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कायोत्सर्ग : शरीर से विदा लेने की क्षमता
मैं हूं। ध्यान के बाद इस चरण को रखने का प्रयोजन है, क्योंकि ध्यान आपके जानने की क्षमता का अनुभव है। ___ध्यान का अर्थ ही है-वह जो मेरे भीतर ज्ञान है, उसको जानना। जितना ही मैं परिचित होता हूं कांशसनेस से, चेतना से, उतना ही मेरा जड़ पदार्थों के साथ जो संबंध है वह विछिन्न होता जाता है और एक घड़ी आती है कि भीतर मैं सिर्फ एक ज्ञान की ज्योति रह जाता है।
लेकिन अभी हमारा जोड़ दीये से है-मिट्टी के दीये से। उस ज्ञान की ज्योति से नहीं जो दीये में जलती है। अभी हम समझते हैं कि मैं मिट्टी का दीया हूं। मिट्टी का दीया फूट जाता है तो हम सोचते हैं-मैं मर गया। ऐसे ही घर में अगर मिट्टी का दीया फूट जाए तो हम कहते हैं-ज्योति नष्ट हो गई। लेकिन ज्योति नष्ट नहीं होती सिर्फ विराट आकाश में लीन हो जाती है। ____ कुछ भी नष्ट तो होता नहीं इस जगत में। जिस दिन हमारे शरीर का दीया फूट जाता है, उस दिन भी जो चेतना की ज्योति है, वह फिर अपनी नयी यात्रा पर निकल जाती है। निश्चित ही वह अदृश्य हो जाती है, क्योंकि उसके दृश्य होने के लिए माध्यम चाहिए। जैसे रेडियो आप अपने घर में लगाए हुए हैं, जब आप बंद कर देते हैं तब आप सोचते हैं क्या कि रेडियो में जो आवाजें आ रही थीं, उनका आना बंद हो गया? वे अब भी आपके कमरे से गुजर रही हैं, बंद नहीं हो गईं। जब आप रेडियो ऑन करते हैं तभी वे आना शुरू नहीं हो जाती हैं। जब आप रेडियो ऑन करते हैं तब आप उनको पकड़ना शुरू करते हैं, वे दृश्य होती हैं। वे मौजूद हैं। जब आपका रेडियो बंद पड़ा है तब आपके कमरे से उनकी ध्वनियां निकल रही हैं, लेकिन आपके पास उन्हें पकड़ने का, दृश्य बनाने का कोई उपाय नहीं है। रेडियो आप जैसे ही लगा देते हैं, रेडियो का यंत्र उन्हें दृश्य कर देता है। श्रवण में वे आपके पकड़ में आ जाते हैं। ___ जैसे ही किसी व्यक्ति का शरीर छूटता है तो चेतना हमारी पकड़ के बाहर हो जाती है। लेकिन नष्ट नहीं हो जाती। अगर हम फिर से उसे शरीर दे सकें तो वह फिर प्रगट हो सकती है। इसलिए इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है कि वैज्ञानिक आज नहीं कल मरे हुए आदमी को भी पुनरुज्जीवित कर सकेंगे। इसलिए नहीं कि उन्होंने आत्मा को बनाने की कला पा ली है, बल्कि सिर्फ इसलिए कि वे रेडियो को सुधारने की तरकीब सीख गए हैं। इसलिए नहीं कि उन्होंने आदमी की आत्मा को पकड़ लिया, बल्कि इसलिए कि उन्होंने जो यंत्र बिगड़ गया था उसे फिर इस योग्य बना दिया कि आत्मा उससे प्रगट हो सके। ___ इसमें बहुत कठिनाई नहीं मालूम होती, यह जल्दी ही संभव हो जाएगा। लेकिन जैसे-जैसे ये चीजें संभव होती जाती हैं, वैसे-वैसे हमारा काया का मोह बढ़ता चला जाता है। अगर आपको मरने से भी बचाया जा सकता है तब तो आप और भी जोर से मानने लगेंगे कि मैं श
रीर बच जाता है। तो मैं बच जाता हं। मनष्य की प्रगति एक तरफ प्रगति है. दसरी तरफ बडा ह्वास है और बड़ा पतन है। एक तरफ हमारी समझ बढ़ती जाती है, दूसरी तरफ हमारी समझ बहुत कम होती चली जाती है। करीब-करीब ऐसा लगता है, हमारी जो समझ बढ़ रही है वह केवल शरीर को आधार मानकर बढ़ती चली जा रही है, उसमें चेतना का कोई आधार नहीं है। इसलिए आदमी आज दुनिया में सर्वाधिक जानता हुआ मालूम पड़ता है फिर भी इससे ज्यादा अज्ञानी समाज खोजना कठिन है।
महावीर जैसे व्यक्ति तो इसको पतन ही कहेंगे, इसको विकास नहीं कहेंगे। वे कहेंगे कि यह पतन है क्योंकि इससे दुख बढ़ा है, आनंद नहीं बढ़ा है। कसौटी क्या है प्रगति की? कि आनंद बढ़ जाए। साधन बढ़ जाते हैं, दुख बढ़ जाता है। हमारा फैलाव बढ़ गया, मालकियत बढ़ गयी, और दुख बढ़ गया। हम अब ज्यादा चीजों पर चिंता करते हैं। महावीर के जमाने में इतनी चीजों पर लोग चिंता नहीं करते थे। अब हमारी चिंताएं बहुत ज्यादा हैं। चिंताएं हमारी बहुत दूर निकल गयी हैं। चांद तक के लिए हमारी चिंता है। चिंता हमारी बढ़ गयी है, लेकिन वह निश्चिंत चेतना का हमें कोई अनुभव नहीं रहा। कायोत्सर्ग का अर्थ है-चिंता के जगत से अपना संबंध तोड़ लेना।
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