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सामायिक : स्वभाव में ठहर जाना
महावीर ने उन पद्धतियों का उपयोग नहीं किया, महावीर ने जिन पद्धतियों का उपयोग किया वे विश्राम से उल्टी हैं। इसलिए उनकी पद्धति का नाम है श्रम, श्रमण। वे कहते हैं- श्रमपूर्वक विश्राम में जाना है, विश्रामपूर्वक नहीं। और श्रमपूर्वक ध्यान में जाना बिलकुल उल्टा है विश्रामपर्वक ध्यान में जाने के। अगर किसी आदमी को हम कहते हैं कि विश्राम करो तो हम कहते हैं-हाथ पैर ढीले छोड दो, सुस्त हो जाओ, शिथिल हो जाओ, ऐसे हो जाओ जैसे मुर्दा हो गए। श्रम की जो पद्धति है वह कहेगी इतना तनाव पैदा करो, इतना टैंशन पैदा करो जितना कि तुम कर सकते हो। जितना तनाव पैदा कर सको उतना अच्छा है। अपने को इतना खींचो, इतना खींचो जैसे कोई वीणा के तार को खींचता चला जाए और टंकार पर छोड़ दे। खींचते चले जाओ, खींचते चले जाओ। तीव्रतम स्वर तक अपने तनाव को खींच लो। निश्चित ही एक सीमा आती है कि अगर आप सितार के तार को खींचते चले जाएं तो तार टूट जाएगा। लेकिन चेतना के टूटने का कोई उपाय नहीं है। वह टूटती ही नहीं।
इसलिए आप खींचते चले जाओ। महावीर कहते हैं-खींचते चले जाओ, एक सीमा आएगी जहां तार टूट जाता है, लेकिन चेतना नहीं टूटती। लेकिन चेतना भी अपनी अति पर आ जाती है, क्लाईमेक्स पर आ जाती है। और जब चरम पर आ जाती है, तो अनजाने, तुम्हारे बिना पता हुए विश्राम को उपलब्ध हो जाती है। जैसा मैं इस मुट्ठी को बंद करता जाऊं, बंद करता जाऊं, जितनी मेरी ताकत है, सारी ताकत लगाकर उसे बंद करता जाऊं तो एक घड़ी आएगी कि मेरी ताकत चरम पर पहुंच जाएगी। अचानक मैं पाऊंगा कि मुट्ठी ने खुलना शुरू कर दिया क्योंकि अब मेरे पास बंद करने की और ताकत नहीं है। मुट्ठी को बंद करके खोलने का भी उपाय है।
और ध्यान रहे जब मुट्ठी को पूरी तरह बंद करके खोला जाता है तब जो विश्राम उपलब्ध होता वह बहत अनूठा है, वह नींद में कभी नहीं ले जाता है। वह सीधा विश्राम में ले जाता है। सौ में से निन्यानबे मौके विश्राम में जाने के हैं, नींद में जाने का मौका नहीं है। क्योंकि आदमी ने इतना श्रम किया है, इतना श्रम किया है, इतना खींचा है, इतना ताना है कि इस तनाव के लिए उसे इतने जागरण में जाना पड़ेगा कि वह उस जागरण से एकदम नींद में नहीं जा सकता है, विश्राम में चला जाएगा। ___ महावीर की पद्धति श्रम की पद्धति है, चित्त को इतने तनाव पर ले जाना है। तनाव दो तरह का हो सकता है। एक तनाव किसी दूसरी चीज के लिए भी हो सकता है, उसके लिए महावीर कहते हैं गलत ध्यान है। एक तनाव स्वयं के प्रति हो सकता है, उसे महावीर कहते हैं, वह ठीक ध्यान है। इस ठीक ध्यान के लिए कुछ प्रारंभिक बातें हैं, उनके बिना इस ध्यान में नहीं उतरा जा सकता है। उसके बिना उतारिएगा तो विक्षिप्त हो सकते हैं। एक तो ये दस सूत्र जो मैंने कल तक कहे हैं, ये अनिवार्य हैं। उनके बिना इस प्रयोग को नहीं किया जा सकता। क्योंकि उन दस सूत्रों के प्रयोग से आपके व्यक्तित्व में वह स्थिति, वह ऊर्जा और वह स्थिति आ जाती है जिनसे आप चरम तक अपने को तनाव में ले जाते हैं। इतनी सामर्थ्य और क्षमता आ जाती है कि आप विक्षिप्त नहीं हो सकते। अन्यथा अगर कोई महावीर के ध्यान को सीधा शुरू करे, तो वही विक्षिप्त हो सकता है, वह पागल हो सकता है। इसलिए भूलकर भी इस प्रयोग को सीधा नहीं करना है, वे दस हिस्से अनिवार्य हैं। और इसकी प्राथमिक भूमिकाएं हैं ध्यान की, वह मैं आपसे कह दूं। अभी पश्चिम में एक बहुत विचारशील वैज्ञानिक ध्यान पर काम करता है। उसका नाम है, रान हुब्बार्ड। उसने एक नए विज्ञान को जन्म दिया है, उसका नाम है सायंटोलाजी। ध्यान की उसने जो-जो बातें खोज-बीन की हैं वे महावीर से बड़ी मेल खाती हैं। इस समय पृथ्वी पर महावीर के ध्यान के निकटतम कोई आदमी समझ सकता है तो वह रान हुब्बार्ड है। जैनों को तो उसके नाम का पता भी नहीं होगा। जैन साधुओं में तो मैं पूरे मुल्क में घूमकर देख लिया हूं, एक आदमी भी नहीं है जो महावीर के ध्यान को समझ सकता हो, करने की बात तो बहुत दूर है। प्रवचन वे करते हैं रोज, लेकिन मैं चकित हुआ कि पांच-पांच सौ, सात-सात सौ साधुओं के गण का जो गणी हो, प्रमुख हो, आचार्य हो, वह भी एकान्त में मुझसे पूछता है कि ध्यान कैसे करें? यह सात सौ साधुओं को क्या करवाया जा रहा होगा। उनका गुरु पूछता है,
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