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संग्रह : अंदर के लोभ की झलक
हुआ। लेकिन आज ईंट चोरी चली गयी, छाती पीट कर रो रहे हैं। जिस ईंट से कभी कोई खुशी नहीं मिली, उसके लिए रोने का क्या अर्थ है? और जो ईंट तिजोड़ी में ही रखी थी वह सोने की थी कि पत्थर की इससे क्या फर्क पडता है? कोई फर्क नहीं पड़ता। छाती पर वजन ही रखना है तो सोने का रख लो कि पत्थर का रख लो।
महावीर का अर्थ है मूर्छा से, वस्तुएं हमसे ज्यादा मूल्यवान हो जायें तो मूर्छा है। रस्किन ने कहा है कि धनी आदमी तब होता है, जब वह धन को दान कर पाता है। नहीं तो गरीब ही होता है। रस्किन का मतलब यह है कि आप धनी उसी दिन हैं, जिस दिन आप धन को छोड़ पाते हैं। अगर नहीं छोड़ पाते तो आप गरीब ही हैं। पकड़ गरीबी का लक्षण है, छोड़ना मालकियत का लक्षण है। अगर किसी चीज को आप छोड़ पाते हैं, तो समझना कि आप उसके मालिक हैं; और अगर किसी चीज को आप केवल पकड़ ही पाते हैं तो आप भूल कर मत समझना कि आप उसके मालिक हैं। इसका तो बड़ा अजीब मतलब हुआ। इसका मतलब हुआ कि जो चीजें आप किसी को बांट देते हैं, उनके आप मालिक हैं। और जो चीजें आप पकड़कर बैठे रहते हैं, उनके आप मालिक नहीं हैं।
दान मालकियत है; क्योंकि जो आदमी दे सकता है, वह यह बता रहा है कि वस्तु मुझसे नीची है, मुझसे ऊपर नहीं। मैं दे सकता हूं। देना मेरे हाथ में है। और जो व्यक्ति देकर प्रसन्न हो सकता है, उसकी मूर्छा टूट गयी। जो व्यक्ति केवल लेकर ही प्रसन्न होता है और देकर दुखी हो जाता है, वह मूर्छित है। त्याग का ऐसा है अर्थ ।
त्याग का अर्थ है-दान की अनंत क्षमता. देने की क्षमता। जितना बड़ा हम दे पाते हैं. जितना ज्यादा हम दे पाते हैं. उतने ही हम मालिक होते चले जाते हैं। इसलिए महावीर ने सब दे दिया। महावीर ने कुछ भी नहीं बचाया। जो भी उनके पास था, सब देकर वे नग्न होकर चले गये। इस सब देने में, सिर्फ एक आंतरिक मालकियत की उदघोषणा है। इस देने को याद भी नहीं रखा कि मैंने कितना दे दिया। अगर याद भी रखे कोई, तो उसका मतलब हआ कि वस्तुओं की पकड़ जारी है। अगर कोई कहे कि मैंने इतना दान कर दिया, इसे दोहराये!
एक मित्र मेरे पास आये थे। उन्होंने कहा, पर्चा भी छपाये हुए हैं वे, कि एक लाख रुपया उन्होंने दान किया हुआ है। उन्होंने मुझे कहा कि मैं अब तक लाख रुपया दान कर चुका हूं। नहीं, उनकी पत्नी ने मुझे कहा कि मेरे पति लाख रुपया दान कर चुके हैं। उन्होंने पत्नी की तरफ बड़ी हैरानी से देखा और कहा कि पर्चा पुराना है, अब तो एक लाख, दस हजार! ___ एक पैसा दान नहीं हो सका इन सज्जन से। एक लाख दस हजार इनके एकाउंट में अब भी उसी भांति हैं जैसे पहले थे, उसी तरह गिनती में है। यह भला कह रहे हों कि दान कर दिया है, दान हो नहीं पाया। क्योंकि जो दान याद रह जाये वह दान नहीं है। ___ सुना है मैंने, मुल्ला नसरुद्दीन के घर में कोई मेहमान आया हुआ है। बहुत दिन का पुराना मित्र है और मुल्ला उसे खिलाये चले जा रहे हैं। कोई बहुत बढ़िया मिठाई बनायी है। बार-बार आग्रह कर रहे हैं, तो उस मित्र ने कहा कि बस अब रहने दें। तीन बार तो मैं ले ही चुका हूं। मुल्ला ने कहा, छोड़ो भी, ले तो तुम छह बार चुके हो, लेकिन गिन कौन रहा है? फिक्र छोड़ो, ले तुम छह बार चुके हो, लेकिन गिन कौन रहा है? __ आदमी का मन ऐसा है, गिन भी रहा है और सोचता है गिन कौन रहा है? त्याग अकसर ऐसा ही चलता है। आदमी कहता है, छोड़ दिया और दूसरी तरफ से पकड़ लेता है, गिनती किये चला जाता है। फिर भी सोचता है, गिन कौन रहा है? पैसा तो मिट्टी है, लेकिन एक लाख दस हजार मैंने दान कर दिया। मिट्टी के दान को कोई याद रखता है। दान तो हम तभी याद रखते हैं जब सोने का होता है। लेकिन अगर मिट्टी ही है तो फिर याददाश्त की कोई जरूरत नहीं।
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