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महावीर-वाणी भाग : 1 लेकिन महावीर और बुद्ध ने एक क्रांति खड़ी की इस व्यवस्था में। और वह क्रांति यह थी कि संन्यास का फूल कभी भी खिल सकता है। कोई वृद्धावस्था तक रुकने की जरूरत नहीं है। न केवल इतना, बल्कि महावीर ने कहा कि जब युवा है चित्त और जब शक्ति से भरा है शरीर, तभी जो भोग में बहती है ऊर्जा, वह अगर योग की तरफ बहे, तो संन्यास का फूल खिल सकता है।
यह एक दूसरे पहलू से देखने की चेष्टा है, इसका भी अपना मूल्य है। इसमें बहुत फर्क हैं, और कारण हैं फर्को के। इसे हम थोड़ा समझ लें। हिंदू विचार ब्राह्मण की व्यवस्था है। ब्राह्मण का अर्थ होता है, गणित, तर्क, योजना, नियम, व्यवस्था। जैन और बौद्ध विचार क्षत्रियों के मस्तिष्क की उपज हैं-क्रांति, शक्ति, अराजकता।
जैनियों के चौबीस तीर्थंकर क्षत्रिय हैं। बुद्ध क्षत्रिय हैं। बुद्ध के पिछले सारे जन्मों की जो और भी कथाएं हैं, वे भी क्षत्रिय की ही हैं। बुद्ध ने जिन और बुद्धों की बात की है, वे भी क्षत्रिय हैं।
क्षत्रिय के सोचने का ढंग ऊर्जा पर निर्भर होता है, शक्ति पर। ब्राह्मण के सोचने का ढंग अनुभव पर, गणित पर, विचार पर, मनन पर निर्भर होता है। इसलिए ब्राह्मण एक व्यवस्था देता है। क्षत्रिय अराजक होगा। शक्ति सदा अराजक होती है। इसलिए जवान अराजक होते हैं, बूढ़े अराजक नहीं होते। जवान क्रांतिकारी होते हैं, बूढ़े क्रांतिकारी नहीं होते। अनुभव उनकी सारी क्रांति की नोकों को झाड़ देता है। जवान गैर अनुभवी होता है। गैर अनुभवी होता है, शक्ति से भरा होता है। उसके सोचने के ढंग अलग होते हैं।
फिर इतिहासज्ञ कहते हैं, और ठीक कहते हैं कि भारत की यह जो वर्ण-व्यवस्था थी, जिसमें ब्राह्मण सबसे ऊपर था। उसके बाद क्षत्रिय था, वैश्य था, शूद्र था। निश्चित ही, जब भी बगावत होती है किसी विचार, किसी तंत्र के प्रति, तो जो निकटतम होता है, नंबर दो पर होता है, वही बगावत करता है। नंबर तीन और चार के लोग बगावत नहीं कर सकते। इतना फासला होता है कि बगावत का कारण भी नहीं होता। ___ इसलिए ब्राह्मणों के खिलाफ जो पहली बगावत हो सकती थी, वह क्षत्रियों से ही हो सकती थी। वे बिलकुल निकट थे, दूसरी सीढ़ी पर खड़े थे। उनको आशा बनती थी कि वे धक्का देकर पहली सीढ़ी पर हो सकते हैं। शूद्र बगावत नहीं कर सकता था, वह बहुत दूर था, बहुत सीढ़ियां पार करनी थीं। वैश्य बगावत नहीं कर सकता था।
बड़े मजे की बात है, मनुष्य के ऐतिहासिक उत्क्रम में ब्राह्मणों के प्रति पहली बगावत क्षत्रियों से आयी। ब्राह्मणों को सत्ता से उतार दिया क्षत्रियों ने। लेकिन आपको पता है कि क्षत्रियों को फिर वैश्यों ने सत्ता से उतार दिया, और अब वैश्यों को शद्र सत्ता से उतार
__हमेशा निकटतम से होती है क्रांति । जो नीचे था, वह आशान्वित हो जाता है कि अब मैं निकट हूं सत्ता के, अब धक्का दिया जा सकता है। बहुत दूर इतना फासला होता है कि आशा और आश्वासन भी नहीं बंधता है।
जैन और बौद्ध, क्षत्रिय मस्तिष्क की उपज हैं। क्षत्रिय जवानी पर भरोसा करता है, शक्ति पर। शक्ति ही सब कुछ है। इसके सब आयामों में प्रयोग हुए, सब आयामों में। महावीर ने इसका ही प्रयोग साधना में किया, और महावीर ने कहा कि जब ऊर्जा अपने शिखर पर है, तभी उसका रूपांतरण कर लेना उचित है। क्योंकि रूपांतरण करने के लिए भी शक्ति की जरूरत है। और जब शक्ति क्षीण हो जायेगी तब कई दफा धोखा भी पैदा होता है। जैसे, बूढ़ा आदमी सोच सकता है कि मैं ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो गया।
असमर्थता ब्रह्मचर्य नहीं है। अगर ब्रह्मचर्य को उपलब्ध कोई होता है, तो युवा होकर ही हो सकता है। क्योंकि तभी कसौटी है, तभी परीक्षा है। द्ध होकर ब्रह्मचर्य होना, ब्रह्मचारी होना मजबूरी हो जाती है। साधन खो जाते हैं। जब साधन खो जाते हैं तो साधना
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