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________________ महावीर वाणी भाग : 1 तब उसकी शक्ति, यंत्र बताते हैं कि बढ़ गयी । को, तब उससे पूछा गया कि वह करता क्या है? है - वह दूर नहीं है, मेरे सामने उपस्थित है। रह जाता है। और जब कामिनिएव रह जाता है हूं। सबसे ज्यादा निष्णात लोग हैं। निकोलिएव विचार भेजता है, ब्राडकास्ट करता है और हजारों मील दूर कामिनिएव उस विचार को पकड़ता है। वैज्ञानिकों ने यंत्र लगाकर बड़े चकित हो गए कि जब निकोलिएव विचार भेजता है, तो उसकी शक्ति क्षीण होती है। उसके चारों तरफ यंत्र बताते हैं कि उसकी शक्ति क्षीण हो रही है । और जब हजारों मील दूर कामिनिएव विचार को ग्रहण करता है, आश्चर्यजनक ! हजारों मील दूर । लेकिन जब निकोलिएव विचार भेजता है कामिनिएव वह कहता है - मैं आंख बन्द करके ध्यान करता हूं कि कामिनिएव मेरे सामने उपस्थित अपने सारे ध्यान को उस पर लगा देता हूं। सब भूल जाता हूं सिर्फ कामिनिएव और मुझे प्रत्यक्ष दिखाई पड़ने लगता है कि यह सामने खड़ा है, तब मैं उससे बोलता ध्यान... वह अटैंशन दे रहा है। तो उसकी ऊर्जा हजारों मील दूर बैठे हुए व्यक्ति को उपलब्ध हो जाती है। जिस चीज पर हम ध्यान देते हैं वहां शक्ति संगृहीत होती है और जहां से हम ध्यान देते हैं वहां से शक्ति हटती और विसर्जित होती है। जिस वृत्ति पर आप ध्यान देते हैं उस पर शक्ति संगृहीत हो जाती है। जब आप कामवासना का विचार करते हैं तो आपके कामवासना का जो केन्द्र है वह शक्ति को इकट्ठा करने लगता है। जिस चीज पर आप ध्यान देते हैं वह वृत्ति का केन्द्र आपके भीतर शक्ति को इकट्ठा कर लेता है । आप ही शक्ति देते हैं ध्यान देकर। फिर वह केन्द्र शक्ति से भर जाता है तो वह शक्ति से मुक्त होना चाहता है, क्योंकि बोझिल हो जाता है। यह जाल है आदमी के भीतर । लेकिन, कामवासना पर ध्यान दो तरह से दिया जा सकता । एक, कि आप कामवासना में रस लें तो भी ध्यान दिया जा सकता है । तो प्रकृतिस्थ नेचुरल कामवासना आप में घनीभूत होगी, नैसर्गिक कामवासना आप में शक्तिशाली हो जाएगी। एक विकृत ध्यान दिया जा सकता है। एक आदमी कामवासना पर ध्यान देता है कि मुझे कामवासना से लड़ना है, मुझे कामवासना को भीतर प्रविष्ट नहीं होने देना है - वह भी ध्यान दे रहा है। उसका भी काम का सेंटर, सैक्स सेंटर शक्ति को इकट्ठा कर लेता है। अब बड़ी मुश्किल होती है। क्योंकि जो नैसर्गिक कामवासना को ध्यान देता है, वह तो नैसर्गिक रूप से शक्ति उसकी विसर्जित हो जाएगी। लेकिन जो विसर्जित नहीं करना चाहता और ध्यान देता है, इसका क्या होगा? इसकी शक्ति विकृत रूप लेना शुरू करेगी, यह विसर्जित हो नहीं सकती। यह शरीर के दूसरे अंगों में प्रवेश करेगी और उनको विकृत करने लगेगी। यह चित्त के दूसरे स्नायुओं में प्रवेश करेगी और विकृत करने लगेगी । यह आदमी भीतर से उलझता जाएगा और जाल में फंसता जाएगा - अपनी ही... अपनी ही दी गयी शक्ति से । ऐसा हुआ कि हम एक वृक्ष को पानी दिए जाते हैं और प्रार्थना किए जाते हैं कि वृक्ष बड़ा न हो। यह वृक्ष बड़ा न हो, प्रार्थना किए जाते हैं और पानी दिए जाते हैं। जिस वृत्ति को आप ध्यान देते हैं चाहे पक्ष में, चाहे विपक्ष में, आप उसको पानी और भोजन देते हैं । तप का मूल सूत्र यही है कि ध्यान कहीं और दो। जहां तुम शक्ति को इकट्ठा करना चाहते हो वहां मत दो। ध्यान ही उठाओ ऊपर। अगर कामवासना से मुक्त होना है तो कामवासना पर ध्यान ही मत दो-पक्ष में भी नहीं, विपक्ष में भी नहीं। लेकिन ध्यान आपको देना ही पड़ेगा क्योंकि ध्यान आपकी शक्ति है, वह काम मांगती है । तो तप का मूल सूत्र यह है कि ध्यान के लिए नए केन्द्र निर्मित करो। नए केन्द्र आदमी के भीतर हैं, और उन केन्द्रों पर ध्यान को ले जाओ। जैसे ही ध्यान को नया केन्द्र मिल जाता है, वह नए केन्द्र में शक्ति को उड़ेलने लगता है, वैसे ही पुराने केन्द्रों से मुक्त होने लगता है। पहाड़ पर चढ़ाई शुरू हो गयी है। काम वासना का केन्द्र हमारा सबसे नीचा केन्द्र है। वहां से हम प्रकृति से जुड़े हैं। सहस्रार हमारा सबसे ऊंचा केन्द्र है। वहां से हम परमात्म-ऊर्जा से जुड़े हैं - दिव्यता से, भव्यता से, भगवत्ता से जुड़े हैं। Jain Education International 142 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001820
Book TitleMahavira Vani Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1998
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size12 MB
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