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प्रायश्चित : पहला अंतर तप
मुल्ला नसरुद्दीन अपने क्लब के बाहर निकल रहा है। एक आदमी एक कोट को पहनने की कोशिश कर रहा है क्लाक रूम से। मुल्ला उससे कहता है कि आप बड़े गलत आदमी हैं। मुल्ला से उसने कहा—मैंने तो कुछ किया ही नहीं! मैं अपना कोट पहन रहा हूं। मुल्ला ने कहा-इसीलिए तो मैं कहता हूं कि आप गलत आदमी हैं। यह कोट मुल्ला नसरुद्दीन का है कहा-यह मुल्ला नसरुद्दीन कौन है? मुल्ला ने कहा-यह मुल्ला नसरुद्दीन मैं हूं, आप मेरा कोट पहन रहे हैं। तो उस आदमी ने कहा कि नासमझ! ऐसा क्यों नहीं कहता कि मैं गलत कोट पहन रहा हूं, ऐसा क्यों कहता है कि मैं गलत आदमी हूं। मुल्ला ने कहा, गलत आदमी ही गलत कोट पहनते हैं। ___ जब आप कोई गलत काम करते हैं तो आप चाहते हैं कोई ज्यादा से ज्यादा इतना कहे कि आपसे गलत काम हो गया। वह यह न कहे कि आप गलत आदमी हैं, क्योंकि काम की तो बड़ी छोटी सीमा है, एक क्षण में निपट जाएगा। आप! आप तो पूरे जीवन पर आरोपित हैं। अगर कोई कहे-आप गलत हैं, तो यह जीवनभर के लिए निन्दा हो गयी। अगर कर्म गलत है, एक क्षण की बात है, इससे विपरीत कर्म किया जा सकता है। किए को अनकिया किया जा सकता है, डन को अनडन किया जा सकता है। किए के लिए माफी मांगी जा सकती है। किए के विपरीत किया जा सकता है। कर्म के ऊपर दोष देने में कोई कठिनाई नहीं है। लेकिन वही आदमी प्रायश्चित को उपलब्ध होता है। जो कहता-गलत कोट मैं नहीं पहन रहा, मैं गलत आदमी हूं। लेकिन तब प्राणों में बड़ा मंथन होता है। ___तब सवाल यह नहीं है कि मैंने कौन-कौन-से काम गलत किए; तब सवाल यह है कि चूंकि मैं गलत हूं इसलिए मैंने जो भी किया होगा, वह गलत होगा। तब चुनाव भी नहीं है कि कौन-सा गलत किया और मैंने कौन-सा ठीक किया। जब मैं गलत हूं तो मैंने जो भी किया होगा वह गलत किया होगा। बेहोश आदमी शराब पिए हुए रास्ते पर लड़खड़ाता है। वह यह नहीं कहता कि मेरे कौन-कौन-से पैर लड़खड़ाए, या कहेगा? और कौन-से पैर मेरे ठीक पड़े और कौन-से पैर मेरे लड़खड़ाए? जब वह होश में आएगा तब वह कहेगा कि मैं बेहोश था, मेरे सभी पैर लड़खड़ाए। वे जो ठीक पड़ते मालूम पड़ते थे वे भी गलती से ही ठीक पड़े होंगे क्योंकि ठीक पड़ने का तो कोई उपाय नहीं, क्योंकि मैं शराब पिए था। हम भीतर एक गहरे नशे में होते हैं, और वह गहरा नशा यह है कि हम, एक अर्थ में हम हैं ही नहीं. बिलकल सोए हए हैं।
प्रायश्चित को महावीर ने क्यों अंतर-तप का पहला हिस्सा बनाया? क्योंकि वही व्यक्ति अंतर्यात्रा पर निकल सकेगा जो कर्म की गलती को छोड़कर स्वयं की गलती देखना शुरू करेगा। देखिए, तीन तरह के लोग हैं-एक वे लोग हैं जो दूसरे की गलती देखते हैं; एक वे लोग हैं जो कर्म की गलती देखते हैं; एक वे लोग हैं जो स्वयं की गलती देखते हैं। जो दूसरे की गलती देखते हैं वे तो पश्चात्ताप भी नहीं करते। जो कर्म की गलती देखते हैं वे पश्चात्ताप करते हैं। जो स्वयं की गलती देखते हैं, वे प्रायश्चित में उतरते हैं। जब दूसरा ही गलत है तब तो पश्चात्ताप का कोई सवाल ही नहीं है।
लेकिन ध्यान रहे, दूसरा कभी भी गलत नहीं होता। इस अर्थ में कभी गलत नहीं होता। इसे बड़ा कठिन होगा समझना कि दूसरा कभी भी गलत नहीं होता। अंतर्यात्रा के पथिक को यह समझ लेना होगा कि दूसरा कभी भी गलत नहीं होता है। आप कहेंगे-आप कैसी बात कर रहे हैं क्योंकि मैं गलत होता हूं तो मैं दूसरे के लिए तो दूसरा हूं ही! और अगर दूसरा गलत नहीं होता तो फिर तो मैं कैसे गलत होऊंगा? जब मैं कह रहा हूं-दूसरा कभी गलत नहीं होता तो इसलिए कह रहा हूं...इसलिए नहीं कि दूसरा गलत नहीं होता, दूसरा गलत होता है, लेकिन स्वयं के लिए, आप गलत होते हैं स्वयं के लिए... दूसरे के लिए आप गलत नहीं हो सकते ।
आप महावीर के पास जाएं तब आपको तत्काल पता चल जाएगा। आप गाली दें, महावीर में गाली ऐसे गूंजेगी जैसे किसी घाटी में
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