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रस-परित्याग और काया-क्लेश
केवल निमित्त होती है, किसी रंग को आपके भीतर पैदा करने के लिए। जब आप नहीं होते, जब आब्जर्वर नहीं होता, जब कोई देखने वाला नहीं होता, वस्तु रंगहीन हो जाती है, कलरलैस हो जाती है। ___ असल में प्रकाश की किरण जब किसी वस्तु पर पड़ती है तो वस्तु प्रकाश की किरण को पीती है। अगर वह सारी किरणों को पी जाती है तो काली दिखाई पड़ती है। अगर वह सारी किरणों को छोड़ देती है और नहीं पीती तो सफेद दिखाई पड़ती है। 3 वह लाल रंग की किरण को छोड़ देती है और बाकी किरणों को पी लेती है तो लाल दिखाई पड़ती है। अब यह बहुत हैरानी होगी कि जो वस्तु लाल दिखाई पड़ती है वह लाल को छोड़कर सब रंगों को पीती है, सिर्फ लाल को छोड़ देती है। वह जो छूटी हुई लाल किरण है वह आपकी आंख पर पड़ती है, और उस किरण की वजह से वस्तु लाल दिखाई पड़ती है, जहां से वह आती हुई मालूम पडती है। लेकिन अगर कोई आंख ही नहीं है तो लाल किसको दिखाई पडेगी? उस किरण को पकड़ने के लिए कोई आंख चाहिए तब वह लाल दिखाई पड़ेगी। आपका बाहर जाना भी जरूरी नहीं है।
जब आप आंख बंद कर लेते हैं तो वस्तुएं रंगहीन हो जाती हैं, कलरलैस हो जाती हैं। कोई रंग नहीं रह जाता। इसका यह भी मतलब नहीं है कि वे सब एक जैसी हो जाती हैं। क्योंकि अगर वे सब एक जैसी हो जाएं तो जब आप आंख खोलेंगे तो उनमें सब में एक-सा रंग दिखाई पड़ना चाहिए। रंगहीन हो जाती हैं, लेकिन उनके रंगों की संभावना मौजूद बनी रहती है, पोटेंशियलिटी। जब
आप आंख खोलेंगे तो लाल-लाल होगी, हरी-हरी होगी। जब आप आंख बंद कर लेंगे तो लाल-लाल न रह जाएगी, हरी-हरी न रह जाएगी। इसे ऐसा समझें कि लाल रंग की वस्तु सिर्फ वस्तु का रंग नहीं है, वस्तु और आपकी आंख के बीच का संबंध है, रिलेशनशिप है। क्योंकि आंख बन्द हो गई, रिलेशनशिप टूट गई, संबंध टूट गया। लाल रंग की कुर्सी नहीं है। आपकी आंख और कुर्सी के बीच लाल रंग का संबंध है। अगर आंख नहीं है तो संबंध टूट गया।
जब आप किसी चीज को कहते हैं-मीठा, तब भी वस्तु और आपके स्वादेंद्रिय के बीच का संबंध है। वस्तु मीठी नहीं है। इसका यह मतलब नहीं है कि कड़वी और मीठी वस्तु में कोई फर्क नहीं है। पोटेंशियल फर्क है। बीज फर्क है, लेकिन अगर जीभ पर न रखा जाए तो कोई फर्क नहीं है। न कड़वी कड़वी है; आप यह नहीं कह सकते कि नीम कड़वी है जब तक आप जीभ पर नहीं रखते। आप कहेंगे-मैं रखू या न रखू, मेरे न रखने पर भी नीम कड़वी तो होगी ही। तब आप भूल करते हैं। क्योंकि कड़वा होना आपकी जीभ और नीम के बीच का संबंध है। नीम का अपना स्वभाव नहीं है, सिर्फ संबंध है। _इसे ऐसा समझें कि एक बच्चा पैदा हुआ एक स्त्री को। जब बच्चा पैदा होता है तो बच्चा ही पैदा नहीं होता, मां भी पैदा होती है। क्योंकि मां एक संबंध है। वह स्त्री बच्चा होने के पहले मां नहीं थी। और अगर बच्चा मर जाए तो फिर मां नहीं रह जाएगी। मां होना एक संबंध है। वह बच्चे और उस स्त्री के बीच जो संबंध है, उसका नाम है। बच्चे के बिना वह मां नहीं हो सकती। बच्चा भी मां के बिना नहीं हो सकता।
इस बात को खयाल में ले लें कि हमारे सब रस संबंध हैं वस्तुओं और हमारी जीभ के बीच। लेकिन अगर बात इतनी ही होती तो संबंध दो तरह से टूट सकता था—या तो हम जीभ को संवेदनहीन कर लें, उसकी सेंसिटीविटी को मार डालें, जीभ को जला लें तो रस नष्ट हो जाएगा। या हम वस्तु का त्याग कर दें तो रस नष्ट हो जाएगा। अगर बात इतनी ही आसान होती तो दो तरफ से संबंध तोड़े जा सकते हैं - या तो हम वस्तु को छोड़ दें जैसा कि साधारणतः महावीर की परम्परा में चलने वाला साधु करता है। वस्तु को छोड़ देता है। तब सोचता है कि रस से मुक्ति हो गई। रस से मुक्ति नहीं हुई। वस्तु में अभी भी पोटेंशियल रस है और जीभ में अभी भी पोटेंशियल सेंसिटीविटी है। अभी भी जीभ अनुभव करने में क्षम है और अभी भी वस्तु अनुभव देने में क्षम है। सिर्फ
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