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महावीर-वाणी
भाग : 1
दान की कोई स्मृति नहीं होती सिर्फ चोरी की स्मृति होती है। चोरी को याद रखना पड़ता है। और अगर दान भी याद रहे तो चोरी के ही समान हो जाता है। अर्थ क्या है? अर्थ इतना है कि हम इस भांति सम्मोहित हो सकते हैं वस्तुओं से, हिप्नोटाइज्ड हो सकते हैं कि हमारी आत्मा वस्तुओं में प्रवेश कर जाये।
एक कार सरसराती रास्ते से गुजर जाती है। कार तो गुजर जाती है, हवा के झोंके के साथ आपकी आत्मा भी कार के साथ बह जाती है। वह छवि आंख में रह जाती है। वह सपनों में प्रवेश कर जाती है। मन में एक ही बात घूमने लगती है, उस रंग की, वैसी गाडी, पकड़ लेती है। इसे अगर हम विज्ञान की भाषा में समझें, तो यह हिप्नोटिज्म है, यह सम्मोहन है। आप उस कार के रंग से, रूप से, आकृति से सम्मोहित हो गये। अब आपके चित्त में एक प्रतिमा बन गयी है। वह प्रतिमा जब तक न मिल जाये, आप दुखी होंगे। __ हम वस्तुओं से सम्मोहित होते हैं। व्यक्तियों से ही होते हों, तो भी ठीक है, हम वस्तुओं से भी सम्मोहित होते हैं। देख लेते हैं एक आदमी की कमीज, रंग पकड़ लेता है, रूप पकड़ लेता है। आपकी आत्मा बह गयी आपके बाहर और कमीज से जाकर जड़ गयी। अपने से बाहर बह जाना और किसी से जुड़ जाना, और फिर ऐसा अनुभव करना कि उसके मिले बिना सुख न होगा, यह सम्मोहन का लक्षण है। जहां-जहां हम सम्मोहित होते हैं, वहां-वहां लगता है, इसके बिना अब सुख न होगा। जब भी आपको लगे कि इसके बिना सुख न होगा, तो आप समझ लेना कि आप हिप्नोटाइज्ड हो गये, आप सम्मोहित हो गये।
सम्मोहन करने के लिए कोई आपकी आंखों में झांक कर घंटे भर तक देखना आवश्यक नहीं है। सम्मोहित करने के लिए आपको सी टेबल पर लिटाकर किसी मेक्सकोली को या किसी को आपको बेहोश करना आवश्यक नहीं है। आप चौबीस घंटे सम्मोहित हो रहे हैं, और चारों तरफ उपाय किये गये हैं आपको सम्मोहित करने के, क्योंकि सारा व्यवसाय जीवन का, सम्मोहन पर खड़ा है।
खयाल में नहीं है, सारी एडवरटाइजमेंट की कला सम्मोहन पर खड़ी है, वह आपको सम्मोहित कर रही है। रोज रेडियो आपसे कह रहा है कि यही सिगरेट, यही साबुन, यही टुथपेस्ट श्रेष्ठतम है। बस इसको कहे चला जा रहा है। अखबार में रोज बड़े-बड़े अक्षरों में आप यही पढ़ रहे हैं। रास्ते पर निकलते हैं, पोस्टर भी यही कहता है। और इस सबको कहने के और सम्मोहित करने के सारे उपाय किये जाते हैं, क्योंकि अगर कोई इतना ही कहे कि बिनाका टुथपेस्ट सबसे अच्छा है, तो मन में बहुत गहरा नहीं जाता। लेकिन पास में एक खबसरत अभिनेत्री को भी खड़ा कर दिया जाये, तो मन में ज्यादा जाता है। अब बिनाका अभिनेत्री का सहारा लेकर मन की गहराइयों में चला जायेगा। अभिनेत्री मुस्कुराती हो, झूठे सही, लेकिन मोतियों जैसे चमकते दांत पकड़ लेते हैं मन को। बिनाका गौण हो जाता है, अभिनेत्री प्रमुख हो जाती है। अभिनेत्री का सहज सम्मोहन है क्योकि सेक्स का सहज सम्मोहन है। वासना, कामवासना का सहज सम्मोहन है। इसलिए आज दनिया में कोई भी चीज बेचनी हो, तो बिना स्त्री के सहारे के बेचना मुश्किल है। या बिना पुरुष के सहारे के बेचना मुश्किल है।
पहले उसे सम्मोहित करने के लिए काम-आविष्ट करना जरूरी है। अगर अभिनेत्री नग्न खड़ी हो, तो आपको पता नहीं होगा...अब वैज्ञानिक कहते हैं कि आपकी आंखों की जो पुतली है, तत्काल बड़ी हो जाती है, जब नग्न स्त्री को आप देखते हैं। और आप कुछ भी करें, वह नानवालेन्टरी है। आपके हाथ में नहीं है मामला। आप कितना ही संयम साधे और कुछ भी करें, आप आंख की पुतली को बड़ा होने से नहीं रोक सकते। जब आप नग्न चित्र देखते हैं, तब आंख की पुतली तत्काल बड़ी हो जाती है। क्यों? क्योंकि आपके भीतर की आसक्ति पूरी तरह देखना चाहती है। तो आंख का जो लेंस है, बड़ा हो जाये, ताकि पूरा चित्र भीतर चला जाये।
और जब आंख की पुतली बड़ी हो जाती है, वही मेक्सकोली आपकी आंख में पांच मिनट देखकर करता है, वह एक नग्न स्त्री बिना
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