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________________ धर्म : स्वभाव में होना आप महावीर को दुख दे सकते हैं तो फिर बात खत्म हो गयी। नहीं, आप महावीर को दुख नहीं दे सकते। क्योंकि महावीर दुख लेने को तैयार ही नहीं हैं। आप उसी को दुख दे सकते हैं जो दुख लेने को तैयार है। और आप हैरान होंगे कि हम इतने उत्सुक हैं दुख लेने को, जिसका कोई हिसाब नहीं। आतुर हैं, प्रार्थना कर रहे हैं कि कोई दुख दे। दिखाई नहीं पड़ता...दिखाई नहीं पड़ता। लेकिन खोजें अपने को। अगर एक आदमी आपकी चौबीस घंटे प्रशंसा करे, तो आपको सुख न मिलेगा, और एक गाली दे दे तो जन्मभर के लिए दुख मिल जाएगा। एक आदमी आपकी वर्षों सेवा करे, आपको सुख न मिलेगा, और एक दिन आपके खिलाफ एक शब्द बोल दे और आपको इतना दुख मिल जाएगा कि वह सब सुख व्यर्थ हो गया। इससे क्या सिद्ध होता है? __ इससे यह सिद्ध होता है कि आप सुख लेने को इतने आतुर नहीं दिखाई पड़ते हैं जितना दुख लेने को आतुर दिखाई पड़ते हैं। यानी आपकी उत्सुकता जितनी दुख लेने में है उतनी ही सुख लेने में नहीं है। अगर मुझे किसी ने उन्नीस बार नमस्कार किया और एक बार नमस्कार नहीं किया, तो उन्नीस बार नमस्कार से मैंने जितना सुख नहीं लिया है, एक बार नमस्कार न करने से उतना दुख ले लूंगा। आश्चर्य है! मुझे कहना चाहिए था, कोई बात नहीं है, हिसाब अभी भी बहुत बड़ा है। कम से कम बीस बार न करे तब बराबर होगा। मगर वह नहीं होता है। तब भी बराबर होगा, तब भी दुख लेने का कोई कारण नहीं है, मामला तब तराजू में तुल जाएगा। लेकिन नहीं, जरा सी बात दुख दे जाती है। हम इतने सैंसिटिव हैं दुख के लिए, उसका कारण क्या है? उसका कारण यही है कि हम दूसरे से सुख चाहते हैं इतना ज्यादा कि वही चाह, उससे हमें दुख मिलने का द्वार बन जाती है, और तब दूसरे से सुख तो मिलता नहीं-मिल नहीं सकता। फिर दुख मिल सकता है, उसको हम लेते चले जाते हैं। महावीर नहीं कह सकते कि अहिंसा का अर्थ है दूसरे को दुख न देना। दूसरे को कौन दुख दे सकता है, अगर दूसरा लेना न चाहे। और जो लेना चाहता है उसको कोई भी न दे तो वह ले लेगा। यह भी मैं आपसे कह देना चाहता हूं। कोई वह आपके लिए रुका नहीं रहेगा कि आपने नहीं दिया तो दुख कैसे लें। लोग आसमान से दुख ले रहे हैं। जिन्हें दुख लेना है, वे बड़े इन्वेन्टिव हैं । वे इस-इस ढंग से दुख लेते हैं, इतना आविष्कार करते हैं कि जिसका हिसाब नहीं है। वे आपके उठने से दुख ले लेंगे, आपके बैठने से दुख ले लेंगे, आपके चलने से दुख ले लेंगे, किसी चीज से दुख ले लेंगे। अगर आप बोलेंगे तो दुख ले लेंगे, अगर आप चुप बैठेंगे तो दुख ले लेंगे कि आप चुप क्यों बैठे हैं, इसका क्या मतलब? __ एक महिला मुझसे पूछती थी कि मैं क्या करूं, मेरे पति के लिए। अगर बोलती हूं तो कोई विवाद, उपद्रव खड़ा होता है। अगर नहीं बोलती हूं तो वे पूछते हैं, क्या बात है? न बोलने से विवाद खड़ा होता है। अगर न बोलूं तो वे समझते हैं कि नाराज हूं। अगर बोलूं तो नाराजगी थोड़ी देर में आने ही वाली है, वह कुछ न कुछ निकल आएगा। तो मैं क्या करूं? बोलूं कि न बोलूं? अब मैं उसको क्या सलाह दूं? जितने दुख आपको मिल रहे हैं उसमें से निन्यानबे प्रतिशत आपके आविष्कार हैं। निन्यानबे प्रतिशत! जरा खोजें कि किस-किस तरह आप आविष्कार करते हैं, दुख का । कौन-कौन सी तरकीबें आपने बिठा रखी हैं! असल में बिना दुखी हुए आप रह नहीं सकते। क्योंकि दो ही उपाय हैं, या तो आदमी सुखी हो तो रह सकता है, या दुखी हो तो रह सकता है। अगर दोनों न रह जाएं तो जी नहीं सकता। दुख भी जीने के लिए काफी बहाना है। दुखी लोग देखते हैं आप, कितने रस से जीते हैं? इसको जरा देखना पड़ेगा। दुखी लोग कितने रस से जीते हैं? वह अपने दुख की कथा कितने रस से कहते हैं? दुखी आदमी की कथा सुनें, कैसा रस लेता है। और कथा को कैसा मैग्निफाई करता है, उसको कितना बड़ा करता है। सुई लग जाए तो तलवार से कम नहीं लगती है उसे। कभी आपने खयाल किया है कि आप किसी डाक्टर के पास जाएं और वह आपसे कह दे कि नहीं, आप बिलकुल बीमार नहीं हैं, 65 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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