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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 तो कैसा दुख होता है! वह डाक्टर ठीक नहीं मालूम पड़ता। किसी और बड़े एक्सपर्ट को खोजना पड़ता है, इससे काम नहीं चलेगा। यह कोई डाक्टर है! आप जैसे बड़े आदमी, और आपको कोई बीमारी ही नहीं है। या कोई छोटी-मोटी बीमारी बता दे, कि कह दे, गर्म पानी पी लेना और ठीक हो जाओगे। तो भी मन को तृप्ति नहीं मिलती। इसलिए डाक्टरों को, बेचारों को अपनी दवाइयों के नाम लैटिन में रखने पड़ते हैं, चाहे उसका मतलब होता हो अजवाइन का सत। लेकिन लैटिन में जब नाम होता है, तब मरीज अकड़ कर घर लौटता है, प्रिस्क्रिप्शन लेकर...कि ये कुछ काम हुआ! जिएंगे कैसे, अगर दुख न हो तो जिएंगे कैसे! या तो आनंद हो...तो जीने की वजह होती है। आनंद न हो तो दुख तो हो ही! ___ मार्क ट्वेन ने कहा है, और अनुभवी था आदमी और मन के गहरे में उतरने की क्षमता और दृष्टि थी। उसने कहा है, तुम चाहे मेरी प्रशंसा करो, या चाहे मेरा अपमान करो, लेकिन तटस्थ मत रहना। उससे बहुत पीड़ा होती है। तुम चाहो तो गाली ही दे देना, उससे भी तम मझे मानते हो कि मैं कुछ हं। लेकिन तम मझे बिना देखे ही निकल जाओ, तुम न मझे गाली दो, न तुम मेरा सम्मान करो, तब तुम मुझे ऐसी चोट पहुंचाते हो संघातक कि मैं उसका बदला लेकर रहूंगा। उपेक्षा का बदला लोग जितना लेते हैं उतना दुख का नहीं लेते। आपने भी ...अपने पर खयाल करेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि आपको सबसे ज्यादा पीड़ा वह आदमी पहुंचाता है जो आपकी उपेक्षा करता है, इनडिफरेंट है। इसलिए अगर महावीर या जीसस जैसे लोगों को हमने बहुत सताया तो उसका एक कारण उनका इनडिफरैस था, बहुत गहरा कारण। वे इनडिफरैंट थे। आप उनको पत्थर भी मार गये तो वे ऐसे खड़े रहे कि चलो कोई बात नहीं। तो उससे बहुत दुख होता है, उससे बहुत पीड़ा होती है। नीत्से ने; जो कि मनुष्य के इतिहास में बहुत थोड़े-से लोग आदमी के भीतर जितनी गहराई में उतरते हैं, वैसा आदमी; नीत्से ने कहा है कि जीसस, मैं तुमसे कहता हूं कि अगर कोई तुम्हारे गाल पर एक चांटा मारे तो तुम दूसरा गाल उसके सामने मत करना, उससे उसको बहुत चोट लगेगी। जब कोई आदमी तुम्हारे गाल पर एक चांटा मारे, जीसस, तो मैं तुमसे कहता हूं कि तुम दूसरा गाल उसके सामने मत करना। तुम उसे एक करारा चांटा देना। उससे उसे इज्जत मिलेगी। जब तुम दूसरा गाल उसके सामने कर दोगे, वह कीड़ा- मकोड़ा जैसा हो जाएगा। इतना अपमान मत करना। इसे हम न सह सकेंगे। इसीलिए तुम्हें सूली पर लटकाया गया। यह कभी हम सोच नहीं सकते, लेकिन है यह सच। और सच ऐसे स्ट्रेंज होते हैं कि हम कल्पना भी न कर पाएं, इतने विचित्र होते हैं। अगर कोई आपकी उपेक्षा करे तो वह शत्रु से भी ज्यादा शत्रु मालूम पड़ता है। क्योंकि शत्रु आपकी उपेक्षा नहीं करता। वह आपको काफी मान्यता देता है। -- हम दुख के लिए भी उत्सुक हैं- कम से कम दुख तो दो, अगर सुख न दे सको। कुछ तो दो, दुख भी दोगे तो चलेगा, लेकिन दो। इसलिए हम आतुर हैं चारों तरफ, और संवेदनशील हैं। हम अपनी सारी इन्द्रियों को चारों तरफ सजग रखते हैं, एक ही काम के लिए कि कहीं से दुख आ रहा हो तो चूक न जाएं। तो उसे जल्दी से ले लें। कहीं कोई और न ले ले; कहीं चूक न जाएं; कहीं अवसर न खो जाए। यह दुख हमारे रहने की वजह है, जीने की वजह है। तो महावीर की अहिंसा का यह अर्थ नहीं है कि दूसरे को दुख मत देना, क्योंकि महावीर तो कहते ही यह हैं कि दूसरे को न कोई दुख दे सकता है और न कोई सुख दे सकता है। महावीर की अहिंसा का यह भी अर्थ नहीं है कि दूसरे को मारना मत, मार मत डालना। क्योंकि महावीर भलीभांति जानते हैं कि इस जगत में कौन किसको मार सकता है, मार डाल सकता है। महावीर से ज्यादा बेहतर और कौन जानता होगा यह कि मृत्यु असंभव है। मरता नहीं कुछ। तो महावीर का यह मतलब तो कतई नहीं हो सकता कि मारना मत, मार मत डालना किसी को। क्योंकि महावीर तो भलीभांति जानते हैं। और अगर इतना भी नहीं जानते तो महावीर के 66 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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