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________________ सत्य सदा सार्वभौम है हैं। क्योंकि सहारा देना पड़ता है। जितना असत्य बोलना हो, उतना जोर से बोलना चाहिए। धीमे बोलो, लोग समझेंगे, कुछ गड़बड़ है। जोर से बोलो। टेबल को पीटकर बोलो। सागर यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर थे डा. गौड़। वे बड़े वकील थे। उन्होंने मुझ से कहा कि मेरे गुरू ने मुझे कहा कि जब तुम्हारे पास कानूनी प्रमाण हों अदालत में, तो धीरे बोलने से भी चल जायेगा। जब तुम्हारे पास प्रमाण हों कानूनी, तो किताबें ले जाने की और कानूनों का उल्लेख करने की कोई आवश्यकता नहीं। जब तुम्हारे पास कानूनी प्रमाण न हों तो अदालत बड़े-बड़े ग्रंथ लेकर पहुंचना। और जब तुम्हें पक्का हो कि इसके विपरीत प्रमाण है, तब टेबल को जितने जोर से पीट सको, जज के सामने पीटना। ___ जितना बड़ा असत्य हो, उतने निश्चय से बोलना पड़ता है। नहीं तो आपके असत्य को कोई मानेगा कैसे? इसलिए असत्य बोलने के लिए भोली शक्ल हो, निश्चयवाला मन हो, आवाज तेज हो, तो आप कुशल हो सकते हैं, नहीं तो मुश्किल में पड़ेंगे। साधु होने के लिए भोली शक्ल उतनी आवश्यक नहीं। इसलिए अकसर भोली शक्ल के साधु खोजना मुश्किल है, लेकिन भोली शक्ल के अपराधी निरंतर मिल जायेंगे; क्योंकि अपराध के लिए भोली शक्ल अनिवार्य जरूरत है ! झूठ बोलने के लिए और तरह के प्रमाण चाहिए, हवा चाहिए। ___ महावीर कहते हैं, सत्य को भी निश्चय से मत बोलना। इसलिए महावीर का बहुत प्रभाव नहीं पड़ा। हैरानी की बात है, महावीर जैसी ज्वलंत प्रतिभा के व्यक्ति का प्रभाव न्यून पड़ा, न के बराबर पड़ा। जीसस को माननेवाली आधी दुनिया है। बुद्ध को माननेवाले करोड़ों-करोड़ों लोग हैं। मोहम्मद को माननेवाले करोड़ों-करोड़ों लोग हैं। महावीर को माननेवाला कोई भी नहीं है। वह जो पच्चीस लाख लोग दिखायी पड़ते हैं उनको मानते हुए, वे भी मजबूरी में। कोई माननेवाला नहीं है। ___ महावीर को मानना कठिन है, क्योंकि मानने में गुरु के पास आदमी जाता है इसलिए कि हम अनिश्चित हैं, आप निश्चयता से कुछ कहें तो भरोसा मिले, और महावीर निश्चय से बोलते नहीं। वे कहते हैं, एक ही बात निश्चित है कि निश्चित रूप से सत्य बोला नहीं जा सकता। तो जो आदमी आश्वासन खोजने आया है और सभी लोग आश्वासन खोजने आते हैं गुरु के पास – वह ऐसे गुरु को कैसे मान पायेगा ! महावीर को मानने के लिए तो बड़ी गहन जिज्ञासा चाहिए, बड़ी गहन जिज्ञासा। आश्वासन की तलाश नहीं, सांत्वना नहीं, खोज। इसलिए बहुत थोड़े-से लोग महावीर को मान पाये। ज्यादा लोग कभी भी मान सकेंगे, यह शक मालूम पड़ता है। लेकिन किसी न किसी दिन जैसे-जैसे मनुष्य का मन विस्तीर्ण होगा और सत्य के अनंत पहलू हमें दिखायी पड़ने शुरू होंगे, वैसे-वैसे हमें, निश्चय का जोर गिर जायेगा। निश्चय कमजोरी है, अनिश्चय बड़ी प्रज्ञा है। आइंस्टीन अनिश्चत है विज्ञान के जगत में। महावीर अनिश्चत हैं दर्शन के जगत में। ये दो शिखर हैं, अदभुत । महावीर ने दर्शन को जितना दिया उतना ही आइंस्टीन ने विज्ञान को दिया। दोनों अनिश्चित हैं। महावीर का नाम है स्यातवाद, आइंस्टीन का नाम है रिलेटिविटी। आइंस्टीन कहता है, कोई भी सत्य निरपेक्ष नहीं है, सापेक्ष है, तुलना में है, किसी की तुलना में है, सीधा पूर्ण सत्य कुछ भी नहीं है। विज्ञान को हम सोचते थे, बहुत निश्चित बात, लेकिन नया विज्ञान एकदम अनिश्चित होता चला जाता है। मेरी अपनी समझ यह है कि जहां भी सत्य के निकट पहुंचता है मनुष्य, वहीं अनिश्चित हो जाता है। जब हम दर्शन में सत्य के निकट पहंचे महावीर के साथ, तो अनिश्चय हो गया। स्यात, रिलेटिव, निरपेक्ष नहीं, सापेक्ष। कहो, 401 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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