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मंत्र : दिव्य-लोक की कुंजी
या कोई और। और तीस दिन तक निरंतर गहरी अल्फा वेव्स की हालत में उसको सुझाव दिया जाएगा कि वह कोई और है, पिछले जन्म का। तीस दिन में उसका चित्त इसको ग्रहण कर लेगा। ___ तीस दिन के बाद बड़ी हैरानी के अनुभव हुए, कि वह व्यक्ति जो साधारण सा चित्रकार था, जब उसे भीतर भरोसा हो गया कि मैं माइकल एंजिलो हूं तब वह विशेष चित्रकार हो गया - तत्काल। वह साधारण-सा तुकबन्द था, जब उसे भरोसा हो गया कि मैं शेक्सपीयर हूं तो शेक्सपीयर की हैसियत की कविताएं उस व्यक्ति से पैदा होने लगीं।
हुआ क्या? वर्सिलिएव तो कहता था - यह 'आर्टिफिशियल रीइनकारनेशन' है। वार्सिलिएव कहता था कि हमारा चित्त तो बहुत बड़ी चीज है। छोटी-सी खिड़की खुली है, जो हमने अपने को समझ रखा है कि हम यह हैं, उतना ही खुला है, उसी को मानकर हम जीते हैं। अगर हमें भरोसा दिया जाए कि हम और बड़े हैं, तो खिड़की बड़ी हो जाती है। हमारी चेतना उतना काम करने लगती है।
वार्सिलिएव का कहना है कि आने वाले भविष्य में हम जीनियस निर्मित कर सकेंगे। कोई कारण नहीं है कि जीनियस पैदा ही न हों। सच तो यह है कि वार्सिलिएव कहता है, सौ में से कम से कम नब्बे बच्चे प्रतिभा की, जीनियस की क्षमता लेकर पैदा होते हैं, हम उसकी खिड़की छोटी कर देते हैं। मां-बाप, स्कूल, शिक्षक, सब मिल-जुलकर उनकी खिड़की छोटी कर देते हैं। बीस-पच्चीस साल तक हम एक साधारण आदमी खड़ा कर देते हैं, जो कि क्षमता बड़ी लेकर आया था, लेकिन हम उसका द्वार छोटा करते जाते हैं, छोटा करते जाते हैं। वार्सिलिएव कहता है, सभी बच्चे जीनियस की तरह पैदा होते हैं। कुछ जो हमारी तरकीबों से बच जाते हैं वह जीनियस बन जाते हैं, बाकी नष्ट हो जाते हैं। पर वार्सिलिएव का कहना है - असली सूत्र है 'रिसेटिविटी'। इतना ग्राहक हो जाना चाहिए चित्त कि जो उसे कहा जाए, वह उसके भीतर गहनता में प्रवेश कर जाए।
इस नमोकार मंत्र के साथ हम शुरू करते हैं महावीर की वाणी पर चर्चा । क्योंकि गहन होगा मार्ग, सूक्ष्म होंगी बातें। अगर आप ग्राहक हैं -- नमन से भरे, श्रद्धा से भरे - तो आपके उस अतल गहराई में बिना किसी यंत्र की सहायता के - यह भी यंत्र है, इस अर्थ में, नमोकार - बिना किसी यंत्र की सहायता के आप में अल्फा वेव्स पैदा हो जाती हैं। जब कोई श्रद्धा से भरता है तो अल्फा वेव्स पैदा हो जाती हैं - यह आप हैरान होंगे जानकर कि गहन सम्मोहन में, गहरी निद्रा में, ध्यान में या श्रद्धा में ई.ई.जी. की जो मशीन है वह एक-सा ग्राफ बनाती है। श्रद्धा से भरा हुआ चित्त उसी शांति की अवस्था में होता है जिस शांति की अवस्था में गहन ध्यान में होता है, या उसी शांति की अवस्था में होता है, जैसा गहन निद्रा में होता है. या उसी शांति की अवस्था में होता है, जैसा कि कभी भी आप जब बहुत 'रिलैक्स्ड' और बहुत शांत होते हैं।
जिस व्यक्ति पर वार्सिलिएव काम करता था, वह है निकोलिएव नाम का युवक, जिस पर उसने वर्षों काम किया। निकोलिएव को दो हजार मील दूर से भी भेजे गये विचारों को पकड़ने की क्षमता आ गयी है। सैकड़ों प्रयोग किए गये हैं जिसमें वह दो हजार मील दूर तक के विचारों को पकड़ पाता है। उससे जब पूछा जाता है कि उसकी तरकीब क्या है तो वह कहता है - तरकीब यह है कि मैं आधा घण्टा पूर्ण 'रिलैक्स', शिथिल होकर पड़ जाता हूं और एक्टिविटी' सब छोड़ देता हूं, भीतर सब क्रिया छोड़ देता हूं, पैसिव' हो जाता हूं। पुरुष की तरह नहीं, स्त्री की तरह हो जाता हूं। कुछ भेजता नहीं, कुछ आता हो तो लेने को राजी हो जाता हूं। और आधा घण्टे में ई. ई. जी. की मशीन जब बता देती है कि अल्फा वेव्स शुरू हो गयीं, तब वह दो हजार मील दूर से भेजे गये विचारों को पकड़ने में समर्थ हो जाता है। लेकिन जब तक वह इतना रिसेप्टिव नहीं होता, तब तक यह नहीं हो पाता। __ वार्सिलिएव और दो कदम आगे गया। उसने कहा - आदमी ने तो बहुत तरह से अपने को विकृत किया है। अगर आदमी में यह क्षमता है तो पशुओं में और भी शुद्ध होगी। और इस सदी का अनूठे-से-अनूठा प्रयोग वार्सिलिएव ने किया कि एक मादा
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