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महावीर-वाणी
भाग : 1
आदमी अपनी वंचनाओं को नहीं देखता, उसके हां और न में फर्क नहीं रह जाता। वह न कहता है और हां कर लेता है। हां कहता है और न कर लेता है। __मुल्ला नसरुद्दीन का लड़का पैदा हुआ। बड़ा हुआ तो नसरुद्दीन ने सोचा कि क्या बनेगा, इसकी कुछ जांच कर लेनी चाहिए। उसने कुरान रख दी, पास एक शराब की बोतल रख दी, एक दस रुपए का नोट रख दिया और छोड़ दिया उसको कमरे में और छिपकर खड़ा हो गया। लड़का गया, उसने दस रुपये का नोट जेब में रखा, कुरान बगल में दबायी और शराब पीने लगा। नसरुद्दीन भागा, अपनी बीबी से बोला कि यह राजनीतिज्ञ हो जाएगा। कुरान पढ़ता तो सोचते धार्मिक हो जाएगा, शराब पीता तो सोचते अधार्मिक हो जाएगा, रुपया जेब में रखकर भाग गया होता तो सोचते व्यापारी हो जाएगा। यह पालिटिशियन हो जाएगा। यह कहेगा कुछ, करेगा कुछ, होगा कुछ। यह सब एक साथ करेगा। ___ हमारा चित्त ऐसा ही कर रहा है-धर्म भी कर रहा है, अधर्म भी सोच रहा है। जो कर रहा है, जो सोच रहा है, दोनों से कोई संबंध नहीं है, खुद कुछ और ही है। और यह सब जाल एक साथ है। तपश्चर्या इस जाल को काटने का नाम है और व्यक्तित्व को एक प्रतिमा देने की प्रक्रिया है-इस बात की कोशिश है कि व्यक्तित्व में एक स्पष्ट रूप निखर आए, एक आकार बन जाए। आप ऐसे विकृत कुछ भी आकार न रह जाएं, आप में एक आकार उभरे, आहिस्ता-आहिस्ता आप स्पष्ट होते जाएं, एक क्लेरिटी हो। अगर आपको नहीं भोजन लेना है तो नहीं लेना है, यह आपके पुरे व्यक्तित्व की आवाज हो जाए, बात खत्म हो गयी। अब यह बात नहीं उठेगी जब तक नहीं लेना है। __ महावीर तो बहुत अनूठा प्रयोग करते थे क्योंकि यह भी हो सकता है... उसीके बचाव के लिए वह प्रयोग था। यह भी हो सकता है कि आपने तय कर लिया है कि चौबीस घंटे नहीं लेंगे भोजन और न सोचेंगे। तो मन कहता है - कोई हर्जा नहीं, चौबीस ही घंटे की बात है न। चौबीस घंटे बाद तो सोचेंगे, करेंगे। ठीक है किसी तरह चौबीस घंटे निकाल देंगे। मन इसके लिए भी राजी हो सकता है। क्योंकि इनडेफिनिट नहीं है मामला, डेफिनिट है, निश्चित है। चौबीस घंटे के बाद तो कर ही लेना है, तो चौबीस ही घंटे की बात है न! एक मजबूरी जैसा आप ढो लेंगे। लेकिन तब आपको उपवास की प्रफुल्लता न मिलेगी, बोझ होगा। तब उपवास का आनन्द आपके भीतर न खिलेगा। वह एक्सटैसी, वह लहर आपके भीतर न आएगी जो इंद्रियों के ऊपर मालकियत के होने से आती है। तब सिर्फ एक बोझ होगा कि चौबीस घंटे ढो लेना है। गुजार देंगे चौबीस घंटे। निकाल देंगे, समय को। काट लेंगे समय को स्थानक में, मंदिर में देरासर में, कहीं बैठकर समय गुजार देंगे, किसी तरह निपटा ही देंगे। .. लेकिन तब, तब अनशन नहीं हुआ। महावीर निश्चित न करते थे कि कब भोजन लेंगे। और अनिश्चय पर छोड़ते थे, नियति पर । बहुत हैरानी का प्रयोग था, वह महावीर ने अकेले ही इस पृथ्वी पर किया। वे कहते थे कि भोजन मैं तब लूंगा जब ऐसी घटना घटेगी। तब घटना अपने हाथ में नहीं। रास्ते पर निकलूंगा अगर किसी बैलगाड़ी के सामने कोई आदमी खड़ा होकर रो रहा होगा, अगर बैल काले रंग के होंगे, अगर उस आदमी की एक आंख फूटी होगी और एक आंख से आंसू टपक रहा होगा, तो मैं भोजन ले लूंगा।
और वह भी अगर वहीं कोई भोजन देने के लिए निमंत्रण दे देगा। नहीं तो आगे बढ़ जाऊंगा। अनेक दिन महावीर गांव में जाते, वे जो तय करके जाते थे—जो तय उन्होंने कर लिया था पहले दिन भोजन के छोड़ने के, वह पूरा नहीं होता, वे वापस लौट आते लेकिन वे बड़े आनन्दित वापस लौटते, क्योंकि वे कहते कि जब नियति की ही इच्छा नहीं है तो हम क्यों इच्छा करें? जब कास्मिक, जब जागतिक शक्ति कहती है कि नहीं आज भोजन, तो बात खत्म हो गयी। अब तुम जानो, तुम्हारा काम जाने, नियति जाने। वे वापस लौट आते। गांवभर रोता, गांवभर परेशान होता, क्योंकि गांव में अनेक लोग खड़े होते भोजन ले लेकर और अनेक इंतजाम
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