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रस-परित्याग और काया-क्लेश
पुलिस भी आ गयी है, लेकिन उसने सब सीढ़ियों पर ताले डाल रखे हैं। कोई ऊपर चढ़ नहीं पा रहा है। गांव का मेयर भी आ गया है। सारा गांव नीचे धीरे-धीरे इकट्ठा हो गया है, और मुल्ला ऊपर खड़ा है। वह कहता है-मैं कूदकर मरूंगा। आखिर मेयर ने उसे समझाया कि तू कुछ तो सोच ! अपने मां-बाप के संबंध में सोच ! मुल्ला ने कहा--मेरे मां-बाप मर चुके। उनके संबंध में सोचता हूं तो और होता है जल्दी मर जाऊं। मेयर ने चिल्ला कर कहा-अपनी पत्नी के संबंध में तो सोच !
उसने कहा -वह याद ही मत दिलाना, नहीं तो और जल्दी कूद जाऊंगा। मेयर ने कहा-कानून के संबंध में सोच, अगर आत्महत्या की कोशिश की, फंसेगा। मुल्ला ने कहा-जब मर ही जाऊंगा तो कौन फंसेगा! यह देखते हैं, बडी मश्किल थी। मेयर न समझा पाया। आखिर गुस्से में उसने कहा कि तेरी मर्जी तो कूद, इसी वक्त कूद और मर जा। मुल्ला ने कहा, तू कौन है मुझे सलाह देने वाला कि मैं मर जाऊं ! नहीं मरूंगा। ___ आदमी का मन ऐसा चलता है। अगर कोई आपको समझाए कि मर जाओ, जीने का मन पैदा होता है। कोई आपको समझाए कि जियो, तो मरने का मन पैदा होता है। मन विपरीत में रस लेता है। इसलिए जो लोग मन को मारने में लगते हैं उनका मन और रसपूर्ण होता चला जाता है। न वस्तु को छोड़ने से रस का परित्याग होता है; न इंद्रिय को मारने से रस का परित्याग होता है; न मन से लड़ने से रस का परित्याग होता है। हम सभी तो मन से लड़ते हैं, लेकिन कौन सा रस का परित्याग हो जाता है ! मात्राओं के भेद होंगे, लेकिन हम सभी मन से लड़ने वाले हैं। हम मन को कितना दबाते हैं, कितना समझाते हैं! इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जिस चीज के लिए आप मन को समझाते हैं, मन उसी की मांग बढ़ाता चला जाता है। असल में आप जब समझाते हैं, तभी आप स्वीकार कर लेते हैं कि आप कमजोर हैं, और मन ताकतवर है। और जब एक बार आपने अपने मन के सामने अपनी कमजोरी स्वीकार कर ली तो मन फिर आपकी गर्दन को दबाता चला जाता है। आप मन से कहते हैं-यह मत मांग, यह मत मांग, यह मत मांग। लेकिन आपको खयाल है कि नियम क्या है? जितना ही आप कहते हैं, मत मांग, मांगने में रस आ जाता है। लगता है, जरूर कुछ मांगने जैसी चीज है। जरूर कुछ पाने जैसी चीज है। मन को जितना रोकते हैं, उसकी उत्सुकता बढ़ती है और गहन होती है। मन के जितने द्वार बन्द करते हैं, उसकी जिज्ञासा उतनी बढ़ती है, उतना लगता है कि कोई द्वार खोलकर झांक लूं और देख लूं।
तो जो भी मन के साथ लड़ने में लगेगा. वह रस को जगाने में लगेगा। यह भी ध्यान रखें कि मन से हम जिस चीज को भलाने की कोशिश करते हैं वहां हम एक बहुत ही अमनोवैज्ञानिक काम कर रहे हैं। क्योंकि भुलाने की हर कोशिश याद करने की व्यवस्था है। इसलिए कोई आदमी किसी को भुला नहीं सकता। भूल सकता है, भुला नहीं सकता। अगर आप किसी को भुलाना चाहते हैं तो आप कभी न भुला पाएंगे। क्योंकि जब भी आप भुलाते हैं, तभी आप फिर से याद करते हैं। आखिर भुलाने के लिए भी याद तो करना पड़ेगा, और तब याद करने का क्रम सघन होता जाता है, और याद की रेखा मजबूत और गहरी होती चली जाती है। ___ तो जिसे आपको याद रखना हो, उसे भुलाने की कोशिश करना और जिसे आपको भुला देना हो, उसे कभी भी भुलाने की कोशिश मत करना, तो वह भूला जा सकता है। क्योंकि पुनरुक्ति याद बनती है, प्रेमियों का यही कष्ट है सारी दुनिया में। वे किसी प्रेमी को भुला देना चाहते हैं। जितना भुलाते हैं उतनी मुश्किल में पड़ जाते हैं। भुलाने की ज्यादा बेहतर तरकीब वह शादी कर लें और प्रेमी को घर में ले आएं। फिर बिलकुल याद नहीं आती। मन का यह नियम ठीक से खयाल में ले लें, अन्यथा बड़ी कठिनाई होती है। तथाकथित साधु, तपस्वी इसी मन के गहरे नियम को न समझने के कारण बहुत उलझाव में पड़ जाते हैं। भुलाने में लगे हैं। स्त्री न दिखाई पड़े, इसलिए आंख बंद करने में लगे हैं। भोजन न दिखाई पड़े इसलिए इन्द्रियों को सिकोड़ने में लगे हैं। न आ जाए, मन को वहां से विपरीत किसी दूसरी दिशा में उलझाने में लगे हैं। लेकिन इस सबसे जहां-जहां से वे अपने को हटा
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