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महावीर वाणी
भाग : 1
को सक्रिय कर लिया । और अनाहत चक्र की दूसरी खूबी है कि जिस व्यक्ति का अनाहत चक्र सक्रिय हो जाए वह आउट आफ ऐक्सपीरिएंस, शरीर के बाहर के अनुभवों में उतर जाता है। वह अपने शरीर के बाहर खड़े होकर देख पाता है। लेकिन जब आप शरीर के बाहर होते हैं, तब जो शरीर के बाहर होता है, वही आपकी प्राण ऊर्जा है। वही वस्तुतः आप हैं । वह जो ऊर्जा है उसे ही महावीर ने जीवन-अग्नि कहा है। और उस ऊर्जा को जगाने को ही वैदिक संस्कृति ने यज्ञ कहा है।
उस ऊर्जा के जग जाने पर जीवन में एक नयी ऊष्मा भर जाती है। एक नया उत्ताप, जो बहुत शीतल है। की, एक नया उत्ताप जो बहुत शीतल है। तो तपस्वी जितना शीतल होता है उतना कोई भी नहीं होता । तपस्वी । तपस्वी का अर्थ हुआ कि वह ताप से भरा हुआ है। लेकिन तप जितनी जग जाती है यह अग्नि, उतना है। चारों ओर शक्ति जग जाती है, भीतर केन्द्र पर शीतलता आ जाती है ।
वैज्ञानिक पहले सोचते थे कि यह जो सूर्य है हमारा, यह जलती हुई अग्नि है, है ही, उबलती हुई अग्नि । लेकिन अब वैज्ञानिक कहते हैं कि सूर्य अपने केन्द्र पर बिलकुल शीतल है, दि कोल्डेस्ट स्पाट इन दि युनिवर्स, यह बहुत हैरानी की बात है। चारों ओर अग्नि का इतना वर्तुल है, सूर्य अपने केन्द्र पर सर्वाधिक शीतल बिन्दु है। और उसका कारण अब खयाल में आना शुरू हुआ है। क्योंकि जहां इतनी अग्नि हो, उसको संतुलित करने के लिए इतनी ही गहन शीतलता केन्द्र पर होनी चाहिए, नहीं तो संतुलन टूट जाएगा ।
ठीक ऐसी ही घटना तपस्वी के जीवन में घटती है । चारों ओर ऊर्जा उत्तप्त हो जाती है, लेकिन उस उत्तप्त ऊर्जा को संतुलित करने के लिए केन्द्र बिलकुल शीतल हो जाता है। इसलिए तप से भरे व्यक्ति से ज्यादा शीतलता का बिन्दु इस जगत में दूसरा नहीं है, सूर्य भी नहीं। इस जगत में संतुलन अनिवार्य है। असंतुलन... चीजें बिखर जाती हैं ।
यही कठिनाई है समझने यद्यपि हम उसे कहते हैं केन्द्र शीतल हो जाता
आपने कभी गर्मी के दिनों में उठ गया बवंडर देखा होगा, धूल का । जब बवंडर चला जाए तब आप धूल के ऊपर जाना या रेत के पास जाना। तो आप एक बात देखेंगे कि बवंडर चारों तरफ था, बवंडर के निशान चारों तरफ बने हैं, लेकिन बीच में एक बिन्दु है जहां कोई निशान नहीं है। वहां शून्य था । वह बवंडर शून्य की धुरी पर ही घूम रहा था। बैलगाड़ी चलती है, लेकिन उसका चाक चलता है, लेकिन उसकी कील खड़ी रहती है। अब यह बहुत मजे की बात है कि खड़ी हुई कील पर चलते हुए चाक को सहारा है। खड़ी हुई कील पर, ठहरी हुई कील पर, चलते हुए चाक को चलना पड़ता है। अगर कील भी चल जाए तो गाड़ी गिर जाए । विपरीत से संतुलन है। जीवन का सूत्र तो तपस्वी की चेष्टा यह है कि वह इतनी अग्नि पैदा कर ले अपने चारों ओर, ताकि उस अग्नि के अनुपात में भीतर शीतलता का बिन्दु पैदा हो। वह अपनी ओर इतनी डाइनैमिक फोर्सेज, इतनी गत्यात्मक शक्ति को जन्मा ले कि भीतर शून्य का बिन्दु उपलब्ध हो जाए। वह अपने चारों ओर इतने तीव्र परिभ्रमण से भर जाए ऊर्जा के कि उसकी कील ठहर जाए, खड़ी हो जाए।
है • विपरीत से संतुलन ।
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उल्टा दिखाई पड़नेवाला यह क्रम है, इससे बड़ी भूल हो जाती है। इससे लगता है कि तपस्वी शायद ताप में उत्सुक है । तपस्वी शीतलता में उत्सुक है। लेकिन शीतलता को पैदा करने की विधि अपने चारों ओर ताप को पैदा कर लेना है । और यह ताप बाह्य नहीं है। यह अपने शरीर के आसपास आग की अंगीठी जला लेने से नहीं पैदा हो जाएगा। यह ताप आन्तरिक है । इसलिए महावीर ने, तपस्वी अपने चारों तरफ आग जलाए, इसका निषेध किया है। क्योंकि वह ताप बाह्य है। उससे आंतरिक शीतलता पैदा नहीं होगी; ध्यान रहे आन्तरिक ताप होगा तो ही आंतरिक शीतलता पैदा होगी, बाह्य ताप होगा, तो बाह्य शीतलता पैदा होगी। यात्रा करनी है अन्तर की तो बाहर के सब्स्टीट्यूट्स नहीं खोजने चाहिए। वे धोखे के हैं, खतरनाक हैं
अन्तर में क्या ताप पैदा हो सकता है? किरलियान ने ऐसे लोगों का अध्ययन किया है, फोटोग्राफी में जो सिर्फ अपने ध्यान से हाथ
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