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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 में रस है। वही तो एकांत के साधक को आता है। अब आप यह जानकर हैरान होंगे कि एकांत के साधक को जो आता है, अगर वह किसी क्षण में सिगरेट पीने में आ गया, और आ सकता है, और आ जाता है, क्योंकि सिगरेट भी तोड़ती है। इसलिए अकेला आदमी बैठा रहे तो थोड़ी देर में सिगरेट पीना शुरू कर देता है। खयाल मिट जाता है सब चारों तरफ का। अपने में बंद हो जाता है, क्लोजिंग हो जाती है। यह वैसा ही है जैसे छोटा बच्चा अकेला पड़ा हुआ अपना अंगूठा पीता रहे। जब छोटा बच्चा अपना अंगूठा पीता है, ही इज़ डिसकनेक्टेड, उसका दुनिया से कोई संबंध नहीं रहा। दुनिया से उसे कोई मतलब नहीं, उसे अपनी मां से भी अब मतलब नहीं है। इसलिए मनोवैज्ञानिक कहते हैं-बच्चे को बहुत ज्यादा अंगूठा मत पीने देना। अन्यथा उसकी जिंदगी में सामाजिकता कम हो जाएगी। अगर कोई बच्चा बहुत दिनों तक अंगूठा पीता रहे तो वह एकांगी और अकेला हो जाएगा। वह दूसरों से मित्रता नहीं बना सकेगा। मित्रता की जरूरत नहीं। अपना अंगूठा ही मित्र का काम देता है। किसी से कुछ मतलब नहीं। जो बच्चा अंगूठा पीने लगेगा, उसका मां से प्रेम निर्मित नहीं हो पाएगा, क्योंकि मां से जो प्रेम निर्मित होता है वह उसके स्तन के माध्यम से ही होता है, और कोई माध्यम नहीं है। अगर वह अपने अंगूठे से इतना रस लेने लगा जितना मां के स्तन से मिलता रहा है, तो वह मां से इनडिपेंडेंट हो गया। अब उसकी कोई डिपेंडेंस नहीं मालूम होती उसको। अब वह निर्भर नहीं है। और जो बच्चा अपनी मां से प्रेम नहीं कर पाएगा, इस दुनिया में वह फिर किसी से प्रेम नहीं कर पाएगा, क्योंकि प्रेम का पहला पार्ट ही नहीं हो पाया। वह बच्चा अपने में बंद हो गया। एक अर्थ में वह बच्चा अब समाज का हिस्सा नहीं रह गया। और जानकर आप हैरान होंगे कि जो बच्चे बचपन में ज्यादा अंगूठा पीते हैं, वे ही बच्चे बड़े होकर सिगरेट पीते हैं। जिन बच्चों ने बचपन में अंगूठा कम पिया है या नहीं पिया है, उनके जीवन में सिगरेट पीने की सम्भावना ना के बराबर हो जाती है। क्योंकि सिगरेट जो है वह अंगूठे का सब्स्टीट्यूट है, वह उसका परिपूरक है। बड़ा आदमी अंगूठा पीए तो जरा बेहूदा मालूम पड़ेगा। तो उसने सिगरेट ईजाद की है, चुरुट ईजाद किया है। उसने ईजाद की है चीजें, उसने हुक्का ईजाद किया है, लेकिन पी रहा है वह अंगूठा। वह कुछ और नहीं पी रहा है। लेकिन बड़ा है तो एकदम सीधा-सीधा अंगूठा पिएगा तो जरा बेहूदा लगेगा। लोग क्या कहेंगे! इसलिए उसने एक परिपूरक इंतजाम कर लिया है। अब लोग कुछ भी न कहेंगे। ज्यादा से ज्यादा इतना ही कहेंगे कि सिगरेट पीने से नुकसान होता है। अंगूठा पीने से कोई भी न कहेगा कि नुकसान होता है, लेकिन अंगूठा पीते देखकर आदमी चौंक जाएंगे कि यह क्या कर रहे हो! सिगरेट पीने से इतना ही कहेंगे कि नुकसान होता है। वह कहेगा-क्या करें मजबूरी है, यह तो मैं भी जानता हूं, लेकिन आदत पड़ गयी है। अंगूठे में वह बुद्धू मालूम पड़ेगा, सिगरेट में वह समझदार मालूम पड़ेगा। सब्स्टीट्यूट सिर्फ धोखा देते हैं। लेकिन, अगर एक बार रस आ जाए तो गलत से गलत चीज संयुक्त हो जाती है। दन उसके काफी हाउस में पहंच गयी जहां वह शराब पीता रहता था बैठकर। मल्ला अपना टेबल पर गिलास और बोतल लिए बैठा था। पत्नी आ गयी तो घबराया तो बहुत, लेकिन उसने, पत्नी आ गयी थी तो एक प्याली में उसको भी डालकर शराब दी। पत्नी भी आयी थी आज जांचने कि यह क्या करता रहता है! शराब उसने एक घुट पिया, नितान्त तिक्त और बेस्वाद था, उसने नीचे रख दिया और मुंह बिगाड़ा, और उसने कहा कि मुल्ला, तुम यह पीते रहते हो? मुल्ला ने कहा-सोचो, तू सोचती थी मैं बड़ा आनंद मनाता रहता हूं। यही दुख भोगने के लिए हम यहां आते हैं। समझ गयी, अब दुबारा भूलकर मत कहना कि वहां तुम बड़ा आनंद करने जाते हो। शराब का पहला अनुभव तो दुखद ही है, लेकिन शराब के गहरे अनुभव धीरे-धीरे सुखद होने शुरू हो जाते हैं, क्योंकि शराब 218 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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