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प्रायश्चित : पहला अंतर तप
हो जाऊं, ऐसा आदमी जिससे क्रोध न हो सके-प्रायश्चित का यह अर्थ है। ट्रांसफर्मेशन आफ द लेवल आफ द बीइंग। यह सवाल नहीं है कि मैंने कल क्रोध किया था, आज मैं नहीं करूंगा। सवाल यह है—कल मुझसे क्रोध हुआ था, मैं कल के ही जीवन तल पर आज भी हैं। वही चेतना मेरी आज भी है। पश्चात्ताप करनेवाला कल के लिए क्षमा मांग लेगा। हर वर्ष हम मांगते हैं मिच्छामि दुक्कड़म, हर वर्ष हम मांगते हैं, क्षमा कर दे । पिछले वर्ष भी मांगा था, उसके पहले भी क्षमा मांगी थी। कब वह दिन आएगा जब कि क्षमा मांगने का अवसर न रह जाए। कि मांगते ही रहेंगे। और जानते हैं भली-भांति कि जहां से क्षमा मांगी जा रही है वहां कोई रूपांतरण नहीं है। वह आदमी वही है जो पिछले वर्ष था। ___ एक मित्र पिछले पूरे वर्ष से मेरे संबंध में अनूठी कहानियां प्रचारित करते हैं। अब यह पर्युषण पूरे हुए तो उनका कल पत्र आया कि मुझे क्षमा कर दें। ऐसा नहीं कि मैंने जाने अनजाने अपराध किए हों, उनके लिए क्षमा कर दें-पत्र में लिखा है, मैंने अपराध किए हैं, उनके लिए क्षमा कर दें, और मैं हृदय की गहराई से क्षमा मांगता हूं। लेकिन मैं जानता हूं कि पत्र लिखने के बाद उन्होंने वही काम पुनः जारी कर दिया होगा। क्योंकि पत्र लिखने से वह रूपांतरण नहीं हो जानेवाला है। क्षमा मांग लेने से आप नहीं बदल जाएंगे, आप फिर वही होंगे। सच तो यह है-जो क्षमा मांग लेने से आप नहीं बदल जाएंगे, आप फिर वही होंगे। सच तो यह है—जो क्षमा मांग रहा है वही आदमी है जिसने अपराध किया है। प्रायश्चित वाला तो हो सकता है क्षमा न भी मांगे, क्योंकि वह अनुभव करे, अब मैं वह आदमी ही नहीं हूं कि जिसने अपराध किया था, अब मैं दूसरा आदमी हूं। वह जाकर इतनी खबर दे दे कि वह आदमी जो तुम्हें गाली दे गया था, मर गया है। मैं दूसरा आदमी हूं। अगर आपके मन को अच्छा लगे तो मैं उसकी तरफ से आपसे क्षमा मांग लूं, क्योंकि मैं उसकी जगह हूं। अन्यथा मेरा कोई लेना देना नहीं है, वह आदमी मर चुका है।
प्रायश्चित का अर्थ है-मृत्यु उस आदमी की जो भूल कर रहा था, उस चेतना की जिससे भूल हो रही थी। पश्चात्ताप का अर्थ है-उस चेतना का पुनर्जीवन जिससे भल हो रही है। फिर से रास्ता साफ करना, फिर से पनः वहीं पहंच जाना जहां हम खडे थे
और जहां से भूल होती थी उसी जगह फिर खड़े हो जाना। पैर थोड़े डगमगा जाते हैं अपराध करके, भूल करके। फिर उन पैरों को मजबूत करना हो तो क्षमा सहयोगी होती है। ध्यान रहे, लोग इसलिए क्षमा नहीं मांगते कि वे समझ गए हैं कि उनसे अपराध हो गया, वे इसलिए क्षमा मांगते हैं कि यह अपराध का भाव उनकी प्रतिमा को खंडित करता है। वे इसलिए क्षमा नहीं मांगते हैं कि आपको चोट पहुंची है, क्योंकि वे कल फिर चोट पहुंचाना जारी रखते हैं। वे इसलिए क्षमा मांगते हैं कि अपराध के भाव से उनकी प्रतिमा को चोट पहुंची है। वे उसे सुधार लेते हैं। हम सबका एक सेल्फ इमेज है। सच नहीं है वह जरा भी, लेकिन वही हमारा
असली है। ___ सुना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन अपने बेटे को कंधे पर लेकर सुबह घूमने निकला है। सुंदर है उसका बेटा। जो भी रास्ते पर देखता है वह रुककर ठहर जाता है और कहता है, सुंदर है। नसरुद्दीन कहता है—दिस इज़ नथिंग। यू मस्ट सी हिज़ पिक्चर। यह कुछ नहीं है, इसका चित्र देखो, तब तुम्हें पता चलेगा। जो भी नसरुद्दीन से कहता है-सुंदर है यह तुम्हारा बेटा; वह कहता है-दिस इज़ नथिंग। यू मस्ट सी हिज़ पिक्चर। यह तो कुछ भी नहीं है। इसकी पिक्चर देखो घर आकर अल्बम में, तब तुमको पता चलेगा। __ वह ठीक कह रहा है। हम सब भी जानते हैं कि हम तो कुछ भी नहीं हैं, लेकिन हमारी तस्वीर, वह जो हमारे चित्त के अलबम में है, उसको देखो। उसको ही हम दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं। उसको ही हम दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं। वह तस्वीर बड़ी और है। वह वही नहीं है जो हम हैं। इसलिए जब उस तस्वीर पर कोई दाग पड़ जाता है और हमें लगता है कि दाग पड़ रहा है तो दाग को हम पोंछ लेते हैं। पश्चात्ताप स्याही सोख का काम करता है। वह प्रायश्चित नहीं है, प्रायश्चित तो तस्वीर को फाड़कर
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