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तप : ऊर्जा का दिशा-परिवर्तन
अभी यहां हम बैठे हैं, आप मुझे सुन रहे हैं। अभी यहां आग लग जाए मकान में, आप एकदम भूल जाएंगे कि सुन रहे थे, कि कोई बोल रहा था, सब भूल जाएंगे। आग पर ध्यान दौड़ जाएगा, बाहर निकल जाएंगे, भूल ही जाएंगे कि कुछ सुन रहे थे। सुनने का कोई सवाल ही न रह जाएगा। ध्यान प्रतिपल बदल सकता है, सिर्फ नए बिन्दु उसको मिलने चाहिए। आग मिल गयी, वह ज्यादा जरूरी है जीवन को बचाने के लिए। आग हो गयी, तो तत्काल ध्यान वहां दौड़ जाएगा। आप के भीतर तप की प्रक्रिया में नए बिन्दुओं और केन्द्रों की तलाश करनी है जहां ध्यान दौड़ जाए और जहां नए केन्द्र सशक्त होने लगें। इसलिए तपस्वी कमजोर नहीं होता, शक्तिशाली हो जाता है। गलत तपस्वी कमजोर हो जाता है। गलत तपस्वी कमजोर होकर सोचता है कि हम जीत लेंगे, और भ्रांति पैदा होती है जीतने की ।
अगर एक आदमी को तीस दिन भोजन नहीं दिया जाए, तो कामवासना क्षीण हो जाती है। इसलिए नहीं कि कामवासना चली गयी, इसलिए कि कामवासना के योग्य रस नहीं बनता शरीर में । फिर भोजन दिया जाए तो तीस दिन में जो वासना गई थी वह तीन दिन में वापस लौट आती है। भोजन मिला, शरीर को रस मिला। फिर केन्द्र सक्रिय हो गया, फिर ध्यान दौड़ने लगा। इसलिए फिर जिसने भूखा रहकर कामवासना पर तथाकथित विजय पायी वह बेचारा फिर भूखा ही जीवनभर रहने की कोशिश में लगा रहता है, क्योंकि वह डरता है कि इधर भोजन दिया तो उधर वासना उठी। मगर यह निपट पागलपन है। वासना के बाहर हुए नहीं, यह सिर्फ कमजोरी की वजह से वासना को शक्ति नहीं मिल रही है।
असल में आदमी जितनी शक्ति पैदा करता है, उसमें कुछ तो जरूरी होती है जो उसके रोज के काम में समाप्त हो जाती है। एक खास मात्रा की कैलोरी उसके रोज के काम में उठने में, बैठने में, नहाने में, खाने में, पचाने में, दुकान में आने में, जाने में व्यय हो जाती है। सोने में व्यय हो जाती है। उसके अतिरिक्त जो बचती है वह उस केन्द्र को मिल जाती है जिस पर आपका ध्यान है। जो सुपरक्लअस है, जो अतिरिक्त है। अगर समझ लें कि एक हजार कैलोरी, मान लें कि आपके रोजमर्रा के काम में खर्च होती है और आपके भोजन और आपकी व्यवस्था से आपको दो हजार कैलोरी शक्ति शरीर में पैदा होती है, तो आपका ध्यान जिस केन्द्र पर होगा; एक हजार कैलोरी जो शेष बची है, उस केन्द्र पर दौड़ जाएगी। उसको कोई रास्ता नहीं है, ध्यान ही रास्ता है, ध्यान ही ऐरो है जिससे वह जाएगी । उसको और कुछ पता नहीं, कहां जाना है। आपका ध्यान उसको खबर देता है कि यहां जाना है, वह वहां चली जाती है ।
अब अगर आपको झूठे तप में उतरना है, तो आप भोजन इतना कर लें कि हजार कैलोरी से ज्यादा आपके भीतर पैदा न हो। फिर आपको ब्रह्मचर्य सधा हुआ मालूम पड़ेगा। क्योंकि आपके पास अतिरिक्त शक्ति बचती नहीं जो कि सेक्स के केन्द्र को मिल जाए। हजार शक्ति पैदा होती है, हजार आप खर्च कर लेते हैं। इसलिए तपस्वी खाना कम कर देता है, पैदल चलने लगता है, श्रम ज्यादा करने लगता है और खाना कम करता चला जाता है। वह दोहरी प्रतिक्रियाएं करता है, ताकि शरीर में शक्ति कम हो और शक्ति व्यय ज्यादा हो। वह मिनिमम पर जीने लगता है । न होगी अतिरिक्त शक्ति, न वासना बनेगी।
मगर इससे वह वासना से मुक्त नहीं होता। वासना अपनी जगह खड़ी है। वासना का केन्द्र प्रतीक्षा करेगा। अनंत जन्मों तक प्रतीक्षा करेगा, कहेगा जिस दिन शक्ति ज्यादा हो, मैं तैयार हूं। यह सिर्फ भय में जीना है। इस जीने से कहीं कुछ उपलब्ध नहीं होता है। इससे प्रकृति तो चूक जाती है, संस्कृति नहीं मिलती। सिर्फ विकृति मिलती है और एक भयभीत चेतना रह जाती है।
नहीं, यह नहीं है मार्ग । ठीक पाजिटिव आस्टैरिटी का, ठीक विधायक तप का मार्ग है— शक्ति पैदा करो, ध्यान रूपांतरित करो । ध्यान नए केन्द्रों तक ले जाओ, ताकि शक्ति वहां जाए। इसे हम धीरे-धीरे जब और गहरे उतरेंगे ध्यान के परिवर्तन के लिए, तो यह
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