________________
सत्य सदा सार्वभौम है
का कोई अर्थ नहीं रह जाता। जब साधन होते हैं, उत्तेजना होती है, कामपिटिशन होता है, जब ऊर्जा दौड़ती हुई होती है किसी प्रवाह में, तब उसके रुख को बदल लेना साधना है।
इसलिए महावीर का सारा बल युवा शक्ति पर है।
दूसरी बात, महावीर और बुद्ध दोनों की क्रांति वर्ण और आश्रम के खिलाफ है। न तो वे समाज में वर्ण को मानते हैं कि कोई आदमी बंटा हुआ है खण्ड-खण्ड में, न वे व्यक्ति के जीवन में बंटाव मानते हैं कि व्यक्ति बंटा हआ है खण्ड-खण्ड में।
वे कहते हैं, जीवन एक तरलता है। और किसी को वृद्धावस्था में अगर संन्यास का फल खिला है, तो उसे समाज का नियम बनाने की कोई भी जरूरत नहीं है। किसी को जवानी में भी खिल सकता है। किसी को बचपन में भी खिल सकता है। इसे नियम बनाने की कोई भी जरूरत नहीं है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति बेजोड़ है।
इसे थोड़ा समझ लें। हिंदू चिंतन मानकर चलता है कि सभी व्यक्ति एक जैसे हैं। इसलिए बांटा जा सकता है। जैन और बौद्ध चिंतन मानता है कि व्यक्ति बेजोड हैं. बांटे नहीं जा सकते। हर आदमी बस अपने जैसा ही है। इसलिए कोई नियम लागू नहीं हो सकता। उस आदमी को अपना नियम खुद ही खोजना पड़ेगा। और इसलिए कोई व्यवस्था ऊपर से नहीं बिठायी जा सकती। न तो हम समाज को बांट सकते हैं कि कौन शूद्र है और कौन ब्राह्मण है। क्योंकि महावीर जगह-जगह कहते हैं कि मैं उसे ब्राह्मण कहता है, जो ब्रह्म को पा ले। उसको ब्राह्मण नहीं कहता जो ब्राह्मण घर में पैदा हो जाये। मैं उसे शूद्र कहता हूं, जो शरीर की सेवा में ही लगा रहे। उसे शूद्र नहीं कहता जो शूद्र के घर पैदा हो आये। जो शरीर की ही सेवा में और शृंगार में लगा रहता है चौबीस घंटे, वह शूद्र है।
बड़े मजे की बात है, इसका अर्थ हुआ कि एक अर्थ में हम सभी शूद्र की भांति पैदा होते हैं, सभी। जरूरी नहीं है कि हम सभी ब्राह्मण की भांति मर सकें। मर सकें तो सौभाग्य है। सफल हो गये।
और फिर एक-एक व्यक्ति अलग है, क्योंकि महावीर कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति हजारों-हजारों जन्मों की यात्रा के बाद आया है। इसलिए बच्चे को बच्चा कहने का क्या अर्थ है ? उसके पीछे भी हजारों जीवन का अनुभव है। इसलिए दो बच्चे एक जैसे बच्चे नहीं होते। एक बच्चा बचपन से ही बूढ़ा हो सकता है। अगर उसे अपने अनुभव का थोड़ा-सा भी स्मरण हो तो बचपन में ही संन्यास घटित हो जायेगा। और एक बूढ़ा भी बिलकुल बचकाना हो सकता है। अगर उन्हें इसी जीवन की कोई समझ पैदा न हुई हो, तो बुढ़ापे में भी बच्चों जैसा व्यवहार कर सकता है।
तो महावीर कहते हैं, यात्रा है लंबी। सभी हैं बूढ़े; एक अर्थ में, सभी को अनुभव है। इसलिए जब ऊर्जा ज्यादा हो तब इस अनंत-अनंत जीवन के अनुभव का उपयोग करके जीवन को रूपांतरित कर लेना चाहिए।
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि हिंदू परिवारों में युवा संन्यासी नहीं हुए। लेकिन वे अपवाद हैं। और जो महत्वपूर्ण संन्यासी हिंदू परंपरा में हुए, शंकर जैसे लोग, वे सब बुद्ध और महावीर के बाद हुए। ___ संन्यास की जो धारा शंकर ने हिंदू विचार में चलायी, उस पर महावीर और बुद्ध का अनिवार्य प्रभाव है। क्योंकि हिंदू विचार से मेल नहीं खाती कि जवान आदमी संन्यास ले ले। इसलिए शंकर के जो विरोधी हैं, रामानुज, वल्लभ, निंबार्क, वे सब कहते हैं कि वे प्रच्छन्न बौद्ध हैं, छिपे हुए बौद्ध हैं। वे असली हिंदू नहीं हैं। ठीक हिंदू नहीं हैं, क्योंकि सारी गड़बड़ कर डाली है। बड़ी गड़बड़ तो यह कर दी कि आश्रम की व्यवस्था तोड़ डाली। शंकर तो बच्चे ही थे, जब उन्होंने संन्यास लिया। महावीर तो जवान थे, जब उन्होंने संन्यास लिया। शंकर तो बिलकुल बच्चे थे। तैंतीस साल में तो उनकी मृत्यु ही हो गयी।
387
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org