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सत्य सदा सार्वभौम है
बुढ़ापे में भी आपको कामवासना पीछा करती हो तो उसका मतलब ही यह है कि आप कामवासना जान न पाये, आप पूरी ऊर्जा न लगा पाये कि अनुभव पूरा हो जाता, कि आप उसके बाहर निकल आते। जब अनुभव पूरा होता है, हम उसके बाहर हो जब अधूरा होता है, हम अटके रह जाते हैं।
तो ब्रह्मचर्य इसलिए है कि शक्ति पूरी इकट्ठी हो जाये, और प्रबल वेग से आदमी गृहस्थ में प्रवेश कर सके. वासना में प्रवेश कर सके, प्रबल वेग से। पच्चीस वर्ष, पचास वर्ष तक वह वासना के जीवन में पूरी वा रहे, पूरी तरह समग्रता से। यही उसे बाहर निकालने का कारण बनने लगेगा। __ और तब पच्चीस वर्ष तक वह जंगल की तरफ मुंह कर ले, वानप्रस्थ हो जाये। रहे घर में,अभी जंगल चला न जाये, क्योंकि एक दम से घर और जंगल जाने में हिंदू विचार को लगता है, छलांग हो जायेगी, क्रमिक न होगा। और जो आदमी एकदम घर से जंगल में चला गया, वह घर को जंगल में ले जायेगा। उसके मस्तिष्क में जंगल...जंगल बाहर होगा, मस्तिष्क में घर आ जायेगा। __हिंदू विचार कहता है, पच्चीस साल तक वह घर पर ही रहे, जंगल की तरफ मुंह रखे। ध्यान जंगल का रखे, रहे घर पर। अगर जल्दी चला जायेगा तो रहेगा जंगल में, ध्यान होगा घर का। पच्चीस साल तक सिर्फ ध्यान को जंगल ले जाये। जब पूरा ध्यान जंगल पहुंच जाये, तब वह भी जंगल चला जाये, तब वह संन्यासी हो। पिचहत्तर वर्ष की उम्र में संन्यासी हो। इसके अपने उपयोग हैं। कुछ लोगों के लिए शायद यही प्रीतिकर होगा।
लेकिन हम हैं बेईमान। हम हर सत्य से अपने हिसाब की बातें निकाल लेते हैं। हम सोचेंगे, ठीक, यह हमारे लिए बिलकुल उपयोगी जंचता है। इसलिए नहीं कि आपके लिए उपयोगी है, बल्कि सिर्फ इसलिए कि इसमें पोस्टपोन, स्थगन करने की सुविधा है। न बचेंगे पिचहत्तर साल के बाद, और न यह झंझट होगी। और घर में ही रहेंगे, रहा वानप्रस्थ, वन की तरफ मुंह रखने की बात, सो वह भीतरी बात है, किसी को उसका पता चलेगा नहीं।
अपने को धोखा हम किसी भी चीज से दे सकते हैं। फिर महावीर की सारी जो साधना प्रक्रिया है, वह हिंदू साधना प्रक्रिया से अलग है। और इसलिए महावीर की साधना प्रक्रिया का ही उपयोग करना पडेगा, अगर जवान संन्यासी हो तो। क्योंकि तब ऊर्जा के प्रबल वेग को रूपांतरित करने की क्रियाओं का उपयोग करना पड़ेगा
बूढ़ा सौम्यता से संन्यास में प्रवेश करता है। जवान तूफान, आंधी की तरह संन्यास में प्रवेश करता है। इन सबकी प्रक्रियाएं अलग हैं। एक बात लेकिन तय है कि महावीर और बुद्ध ने युवा जीवन ऊर्जा को संन्यास में बदलने की जो कीमिया है, उसके पहले सूत्र निर्मित किये। वह हिंदू विचार की देन नहीं है। और अगर हिंदू संन्यासी, पीछे युवक संन्यास भी लिये, और युवा संन्यास के आंदोलन
भी चलाये शंकराचार्य ने, तो उन पर अनिवार्य रूप से महावीर और बुद्ध की छाप है। ___ इतना अनुदार नहीं होना चाहिए कि सभी कुछ हमसे ही निकले। परमात्मा सब तरफ है, और परमात्मा हजार आवाजों में बोला
जें परिपूरक हैं। किसी न किसी दिन हम उस सारभूत धर्म को खोज लेंगे, जो सब धर्मों में अलग-अलग पहलुओं से छिपा है। उस दिन ऐसा कहने की जरूरत न होगी कि हिंदु धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म। ऐसा ही कहने की बात रह जायेगी, धर्म की तरफ जाने वाला जैन रास्ता, धर्म की तरफ जाने वाला बौद्ध रास्ता, धर्म की तरफ जाने वाला हिंदू रास्ता; ये सब रास्ते हैं और धर्म की तरफ जाते हैं। इसलिए हम अपने मुल्क में इनको संप्रदाय कहते थे, धर्म नहीं। कहना भी नहीं चाहिए। धर्म तो एक ही हो सकता है, संप्रदाय
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