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महावीर-वाणी
भाग : 1
से भोजन पाना शुरू कर देता है। लेकिन नींद? बहुत मुश्किल मामला है। सात दिन भी अगर आदमी को बिना सोए रख दिया जाए तो वह विक्षिप्त हो जाता है। और वल्नरेबल हो जाता है। सात दिन अगर किसी को न सोने दिया जाए तो उसकी बुद्धि इतनी ज्यादा डावांडोल हो जाती है कि उससे फिर आप कुछ भी कहें, वह मानना शुरू कर देता है। इसलिए सात या नौ दिन चीन में विरोधी को बिना सोया रखेंगे और फिर कम्युनिज्म का प्रचार उसके सामने किया जाएगा। कम्युनिज्म की किताब पढ़ी जाएगी, माओ का संदेश सुनाया जाएगा। और जब वह इस हालत में नहीं होता कि रेसिस्ट कर सके कि तुम जो कह रहे हो, वह गलत है; तर्क टूट जाता है। नींद के विकृत होने के साथ ही तर्क टूट जाता है। अब उसको मानना ही पड़ेगा, जो आप कह रहे हैं; ठीक कह रहे हैं।
नींद का प्रयोग महावीर ने नहीं किया, अनशन का प्रयोग किया। मनुष्य के हाथ में जो सर्वाधिक सुविधापूर्ण, सरलतम प्रयोग है-दो यंत्रों के बीच में ठहर जाने का, वह भोजन है। लेकिन आप अगर अभ्यास कर लें तो अर्थ नहीं रह जाएगा। ये प्रयोग आकस्मिक हैं-अचानक।
आपने भोजन नहीं लिया है, और जब आपने भोजन नहीं लिया है तब ध्यान रखें न तो भोजन का, न उपवास का ध्यान रखें उस मध्य के बिन्दु का कि वह कब आता है। आंख बन्द कर लें और अब भीतर ध्यान रखें कि शरीर का यंत्र कब स्थिति बदलता है। तीन दिन में, चार दिन में, पांच दिन में, सात दिन में, कभी स्थिति बदली जाएगी। और जब स्थिति बदलती है तब आप बिलकुल दुसरे लोक में प्रवेश करते हैं। आपको पहली दफे पता चलता है कि आप शरीर नहीं हैं-न तो वह शरीर जो अब तक काम कर रहा था और न यह शरीर जो अब काम कर रहा है। दोनों के बीच में एक क्षण का बोध भी कि मैं शरीर नहीं हूं, मनुष्य के जीवन में अमृत का द्वार खोल देता है।
लेकिन महावीर के पीछे जो परंपरा चल रही है वह अनशन का अभ्यास कर रही है। अभ्यासी है, वर्ष-वर्ष अभ्यास कर रहे हैं, जीवनभर अभ्यास कर रहे हैं। वे इतने अभ्यासी हो गए हैं - जितने अभ्यासी, उतने अंधे। अब उनको कुछ दिखाई नहीं पड़ेगा। जैसे आप अपने घर जिस रास्ते पर रोज-रोज आते हैं उस रास्ते पर आप अंधे होकर चलने लगते हैं, फिर आपको उस रास्ते पर कुछ दिखाई नहीं पड़ता। लेकिन जब कोई आदमी पहली दफा उस रास्ते पर आता है उसे सब दिखाई पड़ता है। अगर आप कश्मीर जाएंगे तो डल झील पर आपको जितना दिखाई पड़ता है वह जो माझी आपको घूमा रहा है, उसको दिखाई नहीं पड़ता। वह अंधा हो जाता
___ अभ्यास अंधा कर देता है। इसे थोड़ा समझ लें। वह इतनी बार देख चुका है कि देखने की कोई जरूरत नहीं रह जाती। वह बिना देखे चलाता रहता है। इसलिए जिनके साथ हम रहते हैं उनके चेहरे हमें दिखाई नहीं पड़ते-जिनके साथ हम रहते हैं उनके चेहरे हमें दिखाई नहीं पड़ते। अगर ट्रेन में आपको कोई अजनबी मिल गया है तो उसका चेहरा आपको अभी भी याद हो सकता है। लेकिन अपनी मां का या अपने पिता का चेहरा आप आंख बंद करके याद करेंगे तो ब्लर्ड हो जाएगा, याद नहीं आएगा। न याद करें तो आपको लगेगा कि मुझे मालूम है कि मेरे पिता का चेहरा कैसा है। आंख बंद करें और याद करें तो आप पाएंगे कि खो गया। नहीं मिलता कैसा है। पिता का चेहरा फिर भी दूर है, आप अपना चेहरा तो रोज आइने में देखते हैं। आंख बंद करें और याद करें,
खो जाएगा। नहीं मिलेगा। आप अंधे की तरह आइने के सामने देख लेते हैं। अभ्यास पक्का है। ___ अभ्यास अंधा कर देता है। और जो सूक्ष्म चीजें हैं वे दिखाई नहीं पड़ती। और यह बहुत सूक्ष्म बिन्दु है। भोजन और अनशन के बीच का जो संक्रमण है, ट्रांसमिशन है, वह बहुत सूक्ष्म और बारीक है, बहुत डेलिकेट है, बहुत नाजुक है। जरा से अभ्यास से आप उसको चूक जाएंगे, वह आपको खयाल में नहीं आएगा। इसलिए अनशन का भूलकर अभ्यास न करें। कभी अचानक उसका
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