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________________ रस-परित्याग और काया-क्लेश आपको जगत से तोड़ देती है, जगत की चिन्ताओं से तोड़ देती है। जगत मिट जाता है, आप ही रह जाते हैं। यह बहत ही मजे की बात है कि ध्यान और शराब में थोड़ा संबंध है। इसलिए विलियम जेम्स ने, जिसने कि इस सदी में धर्म और नशे के बीच संबंध खोजने में सर्वाधिक शोध कार्य किया, विलियम जेम्स ने कहा कि शराब का इतना आकर्षण गहरे में कहीं न कहीं धर्म से संबंधित है, अन्यथा इतना आकर्षण हो नहीं सकता। कहीं न कहीं शराब कुछ ऐसा करती होगी जो मनुष्य की गहरी धार्मिक आकांक्षा को तप्त करता है—है संबंध। और इसलिए वेद के सोमरस से लेकर एलअस हक्सले तक, एल. एस. डी. तक, धार्मिक आदमी का बड़ा हिस्सा नशों का उपयोग करता रहा है-बड़ा हिस्सा। और नशे के उपयोग में कहीं न कहीं कोई तालमेल है। वह तालमेल इतना ही है कि शराब आपको जगत से तोड़ देती है इस बुरी तरह कि आप बिलकुल अकेले हो जाते हैं। अकेले होने में एक रस है। संसार की सारी चिन्ताएं भूल जाती हैं। आप एक गहरे अर्थ में निश्चिंत मालूम पड़ते हैं। हो तो नहीं जाते। शराब तो थोड़ी देर बाद विदा हो जाएगी, चिन्ता वापस लौट आएगी, लेकिन शराब के साथ इस निश्चिंतता का रस जुड़ जाएगा। बस वह एक दफा रस जुड़ गया, फिर आप शराब के नाम से जहर पीते रहेंगे। वह कितना ही तिक्त मालूम पड़े, वह रस जो संयुक्त हो गया। हम विकृत रसों से भी जुड़ जा सकते हैं, और फिर उनकी पुनरुक्ति की मांग शुरू हो जाती है। ___ मुल्ला एक दिन अपने मकान के दरवाजे पर उदास बैठा है। पड़ोसी बहुत हैरान हुआ क्योंकि दो सप्ताह से वह बहुत प्रसन्न मालूम पड़ रहा था, इतना जितना कभी नहीं मालूम पड़ा था। उदास देखकर पड़ोसी ने पछा कि आज नसरुद्दीन बहत उदास मालम पडते हो, बात क्या है? नसरुद्दीन ने कहा-बात! बात बहुत कुछ है। इस महीने के पहले सप्ताह मेरे दादा मर गए और मेरे नाम पचास हजार रुपए छोड़ गए। दूसरे सप्ताह मेरे चाचा मर गए और मेरे नाम तीस हजार रुपए छोड़ गए और तीसरा सप्ताह पूरा होने को है, अभी तक कुछ नहीं हुआ। ___ मन पुनरुक्ति मांगता है। इसका सवाल नहीं है कि कोई मरेगा तब कुछ होगा। मरने का दुख एक तरफ रह गया। वह पचास हजार रुपए मिलने का सुख है। इसलिए मनसविद कहते हैं कि सिर्फ गरीब बाप के मरने से बेटे दुखी होते हैं; अमीर बाप के मरने से केवल दुख प्रगट करते हैं। इसमें सच्चाई है। क्योंकि मृत्यु से भी ज्यादा कुछ और साथ में अमीर बाप के साथ घटता है। उसका धन भी बेटे के हाथ में आ जाता है। दुख वह प्रगट करता है, लेकिन वह दुख ऊपरी हो जाता है। भीतर एक रस भी आ जाता है। और अगर उसे पता चले कि बाप पुनः जिन्दा हो गया, तो आप समझ सकते हैं, मुसीबत कैसी मालम पड़े। वह नहीं। जिन्दा, यह दूसरी बात है। मुल्ला की जिंदगी में ऐसी तकलीफ हो गयी थी। उसकी पत्नी मर गयी, बामश्किल मरी। अर्थी को उठाकर ले जा रहे थे कि अर्थी सामने लगे हुए नीम के वृक्ष से टकरा गयी। अंदर से आवाज आयी हलन-चलन की। लोगों ने अर्थी उतारी, पत्नी मरी नहीं थी, सिर्फ बेहोश थी। मुल्ला बड़ा छाती पीटकर रो रहा था। पत्नी को जिंदा देखकर बड़ा दुखी हो गया—छाती पीटकर रो रहा था, पत्नी को जिन्दा देखकर वह बड़ा दुखी हो गया। फिर पत्नी तीन साल और जिन्दा रही, फिर मरी, और जब अर्थी उठाकर लोग चलने लगे तो मुल्ला फिर छाती पीटकर रो रहा था। जब नीम के पास पहुंचे, तो उसने कहा-भाइयो, जरा सम्भालकर, फिर से मत टकरा देना। __ आदमी, जो प्रगट करता है, वही उसके भीतर है, ऐसा जरूरी नहीं है। ज्यादा सम्भावना तो यह है कि वह जो प्रगट करता है, उससे विपरीत उसके भीतर होता है। शायद वह प्रगट ही इसलिए करता है कि वह जो विपरीत भीतर है वह छिपा रहे, वह प्रगट न हो जाए। अगर ज्यादा जोर से छाती पीटकर रो रहा है तो जरूरी नहीं कि इतना दुख हो। लेकिन कहीं किसी को पता न चल जाए 219 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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