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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 एक्सटेंशन आफ अवर बाडीज। है भी। मकान हमारे शरीर का ही विस्तार है। दूरबीन हमारी आंख का ही विस्तार है। बंदूक हमारे नाखूनों का ही विस्तार है, ये हमारे एक्सटेंशन हैं। इसलिए जितना वैज्ञानिक युग होता जाता है उतना आपका बड़ा शरीर होता जाता है। अगर आज से पांच हजार साल पहले किसी आदमी को मारना होता तो बिलकुल उसकी छाती के पास छुरा लेकर जाना पड़ता। अब जरूरत नहीं है। अब एक आदमी को यहां से बैठकर वाशिंगटन में भी सारे लोगों की हत्या कर देनी हो तो एक मिसाइल, एक बम चलाएगा और सबको नष्ट कर देगा। आपका शरीर अब बहुत बड़ा है। आप बड़े दूर से... अगर मुझे आपको मारना है तो पास आने की जरूरत नहीं है। पांच सौ फीट की दूरी से बंदूक की गोली से आपको मार दूंगा। लेकिन गोली सिर्फ एक्सटेंशन है। ___ वैज्ञानिक कहते हैं-आदमी के नाखून कमजोर हैं दूसरे जानवरों से, इसीलिए उसने अस्त्र-शस्त्रों का आविष्कार किया, वह सब्स्टीट्यूट है। नहीं तो आदमी जीत नहीं सकता जानवरों से। आपके नाखून बहुत कमजोर हैं जानवरों के मुकाबले। आपके दांत भी बहुत कमजोर हैं जानवरों के मुकाबले। आपके दांत भी बहुत कमजोर हैं जानवरों के मुकाबले में। अगर आप जानवर से टक्कर लें तो आप गए। तो आपको जानवर से टक्कर लेने के लिए सब्स्टीट्यूट खोजना पड़ेगा। जानवर से ज्यादा मजबूत नाखून बनाने पड़ेंगे। वे नाखून आपके छुरे, तलवारें, खंजर, भाले हैं। उससे ज्यादा मजबूत आपको दांत बनाने पड़े, जिनसे उसको आप पीस डालें। ___ आदमी ने जो भी विकास किया है, जिसे हम आज प्रगति कहते हैं, वह उसके शरीर का विस्तार है। इसलिए जितना वैज्ञानिक युग सघन होता जाता है, उतना आत्मभाव कम होता जाता है। क्योंकि बड़ा शरीर हमारे पास है जिससे हम अपने को एक कर लेते हैं। आपका मकान, आपके मकान की दीवारें आपके शरीर का हिस्सा हैं। आपकी कार आपके बढ़े हुए पैर हैं। आपका हवाई जहाज आपके बढ़े हुए पैर हैं। आपको पता हो या न पता हो, आपका रेडियो आपका बढ़ा हुआ कान है। आपका टेलिविजन आपकी बढ़ी हुई आंख है। तो आज हमारे पास जितना बड़ा शरीर है। उतना महावीर के वक्त में किसी के पास नहीं था। इसलिए आज हमारी मसीबत भी ज्यादा है। तो जो आदमी अपने शरीर को अपना मानता है, वह अपने मकान को भी अपना मानेगा। दुख बढ़ जाएंगे। जितना बड़ा शरीर होगा हमारा, उतने हमारे दुख बढ़ जाएंगे क्योंकि उतनी मुसीबतें बढ़ जाएंगी। __ कभी आपने खयाल किया है, आपकी कार को खरोंच लग जाए तो करीब-करीब आपकी चमड़ी को लग जाती है। शायद एक दफे चमड़ी पर भी लग जाए तो उतनी तकलीफ नहीं होती जितनी कार को लग जाने से होती है। कार आपकी चमकदार चमड़ी बन गई है। वह आपका आवरण है. आपके बाहर। शरीर. महावीर कहते हैं इसकी जरा सी भी मालकियत अगर हई तो मालकियत बढ़ती जाएगी। और मालकियत का कोई अंत नहीं है। आज नहीं कल चांद पर झगड़ा खड़ा होनेवाला है कि वह किसका है। अभी तो पहं इसलिए इतनी दिक्कत नहीं है। लेकिन आज नहीं कल झगड़ा खड़ा होनेवाला है कि चांद किसका है? अगर रूस और अमरीका में इतना संघर्ष था चांद पर पहले पहुंचने के लिए तो वह सिर्फ वैज्ञानिक प्रतियोगिता ही नहीं थी, उसमें गहरी मालकियत है। पहला झंडा अमरीका का गड गया है वहां। आज नहीं कल किसी दिन अंतर्राष्ट्रीय अदालत में यह मकदमा होगा ही कि चांद किसका है। पहले कौन मालिक बना? इसलिये रूस के वैज्ञानिक चांद की चिंता कम कर रहे हैं और मंगल पर पहुंचने की कोशिश में लग गए हैं। क्योंकि चांद पर किसी भी दिन झगड़ा खड़ा होने ही वाला है, वह मालकियत अब उनकी है नहीं। इस मालकियत का अंत क्या है? इसका प्रारंभ कहां से होता है? इसका प्रारंभ होता है, शरीर के पास हम जब मालकियत खड़ी करते हैं, तभी विस्तार शुरू हो जाता है। विस्तार का कोई अंत नहीं है। और जितना विस्तार होता है उतने हमारे दुख बढ़ जाते हैं क्योंकि महावीर कहते हैं-आनंद को वही उपलब्ध होता है जो मालिक ही नहीं है। जो अपने शरीर का भी मालिक नहीं है। जो मालकियत करता ही नहीं। कायोत्सर्ग का अर्थ है-मैं उतने पर ही हूं, जितने पर मेरी जानने की क्षमता का फैलाव है—वही मैं हूं, बस जानने की क्षमता 336 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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