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________________ संलीनता : अंतर-तप का प्रवेश-द्वार भी सजग हो जाएं। और जिस दिन शरीर और मन दोनों के प्रति सजगता होती है, वह जो रोबोट यंत्र है हमारे भीतर, वह बाहर जाने में धीरे-धीरे, धीरे-धीरे रस खो देता है। तब भीतर जाया जा सकता है। और भीतर जाने में किस चीज में रस लेना पड़ेगा? भीतर जाने में उन चीजों में रस लेना पड़ेगा जिनमें संलीनता स्वाभाविक है। जैसे कि शांति का भाव है तो संलीनता स्वाभाविक है। जैसे सारे जगत के प्रति करुणा का भाव, उसमें संलीनता स्वाभाविक है। क्रोध बाहर ले जाता है, करुणा बाहर नहीं ले जाती। शत्रुता बाहर ले जाती है, मैत्री का भाव बाहर नहीं ले जाता। तो उन भावों में ठहरने से भीतर यात्रा शुरू होती है। पर संलीनता सिर्फ द्वार है। उन सारी बातों का विचार हम अंतर्तपकी छह प्रक्रियाओं में करेंगे। संलीनता छह के लिए द्वार है, पर संलीन हुए बिना उनमें कोई प्रवेश न हो सकेगा। ये सब इंटीग्रेटेड हैं, ये सब संयुक्त हैं। हमारा मन करता है कि इसको छोड़ दें और उसको कर लें। ऐसा नहीं हो सकेगा। ये बारह अंग आर्गनिक हैं। ये एक दूसरे से संयुक्त हैं। इनमें से एक भी छोड़ा तो दूसरा नहीं हो सकेगा। अब महावीर ने इसके पहले जो पांच अंग कहे वे सब अंग शक्ति संरक्षण के हैं, और छठवां अंग संलीनता का है। जब शक्ति बचेगी तभी तो भीतर जा सकेगी ! शक्ति बचेगी ही नहीं तो भीतर क्या जाएगा। हम करीब-करीब रिक्त और दिवालिए, बैंकरप्ट हैं। बाहर ही शक्ति गंवा देते हैं। भीतर जाने के लिए कोई शक्ति बचती ही नहीं। कछ बचता ही नहीं। ___ मुल्ला नसरुद्दीन मरा तो उसने अपनी वसीयत लिखी-उसने वसीयत लिखवायी, बड़ी भीड़-भाड़ इकट्ठी की, सारा गांव इकट्ठा हआ, फिर उसने गांव के पंचायत के प्रमुख से कहा-वसीयत लिखो। थोड़े लोग चकित थे। ऐसा कुछ ज्यादा उसके पास दिखाई नहीं पड़ता था जिसके लिए वह इतना शोरगुल मचाए है। उसने वसीयत लिखवायी तो उसने लिखवाया कि आधा तो मेरे मरने के बाद मेरी सम्पत्ति में से पत्नी को मिल जाए। फिर इतना हिस्सा मेरे लड़के को मिल जाए इतना हिस्सा मेरी लड़की को मिल जाए फिर इतना हिस्सा मेरे मित्र को मिल जाए, इतना हिस्सा मेरे नौकर को मिल जाए। वह सब उसने हिस्से लिखवा दिए। तो पंच प्रमुख बार-बार कहता था कि ठहरो, वह पूछना चाहता था कि है कितना तुम्हारे पास? और आखिर में उसने कहा कि सबको बांट देने के बाद जो बच जाए वह गांव की मस्जिद को दे दिया जाए। तो पंच-प्रमुख ने फिर पूछा कि मैं तुमसे बार-बार पूछ रहा हूं कि तुम्हारे पास है कितना? उसने कहा है तो मेरे पास कुछ भी नहीं, लेकिन नियमानसार वसीयत तो लिखानी चाहिए। नहीं तो लोग क्या कहेंगे कि बिना वसीयत लिखाए मर गए ! है कुछ भी नहीं। उसमें से भी वह कह रहा है कि सबको बांटने के बाद जो बच जाए वह मस्जिद को दे दिया जाए। हम भी करीब-करीब दिवालिया मरते हैं। जहां तक अंतः संपत्ति का संबंध है, हम सब दिवालिया मरते हैं। नसरुद्दीन जैसे ही मरते हैं, वह व्यंग्य हम पर भी है। __ कुछ नहीं होता पास-कुछ भी नहीं होता। क्योंकि सब हमने व्यर्थ खोया होता है, और व्यर्थ भी ऐसा खोया होता है जैसे कि आपने बाथरूम का नल खुला छोड़ दिया हो और पानी बह रहा हो। इस तरह व्यर्थ होता है। आपके सब व्यक्तित्व के द्वार खुले हुए हैं बाहर की तरफ और शक्ति व्यर्थ खोती चली जाती है। डिस्सीपेट होती है। जो थोड़ी बहुत बचती है, उससे आप सिर्फ बेचैन होते हैं और उससे भी कुछ नहीं करते हैं, उसको बेचैनी में नष्ट करते हैं, परेशानी में नष्ट करते हैं। __तो महावीर ने पहले जो अंग कहे वे शक्ति संरक्षण के हैं। यह जो छठवां अंग कहा, यह संरक्षित शक्ति का अंतर-प्रवाह है। जैसे कोई नदी अपने मूल-उदगम की तरफ वापस लौटने लगे। मूल-स्रोत की तरफ शक्ति का आगमन शुरू हो। बाहर की तरफ 241 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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