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सत्य सदा सार्वभौम है
वाला, और जब भी हम बोलते हैं, एक पहलू जाहिर होता है। एक पहलू, अनंत पहलुओं में से। अगर हम उस पहलू को इतना निश्चय से बोलते हैं कि ऐसा मालूम होने लगे कि यही पूर्ण सत्य है, तो असत्य हो गया।
इसलिए महावीर ने सप्त-भंगी निर्मित की-बोलने का सात अंगों वाला ढंग। तो महावीर से आप एक सवाल पछिए तो वे सात जवाब देते थे। क्योंकि वे कहते कि...और सात जवाब सुनते-सुनते आपकी बुद्धि चकरा जाए, और फिर आपको एक भी जवाब समझ में न आये। क्योंकि आप पूछ रहे हैं कि यह आदमी जिंदा है कि मर गया। अब यह साफ कहना चाहिए कि हां, मर गया कि हां, जिंदा है, इसमें सात का क्या सवाल है। लेकिन महावीर कहते, स्यात मर गया, शायद जिंदा है, शायद दोनों है। शायद दोनों नहीं है। ऐसा वे सात भंगियों में उत्तर देते। आपको कछ समझ में न पडता। लेकिन महावीर सत्य बोलने की अथक चेष्टा किए हैं. ऐसी चेष्टा किसी आदमी ने पृथ्वी पर कभी नहीं की। __ लेकिन सत्य बोलने की चेष्टा अति जटिल मामला है। जब कहते हैं आप, एक आदमी मर गया, जरूरी नहीं है, मर गया हो। क्योंकि अभी इसकी छाती पर मसाज की जा सकती है। अभी इसे आक्सीजन दी जा सकती है। अभी खून दौड़ाया जा सकता है
और हो सकता है यह जिंदा हो जाये। तो आपका कहना कि यह मर गया है, गलत है। ___ रूस में पिछले महायुद्ध में कोई बीस लोगों पर प्रयोग किये गये। उसमें से छह जिंदा हो गये, वे अभी भी जिंदा हैं। डाक्टर ने लिख दिया था, वे मर गये। __मृत्यु भी कई हिस्सों में घटित होती है शरीर में। मृत्यु कोई इकहरी घटना नहीं है। जब आप मरते हैं तो पहले आपके जो बहुत जरूरी...बहुत जरूरी हिस्से हैं, वे टूटते हैं,ऊपरी हिस्से टूट जाते हैं, जो आपको परिधि पर संभाले हुए हैं, जो आपको शरीर से जोड़े
टूटते हैं। लेकिन अभी आप मर नहीं गये। अभी आप जिलाये जा सकते हैं। अभी अगर हृदय दूसरा लगाया जा सके तो आप फिर जी उठेंगे, धड़कन फिर शुरू हो जायेगी। लेकिन यह हो जाना चाहिए छह सेकेंड के भीतर। अगर छह सेकेंड पार हो गये...तो जो लोग भी हृदय के टूट जाने से मरते हैं, हार्ट फेल्योर से मरते हैं वे छह सेकेंड के भीतर उनमें से बहुत-से लोग पुनरुज्जीवित हो सकते हैं, और इस सदी के भीतर पुनरुज्जीवित हो जायेंगे। लेकिन छह सेकेंड के भीतर उनका हृदय बदल दिया जाना चाहिए। इसका तो इतना जल्दी उपाय हो नहीं सकता, इसका एक ही उपाय वैज्ञानिक सोचते हैं जो कि जल्दी कारगर हो जायेगा कि एक एक्सट्रा, स्पेयर हृदय पहले से ही लगा रखना चाहिए। और यह आटोमेटिक चेंज होना चाहिए। जैसे ही पहला हृदय बंद हो, दूसरा धड़कना शुरू हो जाये, तो ही छह सेकेंड के भीतर यह हो जायेगा। आदमी जिंदा रहेगा। लेकिन अगर छह सेकेंड से ज्यादा हो गया, तो मस्तिष्क के गहरे तंतु टूट जाते हैं, उनको स्थापित करना मुश्किल है। और एक दफा वे टूट जायें तो फिर हृदय भी नहीं धड़क सकता। क्योंकि वह भी मस्तिष्क की आज्ञा से ही धड़कता है। आपको पता हो आज्ञा का या न पता हो।
इसलिए अगर आदमी कोई पूरे मन से भाव कर ले मरने का, तो इसी वक्त मर सकता है। या कोई जीवन की बिलकुल आशा छोड़ दे इसी वक्त, तो मस्तिष्क अगर आशा छोड़ दे पूरी तो हृदय धड़कना बंद कर देगा, क्योंकि आज्ञा मिलनी बंद हो जायेगी। इसलिए आशावान लोग ज्यादा जी लेते हैं, निराश लोग जल्दी मर जाते हैं।
ध्यान रखना, दुनिया में सहज मृत्यूएं बहुत कम होती हैं। स्वाभाविक मत्य बडी मश्किल घटना है। अधिक लोग आत्महत्या से मरते हैं-अधिक लोग। लेकिन जब कोई छुरा मारता है, तो हमें दिखायी पड़ता है और जब कोई निराशा मारता है भीतर, तो हमें दिखायी नहीं पड़ता है। जब कोई जहर पी लेता है तो हमें दिखायी पड़ता है कि उसने आत्मघात कर लिया, बिचारा! और आप भी आत्मघात से ही मरेंगे। सौ में निन्यानबे मौके पर आदमी आत्मघात से मरता है।
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