्ण भाव से स्वीकार करता हूं कि ठीक है, वह नियति है, तब मैं किसी के जीवन को चोट पहुंचाने के लिए जरा भी उत्सुक नहीं रह जाता। उसके जीवन को भी चोट पहुंचाने के लिए जरा भी उत्सुक नहीं रह जाता जो मेरे जीवन को चोट पहंचाए। क्योंकि मेरे जीवन को चोट पहुंचाकर ज्यादा से ज्यादा वह क्या कर सकता है? मृत्य! जो कि होने ही वाली है। वह सिर्फ निमित्त बन सकता है। वह कारण नहीं है। महावीर कहते हैं कि अगर तुम्हारी कोई हत्या भी कर जाए तो वह सिर्फ निमित्त है, वह कारण नहीं है। कारण तो मृत्यु है, जो जीवन के भीतर ही छिपी है। इसलिए उस पर नाराज होने की भी कोई जरूरत नहीं है। ज्यादा से ज्यादा धन्यवाद दिया जा सकता है। जो होने ही वाला था, उसमें वह सहयोगी हो गया। वह होने ही वाला था। एक बार हमें यह खयाल में आ जाए कि जो होने ही वाला है, तो हम फिर किसी पर नाराज नहीं हो सकते। ___ महावीर कहते हैं, मृत्यु का अंगीकार। और बड़े मजे की बात है, मृत्यु का अंगीकार इसलिए नहीं कि मृत्यु कोई महत्वपूर्ण चीज है। मृत्यु का अंगीकार ही इसलिए कि मृत्यु बिलकुल ही गैर-महत्वपूर्ण चीज है। जब जीवन ही गैर-महत्वपूर्ण है तो मृत्यु महत्वपूर्ण कैसे हो सकती है। जब जीवन तक गैर-महत्वपूर्ण है तो मृत्यु का क्या मूल्य हो सकता है। ध्यान रहे, मृत्यु का उतना ही आपके मन म मूल्य होता है जितना जीवन का मूल्य होता है। मृत्यु को जो मूल्य मिलता है वह रिफ्लेक्टेड वैल्यू है। आप जीवन को कितना मूल्य देते हैं उतना मृत्यु को मूल्य देते हैं। ___ अगर आप कहते हैं- जीना ही है किसी कीमत पर, तो आप कहेंगे- मरना नहीं है किसी कीमत पर। यह साथ चलेगा। आप कहते हैं- चाहे कुछ भी हो जाए, मैं जीऊंगा ही तो फिर आप यह भी कह सकते हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए, मैं मरूंगा नहीं। आप जितना जीवन को मूल्य देते हैं उतना ही मूल्य मृत्यु में स्थापित हो जाता है। और ध्यान रहे, जितना मूल्य मृत्यु में स्थापित हो जाता है, उतना ही आप मुश्किल में पड़ जाते हैं। महावीर कहते हैं- जीवन में कोई मूल्य ही नहीं है तो मृत्यु का भी मूल्य समाप्त हो जाता है। और जिसके चित्त में न जीवन का मूल्य है, और न मत्य का, क्या वह आपको मारने आएगा में रस लेगा? क्या वह आपको समाप्त करने में उत्सुक होगा? हम कितना मूल्य किसी चीज को देते हैं, उस पर ही निर्भर करता है सब । सुना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन एक अंधेरी रात में एक गांव के पास से गुजरता है। चार चोरों ने उस पर हमला कर दिया वह जी तोड़कर लड़ा, वह इस बुरी तरह लड़ा कि अगर वे चार न होते तो एकाध की हत्या हो जाती। वे चार थोड़ी ही देर में अपने को बचाने में लग गये, आक्रमण तो भूल गये। फिर भी चार थे। बामुश्किल घंटों की लड़ाई के बाद किसी तरह मुल्ला पर कब्जा कर पाये। और जब उसकी जेब टटोली तो केवल एक पैसा मिला। वे बहुत हैरान हुए कि मुल्ला अगर एकाध आना तुम्हारे खीसे में रहता तो हम चारों की जान की कोई खैरियत न थी। एक पैसे के लिए तुम इतना लड़े! हद कर दी। हमने तुम जैसा आदमी नहीं देखा। चमत्कार हो तुम! मुल्ला ने कहा कि उसका कारण है। पैसे का सवाल नहीं है। आइ डोंट वांट टु एक्सपोज़ माइ पर्सनल फाइनेंशियल पोजिशन टु क्वाइट स्ट्रेंजर्स। मैं बिलकुल अजनबियों के सामने अपनी माली हालत प्रगट नहीं करना चाहता हूं, और कोई कारण नहीं है। जान लगा देता। यह सवाल माली हालत के प्रगट करने का है, और तुम अजनबी। सवाल पैसे का नहीं है; सवाल पैसे के मूल्य का है। एक पैसा है कि करोड़, यह सवाल नहीं है। अगर पैसे का मूल्य है तो एक में भी मूल्य है और करोड़ में भी मूल्य है। और 80 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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