________________
महावीर-वाणी
भाग : 1
बुद्ध ने कहा, जो हड्डी, मांस-मज्जा है, अगर मैं वही हूं तो आप मुझे भलीभांति पहचानते हैं। लेकिन अब मैं जानकर लौटा हूं कि वह मैं नहीं हूं। और मैं आपसे कहता हूं कि मैं आपके द्वारा पैदा हुआ जरूर, लेकिन आपसे पैदा नहीं हुआ हूं। आप एक रास्ते से ज्यादा नहीं थे जिससे मैं गुजरा। जो भी मुझमें दिखायी पड़ता है वह आपका है। लेकिन मेरे भीतर वह भी जो आपको दिखायी नहीं पड़ता, मुझे दिखायी पड़ता है। वह आपका नहीं है।
इस बिंदु का नाम आत्मा है। लेकिन यह अनाश्रव हुए बिना, इसका कोई अनुभव नहीं है।
इसलिए महावीर कहते हैं, जो अनाश्रव हो जाता है वह निर्दोष हो जाता है। सब दोष बाहर से आये हुए हैं। निर्दोषता भीतरी घटना है। सब दोष शरीर के संग के कारण हैं। यह महावीर निरंतर कहते हैं कि अगर हम एक नील-मणि को पानी में डाल दें, तो सारा पानी नीला हो जाता है। होता नहीं है, दिखायी पड़ने लगता है। नीला हो नहीं जाता। मणि को बाहर खींच लें, पानी का रंग खो जाता है। मणि को भीतर डाल दें, पानी फिर नीला हो जाता है। संग-दोष। इसको महावीर कहते हैं कि सिर्फ संग साथ के कारण पानी नीला दिखायी पड़ने लगता है। ____ आत्मा पर कोई वस्तुतः दोष लगते नहीं। आत्मा कभी दोषी होती नहीं। आत्मा का होना निर्दोष है, वह इनोसेंस है ही, निर्दोषता है। लेकिन शरीर के संग साथ शरीर का रंग उस पर पड़ जाता है। शरीर की वजह से रंग उसको घेर लेते हैं। शरीर की वजह से लगता है, मेरी सीमा है। शरीर की वजह से लगता है, मैं बीमार हुआ। शरीर की वजह से लगता है, भूख लगी है। शरीर की वजह से लगता है, सिर में दर्द हो रहा है। शरीर की वजह से सब कुछ पकड़ लेता है।
आत्मा, जैसे-जैसे शरीर से अपने को अलग जानती है, वैसे-वैसे निर्दोषता का अनुभव करने लगती है। सब संग दोष है। न शरीर दोषी है, न आत्मा दोषी है। दोनों के संग साथ में एक दूसरे पर छाया पड़ती है और दोष हो जाता है।
आज इतना ही।
480
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org