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महावीर-वाणी
भाग : 1
यह देख रहे हैं कि कितने लोगों ने मुझे प्रार्थना करते देखा, जो यह देख रहे हैं कि कितने लोग मुझे तपस्वी मानते हैं, उपासक मानते हैं, कितने लोग मुझे साधु मानते हैं; जो अभी भी उसमें रस ले रहे हैं वे कहीं से भी यात्रा करें, उनकी यात्रा ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर, अधर्म के रास्ते पर हो जायेगी।
इसका मतलब यह हुआ कि जो आदमी स्वयं में कम उत्सुक है और स्वयं को दिखाने में ज्यादा उत्सुक है, वह अधर्म के रास्ते पर चला जाता है। जिस आदमी को इसमें कम रस है कि मैं क्या हूं, और इसमें ज्यादा रस है कि लोग मेरे संबंध में क्या सोचते हैं, वह अधर्म के रास्ते पर चला जाता है। जो लोगों की आंखों में एक प्रतिबिंब बनाना चाहता है, एक इमेज, वह अधर्म के रास्ते पर चला जाता है। ____धर्म के रास्ते पर तो केवल वे ही जा सकते हैं, जो स्वयं में उत्सुक हैं। स्वयं की वास्तविकता में, स्वयं के आवरण, आभूषण, स्वयं की साज-सज्जा, स्वयं के शृंगार, दूसरों की आंखों में बनी स्वयं की प्रतिमा में जिनकी उत्सुकता नहीं है, केवल वे ही धर्म के रास्ते पर जा सकते हैं। क्योंकि दूसरे तो तभी आदर देते हैं, जब आप कुछ असंभव करके दिखाएं। दूसरे तो तभी आपको मानते हैं, जब आप कोई चमत्कार करके दिखायें। दूसरे तो आपको तभी मानते हैं, जब आप कुछ ऐसा करें, जो वे नहीं कर सकते हैं। तब ।।
जब आप किसी को आदर देते हैं तो आपने कभी खयाल किया है, आपके आदर देने का कारण क्या होता है? सदा कारण यही होता है कि जो आप नहीं कर सकते, वह यह आदमी कर रहा है। अगर आप भी कर सकते हैं, तो आप आदर न दे सकेंगे। आप जाते हैं, कोई सत्य साईं बाबा एक ताबीज हाथ से निकाल कर दे देते हैं, तो आप आदर करते हैं। एक मदारी आदर न कर
पीज तो कुछ भी नहीं, वह कबूतर निकाल देता है हाथ से। वह जानता है कि इसमें आदर जैसा कुछ भी नहीं है, यह साधारण मदारीगीरी है। वह आदर न दे सकेगा। आप आदर दे सकेंगे, क्योंकि आप नहीं कर सकते। जो आप नहीं कर सकते, वह चमत्कार है। फिर यह ताबीजों से ही संबंधित होता तो बहुत हर्जा न था, क्योंकि ताबीजों में बच्चों के सिवाय कोई उत्सुक नहीं होता, न कबूतरों में कोई बच्चों के सिवाय उत्सुक होता है; लेकिन यह और तरह से भी संबंधित है। ___ आप एक दिन भूखे नहीं रह सकते, और एक आदमी तीस दिन का उपवास कर लेता है, तब आपका सिर उसके चरणों में लग जाता है। यह भी वही है, इसमें भी कुछ मामला नहीं है। आप ब्रह्मचर्य नहीं साध सकते और एक आदमी बाल ब्रह्मचारी रह जाता है, आपका सिर उसके चरणों में लग जाता है। यह भी वही है, कोई फर्क नहीं है। कोई भी फर्क नहीं है।
कारण सदा एक ही है भीतर हर चीज के, कि जो आप नहीं कर सकते। तब इसका यह मतलब हुआ कि अगर आपको भी अहंकार की तृप्ति करनी हो तो आपको कुछ ऐसा करना पड़े, जो लोग नहीं कर सकते। या कम से कम दिखाना पड़े कि आप कर सकते हैं, जो लोग नहीं कर सकते।
तो जो व्यक्ति अहंकार में उत्सुक है, वह सदा ही तिरछे रास्तों में उत्सुक होगा। ताबीज पेटी से निकाल कर आपके हाथ में दे देना बिलकुल सीधा काम है, लेकिन पहले ताबीज को छिपाना, और फिर इस तरकीब से निकालना कि दिखाई न पड़े, कहां से निकल रहा है, तिरछा काम है। तिरछा है तो आकर्षक है, आपको भी पता चल जाए कि ताबीज कैसे पेटी से कपड़े की बांह के भीतर गया, फिर बांह से कैसे हाथ तक आया, एक दफा आपको पता चल जाये, चमत्कार तिरोहित हो जाये। फिर दुबारा आपको इसमें कोई श्रद्धा न मालूम होगी।
आपको भी पता चल जाये कि भूखा रहने की तरकीब क्या है, फिर उपवास में भी आपकी श्रद्धा न रह जायेगी। आपको भी पता चल जाये कि ब्रह्मचारी रहने की तरकीब क्या है, फिर आपको उसमें भी रस न रह जायेगा।
जो भी आप कर सकते हैं...यह बड़े मजे की बात है कि किसी आदमी की अपने में श्रद्धा नहीं है। जो भी आप कर सकते हैं, उसमें
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