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महावीर-वाणी
भाग : 1
कारण नहीं था क्योंकि हीरा तो वहां है नहीं। आपकी मान्यता के कारण है। आपका प्रोजेक्शन था, आपका 'प्रक्षेप' था। आपने एक धारणा हीरे पर फैला ली, वह आपको सुख दे गयी। जिस स्त्री में आपको सौंदर्य दिखता है, जिस पुरुष में सौंदर्य दिखता है, जहां आपको रस दिखता है, वह आपकी फैली हुई धारणा है। उस धारणा के कारण ही सारा उपद्रव है। ___ इस धारणा को ही ठीक से देख ले कोई व्यक्ति तो सुख तिरोहित हो जाता है। और तब दुख का एक सागर दिखायी पड़ता है। तब वास्तविकता दिखायी पड़ती है सुख की छाया के नीचे छिपी हुई, कि हम सिर्फ दुख झेल रहे हैं। अनेक-अनेक प्रकार के दुख झेल रहे हैं, अभाव के, भाव के होने के, न होने के; गरीबी के, समृद्धि के; यश के; अपयश; न मालूम कितने दुख झेल रहे हैं।
इतना दुख का यह उदघाटन, पश्चिम में लोगों को लगा कि ये महावीर, ये बुद्ध, ये सब दुखवादी हैं। ये क्यों इतना दुख को उघाड़ते हैं? क्यों घाव को उघाड़ते हैं? अच्छा हो कि घाव हो तो पलस्तर करके ढांक देना चाहिए। गंदी नाली हो तो थोड़ी-सी सुगंध ऊपर छिड़ककर फूल लगा देना चाहिए।
ये...ये क्यों सारे घावों को उघाड़कर भीतर की पीड़ा को, भीतर की दुर्गंध को बाहर लाना चाहते हैं? ये बड़े खतरनाक लोग मालूम पड़ते हैं। ये तो जीवन को नष्ट कर देंगे, ये तो जीवन के प्रति एक विरक्ति, जीवन के प्रति एक अलगाव पैदा कर देंगे।
लेकिन नहीं, महावीर और बुद्ध का वैसा प्रयोजन नहीं है। वे चाहते हैं कि जो सत्य है वह दिखायी पड़ जाये। जीवन की जो भ्रांति है वह टूट जाये, तो शायद हम किसी और गहरे जीवन की खोज में जा सकें। वह जो हमने ढांक-ढांक कर एक झुठा जीवन बना रखा है उसकी पर्त-पर्त उखड़ जानी चाहिए। वे जो हमने झूठे मुखौटे लगा रखे हैं, वे जो हमने झूठी धारणाएं अपने चारों तरफ फैला रखी हैं, वे सब गिर जानी चाहिए। वे गिर जायें तो शायद हमारी जीवन ऊर्जा व्यर्थ कामों में संलग्न न रहे और सार्थक की खोज पर निकल जाये। ___ इसलिए महावीर कहते हैं कि- 'जो मनुष्य इस प्रकारण दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करता है, इंद्रियों से अपने को खींच लेता है, भीतर तोड़ देता है रस, उसे देव, दानव, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, किन्नर सभी नमस्कार करते हैं।'
महावीर और बुद्ध पहले व्यक्ति हैं मनुष्य जाति के इतिहास में निश्चित ही महावीर पहले, क्योंकि बुद्ध महावीर से थोड़े बाद में पैदा हए-महावीर पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने कहा कि एक ऐसा क्षण भी है मनुष्य की चेतना का, जब देवता भी उसे नमस्कार करते हैं, नहीं तो दुनिया के सारे धर्म मानते हैं कि मनुष्य सदा देवताओं को नमस्कार करता है। . देवता मनुष्य को नमस्कार करते हैं, इससे ज्यादा मनुष्य के प्रति महिमा की बात और कुछ और नहीं हो सकती। महावीर ने कहा कि ऐसा भी क्षण है मनुष्य के जीवन में, जब देवता उसे नमस्कार करते हैं। इसका क्या अर्थ हुआ? इसका अर्थ हुआ कि देवता भ्रांति में हैं। चेतना जब पूरी जागती है मनुष्य की और सुख का भ्रम टूट जाता है, तो स्वर्ग का भ्रम भी टूट जाता है। देवता वर्ग के वासी हैं। उसका अर्थ है-सुख के वासी हैं। देवता इंद्रियों में ही जीते हैं। बड़ा मजा है, इसलिए हमने इंद्र नाम दिया है देवताओं के सम्राट को। वह इंद्रियां ही इंद्रियां है। इसलिए इंद्र है। देवता सुख में ही जीते हैं। देवता का अर्थ है—जो सुख में ही जी रहा है। लेकिन इसका तो मतलब यह हुआ कि महावीर के हिसाब से कि जो इंद्रियों में और सुख में जी रहा है, वह बड़ी गहन भ्रांति में जी रहा है। वह एक लंबे स्वप्न में डूबा है। वह स्वप्न सुखद होगा, प्रीतिकर होगा, दुखद न होगा, लेकिन एक लंबा स्वप्न है। अगर महावीर को हम ठीक से समझें तो नरक, एक नाइट मेयर, एक दुख स्वप्न, लंबा दुख स्वप्न है। स्वर्ग एक सुख स्वप्न है, एक अच्छा सपना है, लंबा। इसलिए महावीर ने कहा है कि देवता को भी मोक्ष पाना हो, तो उसे वापस मनुष्य के जन्म में आ जाना पड़ता है
मनुष्य चौराहा है।
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