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महावीर-वाणी
भाग : 1
मढताओं में। अपनी ही शक्ति नष्ट होती है, किसी और की नहीं। लेकिन व्यर्थ हो जाती है। 'बुद्धिमान हो।'
बुद्धिमानी का अर्थ ही है कि झगड़ा-फसाद न करता हो, जीवन-ऊर्जा का विध्वंसक उपयोग न करता हो, सृजनात्मक, क्रिएटिव उपयोग करता हो। 'अभिजात हो।'
अभिजात कीमती शब्द है। अरिस्टोक्रेटिक हो। बड़ा अजीब लगेगा, समाजवाद की दुनिया है, वहां अरिस्टोक्रेसी कैसी? अभिजात्य। लेकिन महावीर के अर्थ में कुलीनता और अभिजात्य का अर्थ है, क्षुद्रता पर ध्यान न देता हो, शालीन हो। क्षुद्रताओं को नजर से बाहर कर देता हो, श्रेष्ठता पर ही ध्यान रखता हो। व्यर्थ को चुनता न हो और दूसरे में श्रेष्ठ होना चाहिए। इसकी तलाश करता हो। __ अकुलीन का अर्थ होता है, जो पहले से मान कर बैठा है लोग बुरे हैं। कुलीन का अर्थ है, जो पहले से मान कर बैठा है कि लोग भले हैं। मूलतः कभी-कभी भले हो जाते हैं, यह बात और है। __ कुलीन आदमी, अभिजात्य चित्त वाला व्यक्ति, दो दिनों के बीच में एक रात को देखता है। अकुलीन व्यक्ति दो रातों के बीच में एक दिन को देखता है। कुलीन व्यक्ति फूलों को गिनता है, कांटों को नहीं। और मानता है कि जहां फूल होते हैं वहां थोड़े कांटे भी होते हैं। और उनसे कुछ हर्जा नहीं होता, कांटे भी फूल की रक्षा ही करते हैं।
अकुलीन चित्त कांटों की गिनती करता है, और जब सब कांटों को गिन लेता है तो वह कहता है, एक दो फूल से होता भी क्या है! जहां इतने कांटे हैं, वहां एक दो फूल धोखा है।
कुलीन, अकुलीनता चुनाव का नाम है, आप क्या चुनते हैं? श्रेष्ठ का दर्शन आभिजात्य है, अश्रेष्ठ का दर्शन शूद्रता है। 'अभिजात हो, आंख की शर्म रखने वाला स्थिर वृत्ति हो।'
मैंने सुना है कि अकबर के तीन पदाधिकारियों ने राज्य को धोखा दिया। राज्य के खजाने को धोखा दिया। पहले पदाधिकारी को बुलाकर अकबर ने कहा, तुमसे ऐसी आशा न थी! कहते हैं, उस आदमी ने उसी दिन सांझ जाकर आत्महत्या कर ली।
दुसरे आदमी को साल भर की सजा दी। तीसरे आदमी को पंद्रह वर्ष के लिए जेलखाने में डाला और सड़क पर नग्न करवाकर कोड़े लगवाये। मंत्री बड़े चिंतित हुए। जुर्म एक था, सजाएं बहुत भिन्न हो गयीं। - अकबर से पूछा मंत्रियों ने, 'यह कुछ समझ में नहीं आता, यह न्याययुक्त नहीं मालूम होता। तीनों का जुर्म एक था। एक को आपने सिर्फ इतना कहा, तुमसे इतनी आशा न थी!'
अकबर ने कहा, 'वह आंख की शर्म वाला आदमी था। इतना बहुत था। इतना भी जरूरत से ज्यादा था। सांझ उसने आत्महत्या कर ली।' 'दूसरे को आपने साल भर की सजा दी!' अकबर ने कहा, 'वह थोड़ी मोटी चमड़ी का है।' 'और तीसरे को नग्न करके कोड़े लगवाये, और जेल में डलवाया!' अकबर ने कहा, 'कि जाकर तीसरे से मिलो, तुम्हें समझ में आ जायेगा।' एक मंत्री भेजा गया जेलखाने में, जिसके कोड़े के निशान भी अभी नहीं मिटे थे, वह वहां बड़े मजे में था, और उसने कहा कि पंद्रह ही
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