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अनशन : मध्य के क्षण का अनुभव
सूफियों ने रात में जागने का प्रयोग किया है – सोओ मत, जागे रहो। इतने जागे रहो, जब नींद पकड़े तो मत नींद में जाओ, जागे ही रहो, जागे ही रहो, जागे ही रहो। अगर जागने की चेष्टा जारी रही, और जागने का यंत्र थक गया और बंद हो गया और एक क्षण को भी आप उस हालत में रह गए जब जागना भी न रहा और नींद भी न रही, तो आप बीच के अंतराल में उतर जाएंगे। इसलिए सूफियों ने नाइट विजिलेंस को, रात्रि जागरण को बड़ा मूल्य दिया। महावीर ने उसी प्रयोग को अनशन के द्वारा किया है। वही प्रयोग
तंत्र का एक अदभुत ग्रन्थ है, विज्ञान भैरव। उसमें शंकर ने पार्वती को ऐसे सैकड़ों प्रयोग कहे हैं। हर प्रयोग दो पंक्तियों का है। हर प्रयोग का परिणाम वही है कि बीच का गैप आ जाए। शंकर कहते हैं - श्वास भीतर जाती है। श्वास बाहर जाती है पार्वती, तू दोनों के बीच में ठहर जाना तो तू स्वयं को जान लेगी। जब श्वास बाहर भी न जा रही हो और भीतर भी न आ रही हो, तब तू ठहर जाना, बीच में, दोनों के। किसी से प्रेम होता है, किसी से घृणा होती है, वहां ठहर जाना जब प्रेम भी न होता और घृणा भी नहीं होती; दोनों के बीच में ठहर जाना। तू स्वयं को उपलब्ध हो जाएगी। दुख होता है, सुख होता है; तू वहां ठहर जाना जहां न दुख है, न सुख; बीच में, मध्य में और तू ज्ञान को उपलब्ध हो जाएगी। ___ अनशन उसी का एक व्यवस्थित प्रयोग है। और महावीर ने अनशन क्यों चुना? मैं मानता हूं दो श्वासों के बीच में ठहरना बहुत कठिन मामला है। क्योंकि श्वास जो है वह नानवालेंटरी है, वह आपकी इच्छा से नहीं चलती, वह आपकी बिना इच्छा के चलती रहती है। आपकी कोई जरूरत नहीं होती है उसके लिए। आप रात सोए रहते हैं, तब भी चलती रहती है, भोजन नहीं चल सकता सोने में। भोजन वालेंटरी है। आप की इच्छा से रुक भी सकता है, चल भी सकता है। आप ज्यादा भी कर सकते हैं, कम भी कर सकते हैं। आप भूखे भी रह सकते हैं तीस दिन, लेकिन बिना श्वास के नहीं रह सकते हैं। श्वास के बिना तो थोड़े-से क्षण भी रह जाना मुश्किल हो जाएगा और बिना श्वास के अगर थोड़े से क्षण भी रहे तो इतने बेचैन हो जाएंगे कि उस बेचैनी में वह जो बीच का गैप है, वह दिखाई नहीं पड़ेगा, बेचैनी ही रह जाएगी। इसलिए महावीर ने श्वास का प्रयोग नहीं कहा। महावीर ने एक वालेंटरी हिस्सा चुना, भोजन वालेंटरी हिस्सा है। नींद भी सूफियों ने जो चुना है वह भी थोड़ी कठिन है क्योंकि नींद भी नानवालेंटरी है, आप अपनी कोशिश से नहीं ला सकते। आती है तब आ जाती है। नहीं आती तो लाख उपाय करो, नहीं आती। नींद भी आपके वश में नहीं है। नींद भी आपके बाहर है, बहुत कठिन है नींद पर वश करना। __ महावीर ने बहुत सरल-सा प्रयोग चुना, जिसे बहुत लोग कर सकें - भोजन। एक तो सुविधा यह है कि नब्बे दिन तक न भी करें तो कोई खतरा नहीं है। अगर नब्बे दिन तक बिना सोए रह जाएं तो पागल हो जाएंगे। नब्बे दिन तो बहुत दूर है, नौ दिन भी अगर बिना सोए रह जाएं तो पागल हो जाएंगे। सब ब्लर्ड हो जाएगा। पता नहीं चलेगा कि जो देख रहे हैं वह सपना है या सच है। अगर नौ दिन आप न सोएं तो इस हाल में जो लोग बैठे हैं वह सच में बैठे हैं कि आप कोई सपना देख रहे हैं, आप फर्क न कर पाएंगे। ब्लर्ड हो जाएगा। नींद और जागरण ऐसा कंफ्यूज्ड हो जाएगा कि कुछ पक्का न रहेगा कि क्या हो रहा है। आप जो सुन रहे हैं वह वस्तुतः बोला जा रहा है, या सिर्फ आप सुन रहे हैं, यह तय करना मुश्किल हो जाएगा। और खतरनाक भी है। क्योंकि विक्षिप्त होने का पूरा डर है। ___ आज माओ के अनुयायी चीन में जो सबसे बड़ी पीड़ा दे रहे हैं अपने से विरोधियों को, वह, उनको न सोने देने की है। भूखा मारकर आप ज्यादा परेशान नहीं कर सकते क्योंकि सात आठ दिन के बाद भख बन्द हो जाती है। शरीर दसरे यंत्र पर चला जाता है। सात आठ दिन के बाद भूख नहीं लगती, भूख समाप्त हो जाती है। क्योंकि शरीर नए ढंग से भोजन पाना शुरू कर देता है, भीतर
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