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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 रास्ते पर एक आदमी मिला, पूछते हैं, कैसे हैं, कहते हैं बड़े मजे में हैं। कभी नहीं सोचते कि क्या कहा ! बड़े मजे में हैं ! एक दफा फिर से सोचें, बड़े मजे में हैं ? कहीं कोई भीतर समर्थन न मिलेगा। लेकिन जब कोई पूछता है, रास्ते पर, कैसे हैं ? तो कहते हैं, बड़े मजे में हैं। और जब कहते हैं, बड़े मजे में हैं, तो पैर की चाल बदल जाती है। टाई वगैरह ठीक करके चलने लगते हैं। ऐसा लगता भी है कि बड़े मजे में हैं। दूसरे से कहने में ऐसा लगता भी है। चार लोग पूछ लें तो दिल खुश हो जाता है। कोई न पूछे, दिल उदास हो जाता है। जब कोई आदमी कहता है, हे ! हलो ! भीतर गुदगुदी हो जाती है। लगता भी है उस क्षण में कि जिंदगी बड़े मजे में जा रही है। __ हम दूसरे से ही कह रहे हों, ऐसा नहीं है, इसलिए ये कामचलाऊ असत्य हैं। ये उपयोगी हैं, एक दूसरे को हम ऐसे सहारा देते रहते हैं उसके झुठों में। ___ महावीर कहते हैं, काम चलाऊ असत्य भी नहीं। कुछ भी हम बोलते रहते हैं। आदतन असत्य हैं-आदतन। कोई कारण नहीं होता, कोई हेतु नहीं होता, आदतन बोलते रहते हैं। मेरे एक प्रोफेसर थे। किसी भी किताब का नाम लो, वे सदा कहते, हां मैंने पढ़ी थी, पंद्रह-बीस साल हो गये। यह आदतन था। क्योंकि पंद्रह-बीस साल वे सदा कहते थे। सारी किताबें उन्होंने पंद्रह-बीस साल पहले नहीं पढ़ी होंगी। कोई सोलह साल पहले पढ़ी होगी, कोई दस साल पहले पढ़ी होगी, कोई पचास साल पहले पढ़ी होंगी। बूढ़े आदमी थे, लेकिन वे सदा कहते, पंद्रह-बीस साल पहले मैंने यह किताब पढ़ी थी। यह तकिया कलाम था - आदतन। ___ फिर मैंने ऐसी-ऐसी किताबों के नाम लिए जो कि हैं ही नहीं, पर वे उनके लिए भी कहते कि हां मैंने पढ़ी थी, पंद्रह-बीस साल पहले। तब मुझे पता चला, कि वे झूठ नहीं बोलते हैं, आदतन झूठ बोलते हैं। ऐसा उनकी आंख से भी पता नहीं चलता था कि वे झूठ बोल रहे हैं। और झूठ बोलने का कोई कारण भी नहीं था। कोई उन किताबों को पढ़ा हो, न पढ़ा हो, इससे उनकी प्रतिष्ठा में भी फर्क नहीं पड़ता था। वे काफी प्रतिष्ठित थे। एक दिन मैंने उनको जाकर कहा कि यह किताब तो है ही नहीं, जिसको आपने पंद्रह-बीस साल पहले पढ़ा था। न तो यह कोई लेखक है, न यह कोई किताब है। तो उन्हें होश आया। उन्होंने कहा, कि वह मेरी आदत हो गयी है। पर यह आदत क्यों हो गयी है ? इस आदत के पीछे कहीं गहरा कोई हेतु है ! ऐसी कोई किताब हो कैसे सकती है जो प्रोफेसर ने न पढ़ी हो। वह हेतु है, बहुत गहरा दब गया वर्षों पीछे। लेकिन अब आदतन है। आप बहुत-सी बातें आदतन बोल रहे हैं। जो असत्य हैं। ___महावीर बारह साल तक चुप हो गये। फिर ऐसी बातें हैं, जो अनिश्चित हैं। इसलिए जब आप कह देते हैं कि फलां आदमी पापी है, तो आप गलत बात कह रहे हैं, क्योंकि आपको जो खबर है वह पुरानी पड़ चुकी है। पापी इस बीच पुण्यात्मा हो गया हो। क्योंकि पापी कोई ठहरी हई बात नहीं है, जो आज सुबह पापी था, सांझ साध हो सकता है। और जो आज सुबह परम साधु था, सांझ पापी हो सकता है। जिंदगी तरल है, लेकिन शब्द फिक्स्ड होते हैं। आप कहते हैं फलां आदमी पापी है। महावीर न कहेंगे। वे कहेंगे कि आदमी एक प्रवाह है। तो महावीर कहेंगे स्यात। शायद पापी हो, शायद पुण्यात्मा हो। ___ फिर जो आदमी पापी है वह पाप करने में भी पूरा पापी नहीं होता। उसके पाप में भी पुण्य का हिस्सा हो सकता है, और जो आदमी पुण्य कर रहा है, उसके पुण्य में भी पाप का हिस्सा हो सकता है। 396 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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