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________________ महावीर-वाणी भाग : 1 पहली दफा नास्तिकों के हाथ में सत्ता थी। पूरे मनुष्य जाति के इतिहास में जहां पहली बार नास्तिकों ने एक संगठित प्रयास किया था - आस्तिकों के संगठित प्रयास तो होते रहे हैं। और केयसी की यह घोषणा कि चालीस साल बाद रूस से जन्म होगा! ___ असल में जैसे ही रूस पर नास्तिकता अति आग्रहपूर्ण हो गयी तो जीवन का एक नियम है कि जीवन एक तरह का संतुलन निर्मित करता है। जिस देश में बड़े नास्तिक पैदा होने बंद हो जाते हैं, उस देश में बड़े आस्तिक भी पैदा होने बंद हो जाते हैं। जीवन एक संतुलन है। और जब रूस में इतनी प्रगाढ़ नास्तिकता थी तो 'अंडरग्राउंड', छिपे मार्गों से आस्तिकता ने पुनः आविष्कार करना शुरू कर दिया। स्टेलिन के मरने तक सारी खोजबीन छिपकर चलती थी, स्टेलिन के मरने के बाद वह खोजबीन प्रगट हो गयी। स्टेलिन खुद भी बहुत हैरान था। वह मैं बात आपसे करूंगा। __ यह माइखालोवा पंद्रह वर्ष से रूस में सर्वाधिक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व है। क्योंकि माइखालोवा सिर्फ ध्यान से किसी भी वस्तु को गतिमान कर पाती है। हाथ से नहीं, शरीर के किसी प्रयोग से नहीं। वहां दूर, छह फीट दूर रखी हुई कोई भी चीज माइखालोवा सिर्फ उस पर एकाग्र चित्त होकर उसे गतिमान - या तो अपने पास खींच पाती है, वस्तु चलना शुरू कर देती है, या अपने से दूर हटा पाती है, या 'मैगनेटिक नीडल' लगी हो तो उसे घुमा पाती है, या घड़ी हो तो उसके कांटे को तेजी से चक्कर दे पाती है, या घड़ी हो तो बंद कर पाती है - सैकड़ों प्रयोग। लेकिन एक बहुत हैरानी की बात है कि अगर माइखालोवा प्रयोग कर रही हो और आसपास संदेहशील लोग हों तो उसे पांच घंटे लग जाते हैं, तब वह हिला पाती है। अगर आसपास मित्र हों, सहानुभूतिपूर्ण हों, तो वह आधे घंटे में हिला पाती है। अगर आसपास श्रद्धा से भरे लोग हों तो पांच मिनट में। और एक मजे की बात है कि जब उसे पांच घंटे लगते हैं किसी वस्तु को हिलाने में तो उसका कोई दस पौंड वजन कम हो जाता है। जब उसे आधा घंटा लगता है तो कोई तीन पौंड वजन कम होता है। और जब पांच मिनट लगते हैं तो उसका कोई वजन कम नहीं होता है। __ ये पंद्रह सालों के बड़े वैज्ञानिक प्रयोग किये गये हैं। दो नोबल प्राइज़ विनर वैज्ञानिक डा. वासीलिएव और कामेनिएव और चालीस और चोटी के वैज्ञानिकों ने हजारों प्रयोग करके इस बात की घोषणा की है कि माइखालोवा जो कर रही है, वह तथ्य है। और अब उन्होंने यंत्र विकसित किये हैं जिनके द्वारा माइखालोवा के आसपास क्या घटित होता है, वह रिकार्ड हो जाता है। तीन बातें रिकार्ड होती हैं। एक तो जैसे ही माइखालोवा ध्यान एकाग्र करती है, उसके आसपास का आभामंडल सिकुड़कर एक धारा में बहने लगता है - जिस वस्तु के ऊपर वह ध्यान करती है, जैसे लेसर रे की तरह, एक विद्युत की किरण की तरह संग्रहीत हो जाता है। और उसके चारों तरफ किरलियान फोटोग्राफी से, जैसे कि समुद्र में लहरें उठती हैं, ऐसा उसका आभामंडल तरंगित होने लगता है। और वे तरंगें चारों तरफ फैलने लगती हैं। उन्हीं तरंगों के धक्के से वस्तुएं हटती हैं या पास खींची जाती हैं। सिर्फ भाव मात्र - उसका भाव कि वस्तु मेरे पास आ जाए, वस्तु पास आ जाती है। उसका भाव कि दूर हट जाए, वस्तु दूर चली जाती है। __ इससे भी हैरानी की बात जो तीसरी है वह यह कि रूसी वैज्ञानिकों का खयाल है कि यह जो एनर्जी है, यह चारों तरफ जो ऊर्जा फैलती है, इसे संग्रहीत किया जा सकता है, इसे यंत्रों में संग्रहीत किया जा सकता है। निश्चित ही जब एनर्जी है तो संग्रहीत की जा सकती है। कोई भी ऊर्जा संग्रहीत की जा सकती है। और इस प्राण-ऊर्जा का, जिसको योग 'प्राण' कहता है में संग्रहीत हो जाए, तो उस समय जो मूलभाव था व्यक्ति का, वह गुण उस संग्रहीत शक्ति में भी बना रहता है। जैसे, माइखालोवा अगर किसी वस्तु को अपनी तरफ खींच रही है, उस समय उसके शरीर से जो ऊर्जा गिर रही है - जिसमें कि उसका तीन पौंड या दस पौंड वजन कम हो जाएगा - वह ऊर्जा संग्रहीत की जा सकती है। ऐसे रिसेप्टिव यंत्र तैयार किये गये हैं कि वह ऊर्जा उन यंत्रों में प्रविष्ट हो जाती है और संग्रहीत हो जाती है। फिर यदि उस यंत्र को इस कमरे में रख दिया जाए और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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