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________________ प्रायश्चित : पहला अंतर तप दया करके, यही समझकर। ___ और यह बड़े मजे की बात है, अब तक ऐसे किसी साधु को फांसी नहीं दी गयी, जिसने गाली दी हो और पत्थर फेंके हों। यह आपको पता है? पूरे इतिहास में मनुष्य जाति के! सुकरात को जहर पिला देते हैं, महावीर को पत्थर मारते हैं, बुद्ध को परेशान करते हैं। हत्या की अनेक कोशिशें की जाती हैं बुद्ध की-चट्टान सरका दी जाती है, पागल हाथी छोड़ दिया जाता है। जीसस को सूली पर लटकाते हैं, मंसूर को काट डालते हैं। लेकिन ऐसा एक भी उल्लेख नहीं है कि आपने उस साधु के साथ दुर्व्यवहार किया हो जिसने आपके साथ दुर्व्यवहार किया हो। यह बड़े मजे की बात है। यह बड़ा ऐतिहासिक तथ्य है। बात क्या है? असल में जो आपको गाली देता है, यू ट्रीट हिम इक्वली। बात खत्म हो गयी। वह आदमी इतना ऊपर नहीं, जिसको फांसी-वांसी लगानी पड़े, नीचे लाना पड़े। अपने ही जैसा है, चलेगा। तो कई कुशल साधु सिर्फ इसलिए गाली देने को मजबूर हुए कि आपको नाहक परेशानी में न पड़ना पड़े, क्योंकि फांसी लगाने में परेशानी साधु को कम होती है, आपको ज्यादा होती है। बड़ा इंतजाम करना पड़ता है। नत नहीं है इस स्मरण से ही अंतर्यात्रा शुरू होती है। अगर दसरा गलत है, तब तो अंतर्यात्रा शुरू ही नहीं होगी। दसरा गलत है या नहीं, यह सवाल नहीं है; दूसरा गलत है, यह दृष्टि गलत है। दूसरा गलत है या नहीं, इस तर्क में आप पड़ेंगे तो कभी दूसरा सही मालूम पड़ेगा, कभी गलत मालूम पड़ेगा। चुनाव शुरू हो जाएगा। दूसरा सही है या गलत है, यह साधक की दृष्टि नहीं है। मैं गलत हूं या नहीं, यह ठहराना साधक की दृष्टि नहीं है। मैं गलत हूं, यह सुनिश्चित मानकर चल पड़ना साधक की दृष्टि है। प्रायश्चित तब शुरू होता है जब मैं मानता हूं, मैं गलत हूं। सच तो यह है कि जब तक मैं हूं तब तक मैं गलत होऊंगा ही। होना ही गलत है, वह जो अस्मिता है, वह जो इगो-'मैं हूं'-वही मेरी गलती है। मेरा होना ही मेरी गलती है। जब तक 'मैं नहीं न हो जाऊं तब तक प्रायश्चित फलित नहीं होगा। और जिस दिन मैं नहीं हो जाता हूं, शून्यवत हो जाता हूं उसी दिन मेरी चेतना रूपांतरित होती है और नए लोक में प्रवेश करती है। फिर भी ऐसा नहीं है कि ऐसी रूपांतरित चेतना में आपको गलतियां न मिल जाएं। क्योंकि गलतियां आप अपने कारण खोजते हैं। एक बात पक्की है कि ऐसी चेतना को आप में गलतियां मिलनी बंद हो जाएंगी। इसलिए तो ऐसी चेतनाएं आपसे कह सकीं कि आप परमात्मा हैं, आप शुद्ध आत्मा हैं, आपके भीतर मोक्ष छिपा है। द किंगडम आफ गाड इज विदिन यू। इसलिए जीसस जुदास के पैर पड़ सके। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि जुदास ने तीस रुपये में जीसस को बेच दिया है सूली पर लटकाने के लिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इससे कोई अंतर ही नहीं पड़ता क्योंकि जिस आदमी ने अपने को बदला हुआ पाया, उसको फिर किसी में कहीं कोई गलती नहीं दिखाई पड़ती। और ज्यादा से ज्यादा अगर उसे कुछ दिखाई पड़ता है तो इतना ही दिखाई पड़ता है कि आप बेहोश हो, और बेहोश आदमी को क्या गलत ठहराना। बेहोश आदमी जो भी करता है, गलत होता है, लेकिन होशवाला आदमी बेहोश आदमी को क्या गलत ठहराए!। बहुत मजेदार घटनाएं घटती हैं, और होशवाले आदमियों ने अपने संस्मरण नहीं लिखे, वे लिखें तो बड़े अदभुत होंगे। बेहोश आदमियों के बीच जीना होशवाले आदमी को इतना स्टेंज मामला है, इतना विचित्र है, लेकिन किसी ने अपना संस्मरण लिखाया नहीं क्योंकि आप उस पर भरोसा न कर सकेंगे कि ऐसा हो सकता है। ऐसे ही जैसे आपको एक पागलखाने में बंद कर दिया जाए और आप पागल न हों, तब जो जो घटनाएं आपके जीवन में घटेंगी उनसे विचित्र घटनाएं कहीं भी नहीं घट सकतीं। और अगर आप बाहर आकर कहेंगे तो कोई भरोसा नहीं कर सकता कि ऐसा हो सकता है। पागल भरोसा नहीं करेंगे क्योंकि वे पागल हैं। गैर पागल भरोसा नहीं करेंगे क्योंकि उन्हें पागलों का कोई पता नहीं। और आप दोनों हालत में रह लिए, आप पागल नहीं थे और पागलों के बीच में 257 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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