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________________ तप ऊर्जा-शरीर का अनुभव का, अभी मर गए आदमी का चित्र लेते हैं तो वर्तुल नहीं आता। ऊर्जा के गुच्छे आदमी से दूर जाते हुए, आते हैं। ऊर्जा के गुच्छे आदमी से दूर हटते हुए, भागते हुए आते हैं। और तीन दिन तक मरे हुए आदमी के शरीर से ऊर्जा के गुच्छे बाहर निकलते रहते हैं। पहले दिन ज्यादा, दूसरे दिन और कम, तीसरे दिन और कम। जब ऊर्जा के गुच्छों का बहिर्गमन पूरी तरह समाप्त हो जाता है, तब आदमी पूरी तरह मरा वैज्ञानिक कहते हैं कि जब तक ऊर्जा निकल रही है तब तक उसको पुनरुज्जीवित करने की कोई विधि आज नहीं कल खोजी जा सकेगी। मृत्यु में ऊर्जा आपके बाहर जा रही है, लेकिन शरीर का वजन कम नहीं होता है। निश्चित ही कोई ऐसी ऊर्जा है जिस पर ग्रैविटेशन का कोई असर नहीं होता। क्योंकि वजन का एक ही अर्थ होता है कि जमीन में जो गुरुत्वाकर्षण है उसका खिंचाव | आपका जितना वजन है, आप भूलकर यह मत समझना कि वह आपका वजन है। वह जमीन के खिंचाव का वजन है। जमीन जितनी ताकत से आपको खींच रही हो, उस ताकत का माप है। अगर आप चांद पर जाएंगे तो आपका वजन चार गुना कम हो जाएगा। क्योंकि चांद चार गुना कम ग्रैविटेशन रखता है। अगर आप... सौ पौंड आपका वजन है तो पच्चीस पौंड चांद पर रह जाएगा। इसे आप ऐसा भी समझ सकते हैं कि अगर आप जमीन पर छह फीट ऊंचे कूद सकते हैं तो चांद पर आप जाकर चौबीस फीट ऊंचे कूद सकेंगे । और जब अंतरिक्ष में यात्री होता है, अपने यान में, कैप्सूल में - तब उसका कोई वजन नहीं रहता, नो वेट। क्योंकि वहां कोई ग्रैविटेशन नहीं होता। इसलिए यात्री को पट्टों से बांधकर उसकी कुर्सी पर रखना पड़ता है। अगर पट्टा जरा छूट जाए तो वह जैसे गैसभरा गुब्बारा जाकर ऊपर टकराने लगे, ऐसा आदमी टकराने लगेगा क्योंकि उसमें कोई वजन नहीं है जो उसे नीचे खींच सके। वजन जो है वह जमीन के गुरुत्वाकर्षण से है। लेकिन किरलियान के प्रयोगों ने सिद्ध किया है कि आदमी से ऊर्जा तो निकलती है लेकिन वजन कम नहीं होता। निश्चित ही उस ऊर्जा पर जमीन के गुरुत्वाकर्षण का कोई प्रभाव न पड़ता होगा। योग के लेविटेशन में जमीन से शरीर को उठाने के प्रयोग में उसी ऊर्जा का उपयोग है। - अभी एक बहुत अदभुत नृत्यकार था पश्चिम में • निजिन्स्की । उसका नृत्य असाधारण था, शायद पृथ्वी पर वैसा नृत्यकार इसके पहले नहीं था । असाधारणता यह थी कि वह अपने नाच में जमीन से इतने ऊपर उठ जाता था जितना कि साधारणतया उठना बहुत मुश्किल है। और इससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक यह था कि वह ऊपर से जमीन की तरफ आता था तो इतने स्लोली, इतने धीमे आता था कि जो बहुत हैरानी की बात है। क्योंकि इतने धीमे नहीं आया जा सकता। जमीन का जो खिंचाव है वह उतने धीमे आने की आज्ञा नहीं देता । यह उसका चमत्कारपूर्ण हिस्सा था। उसने विवाह किया, उसकी पत्नी ने जब उसका नृत्य देखा तो वह आश्चर्यचकित हो गयी। वह खुद भी नर्तकी थी। हू उसने एक दिन निजिन्स्की को कहा उसकी पत्नी ने आत्मकथा में लिखा है, मैंने एक दिन अपने पति को कहा - व्हाट ए दैट यू कैन नाट सी अरसेल्फ डांसिंग - कैसा दुख कि तुम अपने को नाचते हुए नहीं देख सकते। निजिन्स्की ने कहा सैड, आइ कैन नाट सी । आइ डू आलवेज सी । आइ एम आलवेज आउट। आइ मेक माइसेल्फ डान्स फ्राम दि आउटसाइड । निजिन्स्की ने कहा मैं देखता हूं सदा, क्योंकि मैं सदा बाहर होता हूं और मैं बाहर से ही अपने को नाच करवाता हूं। और अगर मैं बाहर नहीं रहता हूं तो मैं इतने ऊपर नहीं जा पाता हूं और अगर मैं बाहर नहीं रहता हूं तो इतने धीमे जमीन पर वापस नहीं लौट पाता हूं। जब मैं भीतर होकर नाचता हूं तो मुझ में वजन होता , और जब मैं बाहर होकर नाचता हूं तो उसमें वजन खो जाता है। योग कहता है अनाहत चक्र जब भी किसी व्यक्ति का सक्रिय हो जाए, तो जमीन का गुरुत्वाकर्षण उस पर प्रभाव कम कर देता है और विशेष नृत्यों का प्रभाव अनाहत चक्र पर पड़ता है। अनायास ही मालूम होता है । निजिन्स्की ने नाचते-नाचते अनाहत चक्र - - Jain Education International - 153 For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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